बाड़मेर. जैसे कीचड़ में कमल खिलता है, वैसे ही दुख में सपने पनपते हैं… कैंसर जैसी दर्दनाक बीमारी की वजह से एक भाई ज़िंदगी की लड़ाई हार गया था. लेकिन उस दुख को बहन ने अपनी टूटन नहीं बल्कि कामयाबाी का सबसे बड़ा हथियार बना लिया. पाकिस्तान की सरहद से सटे राजस्थान के बाड़मेर ज़िले से एक आदिवासी परिवार की बेटी की बड़ी कामयाबी की खबर से न केवल घर बल्कि पूरे इलाके में खुशी और गौरव की लहर है. साल 2014 में डॉक्टर बनने का सपना संजोने वाली आदिवासी समाज की बेटी किरण ने अपनी लगन के बूते नीट जैसी परीक्षा क्रैक कर डॉक्टर बनने के सपने के लिए बड़ी इबारत लिखी है.
दरअसल आदिवासी समुदाय की बेटी किरण सोलंकी के बड़े भाई संजय कुमार की मौत कुछ साल पहले ल्यूकेमिया के कारण हो गई थी. तब वह सोचती थी ‘काश मैं अच्छी डॉक्टर होती और भाई को सही कर सकती.’ अब किरण ने NEET में एसटी वर्ग में 425वीं रैंक हासिल की है. यह किसी कारनामे से कम इसलिए नहीं है क्योंकि किरण ने यह अपने बलबूते किया. किरण ने इसके लिए कोटा या जयपुर जैसे शहर में जाकर कोई कोचिंग नहीं की. अपने घर पर रहकर सिर्फ अपने टीचरों के मार्गदर्शन और स्कूल की पढ़ाई के दम पर ही किरण ने राष्ट्रीय स्तर की इस परीक्षा में कामयाबी हासिल की. इससे पहले किरण ने दसवीं और बारहवीं में भी 90 प्रतिशत से ज़्यादा अंक हासिल किए थे.
7-8 घंटे की सेल्फ स्टडी से मिला मुकाम
किरण ने बताया कि इस एग्ज़ाम में रैंक पाने के लिए रोज़ाना 7 से 8 घंटे तक की सेल्फ स्टडी कारगर उपाय साबित हुई. किरण ने News18 Local से कहा, ‘मैंने अपनी आंखों के सामने अपने भाई को खोया, तब ठान लिया था कि डॉक्टर बनकर दूसरों की ज़िंदगी को रोशन करूंगी.’