NDTV Adani News : क्या गलत है एनडीटीवी का ‘जबरन’ अधिग्रहण, प्रमोटर्स को पहले सूचना देना कितना जरूरी? जानिए लीगल एक्सपर्ट्स की राय

NDTV Adani Deal : उच्चतम न्यायालय में वकील और विधि कंपनी (Law Firm) आर्क लीगल की भागीदार खुशबू जैन ने कहा कि इस मामले में सहमति का सवाल ही नहीं उठता, क्योंकि यह पहले से मौजूद अनुबंध की शर्तों के तहत उठाया गया कदम है। अडाणी समूह की कंपनी ने पहले वीसीपीएल (VCPL) का अधिग्रहण किया और बकाया ऋण को एनडीटीवी में 29.18 फीसदी हिस्सेदारी में बदलने के विकल्प का प्रयोग किया।

नई दिल्ली : अडाणी समूह (Adani Group) द्वारा एनडीटीवी (NDTV) के ‘जबरन’ अधिग्रहण पर विधि विशेषज्ञों ने बुधवार को अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि इस डील में साल 2009-10 में परिवर्तनीय वॉरंट जारी करने की शर्तें महत्वपूर्ण होंगी। उन्होंने कहा कि किसी भी विवाद को लेकर निर्णय अनुबंध की शर्तों के तहत ही होगा। उल्लेखनीय है कि कंपनियां पूंजी जुटाने के लिये वॉरंट जारी करती हैं। यह प्रतिभूतियों की तरह होता है, जो निवेशकों को भविष्य में निर्धारित तारीख को एक निश्चित कीमत पर कंपनी में शेयर खरीदने का अधिकार देता है। वहीं, कानून विशेषज्ञों का कहना है कि अडानी ग्रुप द्वारा अधिग्रहण के बारे में एनडीटीवी को पहले से बताना आवश्यक नहीं था।


बकाया कर्ज के चलते हुआ एनडीटीवी का अधिग्रहण

अडाणी समूह ने घोषणा की है कि उसके पास एनडीटीवी में 29.18 फीसदी हिस्सेदारी है और वह अतिरिक्त 26 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने के लिये खुली पेशकश लाएगा। इस अधिग्रहण के पीछे मुख्य कारण वह बकाया कर्ज है, जो एनडीटीवी की प्रवर्तक कंपनी आरआरपीआर होल्डिंग प्राइवेट लि. ने विश्वप्रधान कमर्शियल प्राइवेट लि. (VCPL) से लिया था। आरआरपीआर होल्डिंग ने 2009-10 में 403.85 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था। इस कर्ज के एवज में आरआरपीआर ने वॉरंट जारी किये थे। इस वॉरंट के जरिये वीसीपीएल के पास कर्ज नहीं लौटाने की स्थिति उसे आरआरपीआर में 99.9 फीसदी हिस्सेदारी में बदलने का अधिकार था।

एनडीटीवी के प्रमोटर्स ने कहा नहीं की गई उनसे चर्चा

अडाणी समूह की कंपनी ने पहले वीसीपीएल का अधिग्रहण किया और बकाया ऋण को एनडीटीवी में 29.18 फीसदी हिस्सेदारी में बदलने के विकल्प का प्रयोग किया। कुछ विधि विशेषज्ञों के अनुसार, जिस शर्त पर वॉरंट जारी किये गये, वे महत्वपूर्ण हैं। इसका कारण यह है कि न्यू दिल्ली टेलीविजन लि. के प्रवर्तकों ने दावा किया कि उन्हें मंगलवार तक अधिग्रहण के बारे में कुछ भी पता नहीं था और यह सब बिना उनकी सहमति या चर्चा के किया गया।


नहीं होती पूर्व सहमति की जरूरत

इंडस लॉ के भागीदार रवि कुमार ने कहा कि आमतौर पर वॉरंट को इक्विटी शेयर में बदलने के लिये उसे जारी करने वाली कंपनी से किसी पूर्व सहमति की आवश्यकता नहीं होती है। उन्होंने कहा, ‘‘अगर ऐसी चीजें वाणिज्यिक समझ का हिस्सा हैं, तो उन्हें वॉरंट बदलने की शर्तों के हिस्से के तहत स्पष्ट करने की आवश्यकता है।’’ कुमार ने कहा, ‘यह मामला वास्तव में अनुबंध पर निर्भर करता है और किसी भी विवाद का फैसला निर्धारित शर्तों के आधार पर किया जाएगा।’’

दिलाई नेटवर्क-18 के अधिग्रहण की याद

स्पाइस रूट लीगल में भागीदार प्रवीण राजू ने कहा कि यह 2014 में रिलायंस के नेटवर्क-18 के ‘जबरन’ अधिग्रहण की याद दिलाता है। उन्होंने कहा, ‘‘अगर आरआरपीआर होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड ने वीसीपीएल को जो वॉरंट जारी किया था, उसमें इक्विटी शेयर में बदलने का प्रावधान है, तो मौजूदा सार्वजनिक घोषणा और खुली पेशकश कानून के दायरे में है।’’

चुनौती दी गई तो हो सकती है लंबी कानूनी लड़ाई

पॉयनियर लीगल के भागीदार शौभिक दासगुप्ता ने कहा कि अडाणी समूह के अधिग्रहण का रास्ता पूरी तरह से सोची गई रूपरेखा पर आधारित है। इस तरह के वॉरंट की शर्तें तय करेंगी कि क्या उसे इक्विटी शेयर में बदलने की अनुमति है।’’ उन्होंने यह भी कहा कि अगर चुनौती दी गई तो लंबी कानूनी लड़ाई हो सकती है।

सहमति का सवाल ही नहीं

उच्चतम न्यायालय में वकील और विधि कंपनी आर्क लीगल की भागीदार खुशबू जैन ने कहा कि इस मामले में सहमति का सवाल ही नहीं उठता, क्योंकि यह पहले से मौजूद अनुबंध की शर्तों के तहत उठाया गया कदम है।