ऑपरेशन बुलबुल और ऑपरेशन ऑक्टोपस से घुटने टेकने को मजबूर हुए नक्सली, जानें कोबरा फोर्स के जंगल वॉर के बारे में

झारखंड में सीआरपीएफ के नक्सल विरोधी ऑपरेशन ने राज्य के बुरा पहाड़, लातेहार, गुमला और चकरबंद एरिया से माओवादियों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया है। ये इलाके पिछले कई दशक से माओवादियों के कब्जे में थे। पिछले एक-डेढ़ साल में सीआरपीएफ ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है।

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नई दिल्ली : झारखंड में नक्सलियों के खिलाफ केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स के ऑपरेशन को लेकर खूब चर्चा हो रही है। केंद्रीय अर्द्ध सैनिक बल ने नक्सलियों के खिलाफ पिछले एक से डेढ़ साल के दौरान अपनी रणनीति में महत्वपूर्ण बदलाव किया है। ‘सीआरपीएफ’ की कोबरा (कमांडो बटालियन फॉर रेसोल्यूट एक्शन) बटालियन ने अपने ऑपरेशन से नक्सलियों की लोकल माइनिंग इंडस्ट्री से फंडिंग को पूरी तरह से रोक दिया है। इससे नक्सलियों की कमर टूट गई है और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा है। झारखंड में सीआरपीएफ के नक्सल विरोधी ऑपरेशन ने राज्य के बुरा पहाड़, लातेहार, गुमला और चकरबंद एरिया से माओवादियों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया है। ये इलाके पिछले कई दशक से माओवादियों के कब्जे में थे।

लोहरदग्गा में 18 दिन चला ऑपरेशन बुलबुल
सूत्रों का कहना है कि जंगल वारफेयर और गुरिल्ला लड़ाई में महारत रखने वाली कोबरा यूनिट को झारखंड और बिहार में नक्सल विरोधी ग्रिड में सफलता मिली है। इसे एक बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। पिछले 18 महीनों के दौरान झारखंड में 23 और बिहार में 5 नक्सली मारे जा चुके हैं। इस दौरान सीआरपीएफ का लोहरदग्गा में ऑपरेशन बुलबुल काफी महत्वपूर्ण रहा। बुलबुल गांव, लातेहार और गुमला जिले के पहाड़ों से लगा हुआ घने जंगल का एरिया है। ऑपरेशन बुलबुल 18 दिन तक चला। इस दौरान 14 एनकाउंटर हुए। ऑपरेशन का फोकस माओवादी फंडिंग को रोकने पर केंद्रित था। ये ऑपरेशन 8 से 25 फरवरी तक चला। इसके अलावा ऑपरेशन ऑकटोपस भी चलाया। इस ऑपरेशन के जरिये बूरा पहाड़ को माओवादियों के कब्जे से वापिस लिया गया।

एनकाउंटर के बाद लौटते नहीं थे जवान
सीआरपीएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि बलों ने बिहार और झारखंड में लगभग सभी माओवादी गढ़ों में प्रवेश किया है। शायद, दक्षिण झारखंड में केवल कुछ क्षेत्र अभी भी माओवादी नियंत्रण में हो सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि एनकाउंटर खत्म होने के बाद सुरक्षा बल वापस नहीं लौटते थे। वे उसी एरिया में घेरा डालकर आईईडी का पता लगाते थे। ऑपरेशन के दौरान कोबरा और सीआरपीएफ की दूसरी टीमें जंगल में आगे बढ़ीं और नक्सलियों को खदेड़ा। सीआरपीएफ के एक अधिकारी ने कहा कि इस तरह के ऑपरेशन बहुत कम ही हुए हैं।

ग्रामीण कर रहे सीआरपीएफ का सहयोग
अधिकारी ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में कोबरा बटालियन की कमांडो यूनिट में रिक्त पदों को भर दिया गया। इसके अलावा ट्रेनिंग को पहले और अधिक कठोर बना दिया गया। इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने लगातार स्थिति की समीक्षा भी की। झारखंड में लोहरदग्गा और गुमला जैसे क्षेत्रों में बलों की हालिया सफलताओं में एक बड़ा योगदान ‘डबल बुल’ ऑपरेशन था। फरवरी 2022 में एक दर्जन मुठभेड़ों को अंजाम देकर खदान क्षेत्र को नक्सलियों से मुक्त कर दिया गया। इससे उन्हें पैसे और जरूरी सामानो से वंचित कर दिया गया। जोनल और सब-जोनल कमांडरों की लगभग 14-15 गिरफ्तारी हुई। अर्द्धसैनिक बल के अधिकारी के अनुसार झारखंड में अब ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां सेना प्रवेश और संचालन नहीं कर सकती है। अधिकारी ने कहा कि हमने कैंप लगा रखे हैं। सौभाग्य से, स्थानीय ग्रामीणों ने हमारा स्वागत किया है और हमें समर्थन दे रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि बल भी यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि स्थानीय लोगों को काम दिया जाए। इससे विकास कार्य नियत समय पर होंगे।

माओवादियों की गिरफ्तारी से गिरा मनोबल
अधिकारी ने कहा कि माओवादियों की गिरफ्तारी और भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद की बरामदगी ने नक्सली कार्यकर्ताओं का मनोबल गिराया है। इसके साथ ही युवाओं की माओवादी रैंकों में भर्ती को हतोत्साहित किया है। यह पूछे जाने पर कि क्या रणनीति में इसी तरह का बदलाव छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर में लागू किया जा रहा है। इस पर सीआरपीएफ के एक अधिकारी ने कहा कि झारखंड में जो काम करता है वह जरूरी नहीं कि छत्तीसगढ़ में भी काम करे। छत्तीसगढ़ में, पब्लिक मिलिशिया एक मजबूत स्थानीय मुखबिर नेटवर्क सुनिश्चित करते हुए काम करती है। हम उसके अनुसार वहां अपनी रणनीति को फिर से तैयार कर रहे हैं।