Neena Gupta: 7 छात्रों में एकलौती लड़की, दुनिया में गाड़ा भारत का झंडा, मिलिए मैथ की इस जादूगर से

Ramanujan Prize Neena Gupta: भारतीय लड़कियां मुसीबतों को पार कर बुलंदियों को छूना जानती हैं। कितनी भी समस्याएं क्यों न आए वो उस मुकाम को हासिल कर लेती हैं जिसे वह पाना चाहती हैं। नीना गुप्ता भी एक ऐसी ही देश की बेटी हैं, जिन्होंने गणित के फील्ड में भारत का झंडा दुनिया में गाड़ रखा है।

नई दिल्ली: आमिर खान की फिल्म ‘दंगल’ का डायलॉग ‘हमारी छोरियां क्या छोरों से कम है’ बहुत मशहूर हुआ था। देश में लड़कियां इस वक्त वैसे सभी क्षेत्रों में बुलंदियों को छू रही हैं जिसपर पहले पुरुषों का एकाधिकार था। लड़की और गणित की पढ़ाई! भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के ज्यादातर देशों में मैथ को लेकर आम तौर पर यही नजरिया रहा है। पर आज लड़कियां जमीन से लेकर आसमान तक बुलंदियों के झंडे गाड़ रही हैं। पर ये रास्ता इतना आसान भी नहीं रहा है। गणित की जादूगर कही जाने वालीं नीना गुप्ता (Neena Gupta) के साथ भी कुछ ऐसा ही रहा। एक मारवाड़ी फैमिली में पैदा हुईं नीना के लिए मुश्किलें भी थीं। पर कहते हैं न कि जब हौसला चट्टानों जैसा हो तो आप उसे रोक नहीं सकते हैं। इस चट्टानी हौसले की बदौलत ही नीना ने 2021 में रामनुजन प्राइज (Ramanujan Prize) जीता। एनबीटी सुपर ह्यूमन सीरीज में आज इन्हीं मशहूर शख्सियत की बात करेंगे।

ऐसे ही कोई नीना नहीं बन जाता

इंडियन स्टैटिकल इंस्टीट्यूट (ISI) कोलकाता में मैथमेटिक्स की प्रोफेसर ने अपने क्षेत्र में बुलंदियों को उन ऊंचाई को छुआ है जो पुरुष प्रधान फील्ड में पाना बड़ा ही दुरुह माना जाता रहा है। नीना को एफाइन बीजीय ज्यामिति और कम्यूटेटिव बीजगणित (Algebraic Geometry and Commutative Algebra) में उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए वर्ष 2021 का पुरस्कार मिला। यह पुरस्कार 45 साल से कम उम्र के उन विद्वानों को दिया जाता है जिन्होंने विकासशील देशों में गणित के क्षेत्र में बेहतरीन काम किया हो। नीना यह पुरस्कार पाने वाली दूसरी भारतीय महिला हैं। वह ऐसी चौथी भारतीय गणितज्ञ हैं जिसे ये प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला है। इससे पहले 2018 में रितब्रत मुंशी (Ritabrata Munshi), 2015 में अमलेंदु कृष्णा (Amalendu Krishna) और 2006 में रामदोरई सुजाता (Ramdorai Sujatha) को यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुका है।

हर बाधा को तोड़ दिया

38 साल की हो चुकीं नीना ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में 2021 में अपनी इस मुश्किल यात्रा के बारे में बताया भी था। नीना ने कहा था कि एक मारवाड़ी परिवार में पैदा होने के बाद भी उन्होंने कई सांस्कृतिक मुश्किलों के बैरियर को तोड़ा था। उन्होंने कहा था कि मेरी पूरी परवरिश कोलकाता में हुई। मैं और मेरे परिवार ने मेरे इस संघर्ष में कई सांस्कृतिक प्रोटोकॉल को तोड़ा और मैंने गणित के क्षेत्र में अपना करियर बढ़ाने का फैसला किया।

यूं पता चला गणित से मोहब्बत है!

