जीते-जागते करिश्मे का नाम हैं नरेंद्र मोदी, भला 27 साल के शासन के बाद कहीं जीत का रिकॉर्ड बनता है!

नई दिल्ली: गुजरात में लगातार 27 सालों के शासन के बाद भारतीय जनता पार्टी (BJP) विधानसभा चुनावों में रिकॉर्ड जीत दर्ज करने जा रही है। बीजेपी को गुजरात विधानसभा में अधिकतम 127 सीटें वर्ष 2002 के चुनाव में मिली थीं और 2017 के पिछले चुनाव में पार्टी विधायकों का आंकड़ा तीन अंकों को नहीं छू सका था। सिर्फ 99 सीटों पर जीत के साथ वह बीजेपी का गुजरात विधानसभा चुनाव में सबसे खराब प्रदर्शन था।

गुजरात में लगातार 27 सालों के शासन के बाद भारतीय जनता पार्टी (BJP) विधानसभा चुनावों में रिकॉर्ड जीत (BJP Record Win In Gujarat Election) दर्ज करने जा रही है। बीजेपी को गुजरात विधानसभा में अधिकतम 127 सीटें वर्ष 2002 के चुनाव में मिली थीं और 2017 के पिछले चुनाव में पार्टी विधायकों का आंकड़ा तीन अंकों को नहीं छू सका था। सिर्फ 99 सीटों पर जीत के साथ वह बीजेपी का गुजरात विधानसभा चुनाव में सबसे खराब प्रदर्शन था। लेकिन मजे की बात देखिए कि अगले ही चुनाव में 127 का उच्चतम आंकड़ा भी पार कर रही है। यानी, दो चुनावों के बीच फर्श से अर्श तक का सफर। वो भी 27 वर्ष के लगातार शासन के बाद। साथ में संपन्न हुए हिमाचल प्रदेश में वही बीजेपी तमाम कोशिशों के बावजूद हर चुनाव में सरकार बदलने के रिवाज को नहीं तोड़ पा रही है। फिर गुजरात में ऐसा क्या है कि 27 वर्ष का सत्ता विरोधी लहर की जगह सत्ता समर्थन में आंधी चल रही है? राजनीति के महापंडितों की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वो फैक्टर हैं जिनके दम पर बीजेपी गुजरात में अजेय बन गई है। हालांकि, इस सच्चाई से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि गुजरात में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस बिल्कुल किंकर्तव्यविमूढ़ दिखती है। लेकिन, दूसरा पक्ष यह भी है कि आम आदमी पार्टी (AAP) दिल्ली और पंजाब में सरकार बनाने के बाद गुजरात पहुंच चुकी है। बहरहाल, गुजरात में कांग्रेस की काहिलियत या आप की अनुभवहीनता के तथ्य से परे पीएम मोदी के करिश्माई कनेक्शन को तो खारिज नहीं किया जा सकता है। मोदी है तो मुमकिन है… गुजरात को आज भी इस महामंत्र पर इतना ज्यादा भरोसा क्यों है? आइए जानते हैं…

मोदी ने दिया विकास का ‘गुजरात मॉडल’

नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनने से पहले गुजरात के मुख्यमंत्री लंबे वक्त तक रहे। गुजरात में उनके विकास कार्यों ने ‘गुजरात मॉडल’ का नया फलसफा पेश किया जिसकी देशभर में चर्चा छिड़ गई। भले ही आलोचना के लिए ही, लेकिन विरोधी भी यदा-कदा आज भी गुजरात मॉडल का जिक्र कर देते हैं। नरेंद्र मोदी ने गुजरात के अपने मुख्यमंत्रित्व काल में गांधीनगर, अहमदाबाद, सूरत जैसे बड़े शहरों के साथ-साथ भरूच, पाटनपुर, मेहसाणा, केवड़िया जैसे छोटे-छोटे शहरों को भी कारोबार के नक्शे पर उभार दिया। उन्होंने पूरे गुजरात में निवेश आकर्षित करने के उचित माहौल बनाए जिससे विदेशी निवेशकों में होड़ लग गई। मोदी के कार्यकाल में गुजरात की सड़कों और पार्कों से लेकर वहां स्कूल-कॉलेजों तक में बड़े बदलाव हुए। गुजरात में रोजगार के मौके बढ़े। बड़ी बात यह है कि कुटिर उद्योगों के बढ़ावा देकर रोजगार के क्षेत्र में महिलाओं को भी खूब सशक्त किया गया। यही वजह है कि गुजरात में बेरोजगारी कभी प्रभावी चुनावी मुद्दा नहीं बन पाता है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी (AAP) ने इस चुनाव में बेरोजगारी की बात की, लेकिन वो इस मुद्दे को कितना भुना पाए, वो तो नतीजों से पता चल ही गया है। बतौर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने नर्मदा नदी पर बांध बनाकर उन जगहों पर सिंचाई और पीने का पानी पहुंचा दिया जहां लोग पानी की बूंद-बूंद को तरसते थे। मेधा पाटकर ने नर्मदा डैम के खिलाफ बड़ा आंदोलन छेड़ा और तरह-तरह के लांछन लगाकर बांध बनाने के काम में बाधा खड़ी करने की जी-तोड़ कोशिशें कीं। आज नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध के कारण रेगिस्तानी इलाकों में सिंचाई की व्यवस्था तो हो ही गई, भारी मात्रा में बिजली पैदा होने से गुजरात दूसरे राज्यों को भी बिजली आपूर्ति करता है। गांवों और किसानों की हालत सुधारने की दिशा में भी मोदी ने ठोस काम किए। गुजरात में सहकारी संस्थाओं को बढ़ावा दिया गया। सहकारी बैंक स्थापित हुए, सरकारी और निजी बैंकों को भी बढ़ावा दिया गया, गांव-गांव तक सड़कें और बुनियादी ढाचों का निर्माण हुआ और जरूरी सुविधाएं सुनिश्चित की गईं। इन्हीं विकास कार्यों के कारण हाल के सर्वे में 41 प्रतिशत गुजराती मतादाताओं ने माना था कि वो बीजेपी को फिर से सत्ता में लाना चाहते हैं ताकि विकास कार्य आगे बढ़ता रहे।

भूकंप और दंगे में दिखा मोदी मैजिक

विकास कार्यों के अलावा गुजरात में दो बड़ी आपदाओं ने भी बतौर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी काबिलियत साबित करने का मौका दिया और दोनों ही मौकों पर उन्होंने खुद को बखूबी साबित किया। वो मौका था 26 जनवरी, 2001 को गुजरात में ऐसा भूकंप आया कि वहां की विनाश लीला देखकर पूरा देश दहल गया। अगले ही वर्ष 2002 में गुजरात में भयावह दंगे हुए। देश में राज-काज की पारंपरिक प्रणाली के मद्देनजर कोई कल्पना नहीं कर सकता था कि भूकंप से व्यापक प्रभावित कच्छ और भुज जिले जल्द इसी पीड़ा से ऊबर पाएंगे। लेकिन मुख्यमंत्री मोदी ने शासन की नई व्यवस्था से देश को रू-ब-रू कराने की ठान ली और कुछ वर्षों में ही देश ने देख लिया कि शासन जब संकल्प ले ले तो कौन सी चुनौती नहीं पार पाई जा सकती। दोनों जिले फिर से खड़े हो गए। वहां फिर से मकान बनाए गए, प्रभावितों को सभी बुनियादी सुविधाएं दी गईं और देखते ही देखते जनजीवन पटरी पर आ गया। इसी तरह, 27 फरवरी, 2002 को गोधरा रेलवे स्टेशन पर ट्रेन में आग लगाकर कार सेवकों को जिंदा जलाने के बाद भड़के सांप्रदायिक दंगे ने गुजरात का सामाजिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो गया, तब मुख्यमंत्री मोदी के सामने नफरत की भड़की आग पर जल्द से जल्द काबू पाना था। उन्होंने कड़े कदम उठाए और तुरंत सेना बुला ली। वक्त रहते दंगे शांत हो गए। 2002 से पहले गुजरात में आए दिन छोटे-बड़े दंगे होते रहते थे, लेकिन 2002 के बाद से प्रदेश दंगा मुक्त हो गया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक चुनावी सभा में इस बात का जिक्र करते हुए कहा भी कि गुजरात में गुंडे शांत पड़ गए हैं। वो अलग बात है कि विरोधी गुजरात दंगे को शासन प्रेरित बताते रहे। लेकिन यह भी सत्य है कि सुप्रीम कोर्ट ने दंगे को लेकर साजिश रचने के आरोप में तीस्ता सीतलवाड पर कार्रवाई की अनुशंसा की और उन्हें जेल जाना पड़ा। पूर्व आईपीएस आरबी श्रीकुमार और संजीव भट्ट पहले ही जेल जा चुके हैं।

