पिछले कुछ वर्षों में मेडिकल परीक्षा देने वाले छात्रों की संख्या 25 फीसदी से अधिक बढ़ी है। NEET-UG और NEET-PG में सीटें कम होने से छात्रों के सामने चुनौती भी अधिक है। वहीं हाल के दिनों में मेडिकल परीक्षा से जुड़े कई मामलों की कोर्ट में भी सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस भी इसको लेकर चिंता जाहिर कर चुके हैं।
मेडिकल परीक्षा देने वाले छात्रों की बढ़ रही संख्या
राष्ट्रीय पात्रता और प्रवेश परीक्षा (NEET) के लिए पिछले चार वर्षों में छात्रों की संख्या में लगभग 25% की वृद्धि हुई है। साल 2022 में लगभग 17.6 लाख NEET-UG परीक्षा के लिए दाखिए हुए यह संख्या किसी भी किसी भी प्रतियोगी परीक्षा के लिए सबसे अधिक है। वहीं इसी दौरान इंजीनियरिंग के लिए उम्मीदवारों की संख्या JEE-Main में गिर गई। साल 2019 में परीक्षा के लिए 11.5 लाख छात्रों ने रजिस्टर कराया लेकिन 2022 में यह संख्या गिरकर 9.05 लाख पर आ गई। मेडिकल परीक्षा में दाखिल होने वाले छात्रों की संख्या देखी जाए तो सरकारी कॉलेज के हिसाब से एक सीट के लिए 33 छात्रों ने अप्लाई किया।
इंटर्नशिप को लेकर बिगड़ रही बात
डॉ प्रवीण शिंगारे ( पूर्व निदेशक, चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान निदेशालय, महाराष्ट्र) का कहना है कि PG की डिग्री हासिल करने के लिए छात्रों पर माता-पिता, यहां तक कि कॉलेजों का भी काफी जोर है। हायर स्टडी के लिए जाने वाले छात्रों को कॉलेज ब्राउनी पॉइंट देते हैं। इसके पीछे एक सामान्य सा कारण यह है कि केवल एमबीबीएस की डिग्री का ही महत्व नहीं है। कई बार छात्र एक साल के इंटर्नशिप की बजाय नीटी पीजी की तैयारी पर समय अधिक बिताते हैं और इनमें कई इंटर्नशिप सर्टिफिकेट में हेर-फेर करते हैं। इन सब के बाद यदि छात्रों को किसी टेक्निकल पॉइंट पर सीट खोनी पड़ेगी तो तो वे एक साल खोने के बजाय कोर्ट जाना पसंद करेंगे।
राज्यों का कितना रोल, परीक्षा रोके जाने की कोर्ट से मांग
हजारों छात्र NEET-PG के लिए दाखिल हुए। अदालतों में कई ऐसे मुकदमे थे जो पिछले सप्ताह तक परीक्षा स्थगित करने की मांग कर रहे थे। सुधा शेनॉय (अभिभावक प्रतिनिधि) का कहना है कि विभिन्न राज्यों के नियम एक जैसे नहीं हैं। पीजी सीट के लिए पात्रता के लिए छात्रों को अनिवार्य रूप से अपनी इंटर्नशिप पूरी करनी होती है, लेकिन राज्यों में इंटर्नशिप की समय सीमा अलग-अलग होती है। मार्च में परीक्षा पूरी करने और काउंसलिंग राउंड के लिए जुलाई तक इंतजार करने का क्या मतलब है। इस तरह के नीतिगत फैसले छात्र-हितैषी नहीं होते हैं। पूर्व सदस्य (बोर्ड ऑफ गवर्नर), तत्कालीन मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया और टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के डीन (प्रोजेक्ट्स) डॉ. कैलाश शर्मा का कहना है कि एमसीसी, भारत सरकार से इस मामले में स्पष्टता की जरूरत है।