बेथ्यून कॉलेज (Bethune College) कोलकाता में बीएसी (गणित) की पढ़ाई के दौरान नीना को अपने गणित विषय से लगाव के बारे में पता चली। ऑल गर्ल्स कॉलेज में नीना ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने बताया कि बीएससी में उन्हें 91% मार्क्स मिले और वह टॉपर बनीं। इसके बाद कॉलेज के प्रोफेसर और दोस्तों ने उन्हें ISI में मास्टर्स में एडमिशन लेने को प्रेरित किया। हालांकि, जब नीनी ने कोर्स का स्ट्रक्चर देखा तो वह थोड़ी मायूस भी हुईं। लेकिन उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा। उन्होंने कहा कि जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं तो समझ सकती हूं कि शायद ही कोई लड़की इतनी हिम्मत कर पाए। लेकिन मैंने इसकी कोई चिंता नहीं की।

7 छात्रों के बैच में नीना एकलौती लड़की
नीना ने कठिन मेहनत के जरिए ISI में प्रवेश तो पा लिया, लेकिन यह देख वह चौंक गई कि 7 छात्रों के बैच में वह एकलौती लड़की थीं। लेकिन नीना बताती हैं कि इसके पीछे कई वजहें थीं। उन्होंने बताया कि कॉलेज में एडमिशन लेने से लेकर यहां से पास होने तक ISI में कई रोचक चीजें उन्हें देखने को मिली। यहां कोर्स काफी कठिन था। आप यहां टालमटोल नहीं कर सकते। ISI में एक पॉलिसी थी कि अगर कोई छात्र पहले साल की परीक्षा में फेल हो गया तो इंस्टीट्यूट केवल एक बार ही उस बैक पेपर को पास करने का अवसर देता। अगर दोबारा भी छात्र फेल हो गया तो उन्हें ISI छोड़ने के लिए कह दिया जाता था। ऐसे में छात्रों पर काफी ज्यादा दबाव होता था। कम्युनिकेटिव अल्जेब्रा (Commutative Algebra) की एक्पर्ट नीना ने कहा कि अपने बैच में एकलौती लड़की होने के बाद भी कोर्स से जुड़ी जानकारी बड़े आराम से हासिल करती थीं और परीक्षा में भी पास हुईं। नीना ने बताया एमएससी करने के बाद निश्चित तौर पर मेरी च्वाइस पीएचडी करने की थी। लेकिन पीएचडी के लिए उनके परिवार ने एक डेडलाइन दे दी। उन्होंने बताया कि मुश्किलों के बीच भी मैंने साढ़े 3 साल और 27 साल की उम्र में पीएचडी की उपाधि हासिल कर ली।

लड़की और गणित! वाली छवि तोड़ी
नीना ने कहा कि गणित के क्षेत्र में कम लड़कियों के आने के पीछे सामाजिक धारणा एक मुख्य वजह है। हालांकि, उन्होंने कहा कि यही बात पूरी दुनिया में है, जहां गणित पर पुरुषों का वर्चस्व है। हालांकि अब स्थिति थोड़ी बेहतर है। नीना ने कहा कि वह नहीं मानती कि लड़कियों और गणित के बीच एक मुश्किल संबंध है। हां ये जरूर है कि कई तरह की जिम्मेदारियों के कारण उनका ध्यान जरूर इस सब्जेक्ट से हट जाता है। मेरी 30 साल की उम्र में शादी हुई लेकिन परिवार के समर्थन के कारण मेरे लिए सबकुछ आसान हो गया। उन्होंने बताया कि ISI में कोर्स के दौरान भी उन्होंने लड़की-लड़के के बीच का रेश्यो भी ठीक होने का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि नीना इस वक्त दो पीएचडी छात्रों की गाइड हैं और अच्छी बात ये है कि ये दोनों ही लड़की हैं।

गणित के आसमान में चमकता सितारा हैं नीना
नीना गुप्ता का जन्म 1984 में हुआ था। उन्होंने 2008 में ISI में पीजी कंप्लीट किया और 2011 में पीएचडी भी पूरा कर लिया। इसके बाद वह ISI में ही एसोसिएट प्रोफेसर बन गईं। वह 2014 से ISI में काम कर रही हैं।