गुजराती गौरव के प्रतीक नरेंद्र मोदी

प्रधानमंत्री मोदी गुजराती गौरव के प्रतीक पुरुष बन गए हैं। इसका दीदार पीएम मोदी के विदेशी दौरों के दौरान अक्सर होता है। दुनिया के भिन्न-भिन्न देशों में बसा गुजराती समुदाय पीएम मोदी के वहां पहुंचते ही प्रफुल्लित हो उठता है। दूसरे देशों में रोजगार के लिए अस्थाई रूप से रह रहे या फिर वहीं बस गए गुजराती पीएम मोदी को अपने बीच पाकर रोमांचित हो उठते हैं। पीएम ने नर्मदा जिले के केवड़िया में सरदार वल्लभ भाई पटेल की 182 फुट ऊंची मूर्ति लगवाकर गुजराती गौरव का नया अध्याय लिखा है। सरदार सरोवर बांध के करीब स्थापित यह मूर्ति स्थल देश के प्रमुख पर्यटन केंद्र के रूप में उभर गया है। गुजरात गौरव और मोदी के कनेक्शन को समझने का एक सूत्र यह भी है कि जैसे ही विपक्षी नेता मोदी के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करते हैं तो जनता के बीच से कड़ी प्रतिक्रिया आती है। चुनावी राजनीति के जानकार आज भी यह मानते हैं कि 2017 के चुनाव में बीजेपी हारते-हारते जीती और कांग्रेस जीतते-जीतते हार गई। उस वक्त पाटीदार आंदोलन ने बीजेपी को अभूतपूर्व नुकसान पहुंचाया था जिससे कांग्रेस को वहां दुबारा जमीन हासिल होने लगी थी। तभी कांग्रेस की तरफ से पीएम मोदी पर निजी हमले होने लगे जिससे कुछ मतदाताओं का मन बदल गया। वो बीजेपी के खिलाफ वोट करना चाह रहे थे, लेकिन मोदी के समर्थन में खड़े हो गए।

फेंके हुए पत्थरों से महल बनाने की कला में माहिर हैं मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कठिन परिस्थितियों में भी सकारात्मकता से नजर जमाए रखते हैं। उनका आपदा में अवसर तलाशने के सिद्धांत पर अटूट विश्वास है। यही वजह है कि वो विपक्ष की आलोचनाओं और यहां तक कि अपने ऊपर हुए व्यक्तिगत हमलों को भी अपने समर्थकों की संवेदानाएं कुरेदने में इस्तेमाल कर लेते हैं। 2012 के गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कहा था। 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के ही दिग्गज नेता मणिशंकर अय्यर ने ‘नीच’ कहा और अब इस बार के चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने ‘रावण’ की संज्ञा दे दी। ऊपर से एक अन्य बड़े कांग्रेसी नेता मधुसूदन मिस्त्री ने ‘औकात’ जैसे अमर्यादित शब्द का इस्तेमाल कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी चुनावी रैलियों में इसे खूब भुनाते हैं। वो कहते हैं कि विरोधी हमें हर दिन भर-भर के गालियां देते हैं। आम आदमी पार्टी (AAP) के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया ने तो पीएम मोदी की मां ‘हीरा बा’ को भी नहीं बख्शा। निश्चित तौर पर गुजरातियों के बीच इसका अच्छा संदेश नहीं जाता है। पीएम मोदी की साफ-सुथरी छवि होने के कारण मतदाता उनपर व्यक्तिगत हमलों को राजनीति से परे निजी दुश्मनी के रूप में देखते हैं और फिर वो ‘गालीबाजों’ को सबक सिखाने का मन बना लेते हैं जिसका सीधा फायदा पीएम मोदी और उनकी पार्टी को होता है। याद रहे कि राहुल गांधी ने जब लड़ाकू विमान राफेल के लिए फ्रांस से हुई डील में घोटाले का आरोप लगाकर ‘चौकीदार चोर है’ का नारा दिया तो केंद्रीय मंत्रियों से लेकर बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं तक ने अपने-अपने सोशल मीडिया पेज की डीपी में ‘मैं भी चौकीदार’ लिख दिया। पीएम मोदी पर निजी हमले के अलावा उनकी सरकार को भी कठघरे में खड़ी करने की खूब कोशिशें होती हैं। राहुल गांधी इससे पहले मोदी सरकार को ‘सूट-बूट की सरकार’ का तमगा दे चुके थे। राहुल का प्रयास था कि वो गरीब मतदाताओं को समझा सकें कि पीएम मोदी की अगुवाई में केंद्र सरकार गरीबों का भला नहीं करेगी। इसके जवाब में मोदी सरकार ने मुफ्त गैस कनेक्शन, मुफ्त राशन, नल से जल, पीएम आवास, आयुष्मान योजना जैसी गरीब कल्याण की तमाम योजनाओं की न केवल घोषणाएं की बल्कि उन्हें जमीन पर ठीक तरीके से उतारा भी।

