बात साल 1953 की है. निलाम्बुर आयशा उस वक्त केवल 18 साल की थीं. जिस वक्त वो स्टेज पर एक डायलॉग कह रही थीं ठीक उसी वक्त एक गोली उनके पास से हवा को चीरती हुई निकल गई.
निलाम्बुर आयशा अब 87 साल की हो चुकी हैं. केरल के निलाम्बुर शहर (ये नाम उन्होंने स्टेज पर अपने नाम के रूप में अपना लिया था) में अपने घर में बैठी वो उस वक्त को याद करती हुई कहती हैं, ” मैं उस समय चलते- चलते डॉयलॉग बोल रही थी, इसलिए बच गई, गोली स्टेज के पीछे लगे परदे में लगी थी.”
हमलावर के निशाने पर रहे कई लोगों में से आयशा भी एक थीं. उस दौर में धार्मिक रूढ़िवाद से प्रेरित लोगों का मानना था कि मुस्लिम महिलाओं को एक्टिंग नहीं करनी चाहिए. वो आयशा को एक्टिंग करने से रोकना चाहते थे.
- अंतर-धार्मिक शादी के हंगामे पर विदेशी मीडिया की क्या है प्रतिक्रिया?
वो कहती हैं कि इन सबके बावजूद उन्होंने एक्टिंग करना जारी रखा, उन्होंने ना सिर्फ़ ईंटों और पत्थरों का सामना किया बल्कि उन्हें थप्पड़ भी मारे गए. लेकिन वो तब तक इसे सहती रहीं जब तक वो लोगों का नज़रिया बदलने में कामयाब नहीं हुईं.
बीते महीने आयशा पहली कतार में बैठी उसी नाटक को स्टेज पर देख रही थीं जिसे करने के दौरान दशकों पहले उन पर गोली चली थी. नई पीढ़ी के कलाकार दर्शकों के सामने ‘इज्जू नल्लोरू मानसनाकन मोक्कू’ (आप अच्छा इंसान बनने की कोशिश करते रहिए) के नए संस्करण का मंचन कर रहे थे.