‘संकल्प से सिद्धि’ के लिए ‘मेहनत की पराकाष्ठा’ का मंत्र

वो सरकार के काम-काज हों या फिर पार्टी की जिम्मेदारी, पीएम मोदी दायित्वों का निर्वहन करने में कभी थकते नहीं हैं। वो न केवल खुद मेहनत करते हैं बल्कि अपने मंत्रियों से लेकर जिले के डीएम तक से हिसाब मांगते हैं। पीएम मोदी का ‘संकल्प से सिद्धी’ का मंत्र हर जगह लागू होता है। वो योजनाओं की सिर्फ घोषणा नहीं करते, उसके पूरा होने की तिथि भी तय करते हैं। यह भारतीय शासन की परंपरा कभी नहीं रही थी। पहले सरकारें योजनाओं का शिलान्यास तो करती थीं, लेकिन जनता दशकों तक उनके उद्घाटन की बाट जोहती रह जाती थी। अब केंद्र सरकार की हर योजना के लिए तिथि निर्धारित होती है और मंत्रियों को चुनौती दी जाती है कि वो वक्त से काम पूरा करके दिखाएं। कई योजनाओं को निर्धारित समय से पहले पूरा करने में सफलता भी हासिल हुई है। पीएम मोदी विदेश यात्रा के दौरान भी बैठकों पर बैठकें करते हैं जिसका देश में काफी साकारत्मक संदेश जाता है। पीएम मोदी कहते भी हैं कि उन्होंने आज तक एक दिन भी छुट्टी नहीं ली है। वो माइक्रो मैनेजमेंट के लिए जाने जाते हैं। सरकार की योजना हो या चुनावी जंग के लिए पार्टी की रणनीति, मोदी छोटे से छोटे पहलुओं का गहन विश्लेषण करके अनुकूल रणनीति बनाते हैं। जहां तक बात पार्टी गतिविधियों की है तो इसी गुजरात चुनाव में मोदी ने 31 रैलियां और तीन मेगा रोड शो किए। पीएम मोदी सरकार और पार्टी के बीच लगातार जिम्मेदारियों का निर्वहन करते रहते हैं। एक काम पूरा नहीं हुआ कि दूसरे को पूरा करने में भिड़ जाना, मोदी की यह खासियत निश्चित तौर पर उन्हें एक करिश्माई नेता बनाती है। इसे मजबूती देती है पीएम की साफ-सुथरी छवि, उन पर भ्रष्टाचार का एक आरोप नहीं, परिवार का कोई बैगेज नहीं।

संवाद कला में महारथी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संवाद कला में महारथ हासिल कर ली है। उन्हें अच्छे से पता होता है कि सामने बैठे लोग कौन हैं। योजनाओं के लाभार्थियों से बात करते हैं तो अलग भाषा, अलग वेश-भूषा, अलग अंदाज और विदेशी राष्ट्राध्यक्षों और बड़े नेताओं के सामने होते हैं या फिर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर होते हैं तो बिल्कुल अलग होते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। वो बच्चों के साथ ‘परीक्षा पर चर्चा’ भी करते हैं, हर महीने के आखिरी रविवार को रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ भी और बड़े मौकों पर देश के नाम संबोधन भी। यही वजह है कि वो मीडिया चैनलों के जरिए अपनी बात पहुंचाने की मजबूरी से ऊबर चुके हैं। हालांकि, उन पर सवालों से बचने का भी आरोप लगता है। लेकिन चूंकि अक्सर किसी ना किसी बहाने संवाद होता रहता है, इसलिए जनता इस आरोप को बेतुका ही मानती रही है। कुल मिलाकर कहें तो पीएम मोदी का व्यक्तित्व जमीन से आसमान तक, फर्श से अर्श तक के सभी स्तर के व्यक्तियों के साथ सामंजस्य साधने की है। यही वजह है कि दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन भी उन्हें मित्र बताते हैं और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों भी। यही मोदी का ही जलवा है कि इजरायली फिल्ममेकर ने गोवा फिल्म फेस्टिवल में कश्मीरी पंडितों पर हुए नृशंस अत्याचार पर बनी फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’ के लिए आपत्तिजनक बातें कहीं तो इजरयाल का पूरा सरकारी तंत्र इसे भूल बताने में जुट गया। निश्चित तौर पर देशप्रेमियों के लिए यह गौरव का विषय होता है कि इजरायल जैसा ताकतवर देश आज भारत की दोस्ती की कीमत समझ रहा है।