Bihar Politics: किंग मेकर ऐसा पद है, जिसकी विपक्ष को सख्त जरूरत है। नीतीश कुमार ऐसी भूमिका में बिल्कुल फिट बैठते है। उन्होंने बिहार में पाला बदलने के बाद खुद को इसी भूमिका के लिए पेश भी किया है। वह बार-बार 2024 से पहले विपक्ष को एक करने की बात कर रहे हैं।
Nitish Kumar Mission 2024: जब से नीतीश कुमार ने बिहार में महागठबंधन की सरकार बनाई है, तब से विपक्ष में उनकी अहमियत और सक्रियता बढ़ गई है। पिछले दिनों विपक्ष को 2024 से पहले संगठित करने के प्रयास में नीतीश कुमार ने चार दिनों के दिल्ली प्रवास में 12 से ज्यादा नेताओं से मुलाकात की। अगले कुछ दिनों में वह दोबारा दिल्ली आएंगे। देश के अलग-अलग हिस्सों में भी जाने का उनका कार्यक्रम है। इससे सवाल उठ रहा है कि 2024 आम चुनाव में नीतीश कुमार अपने लिए किस तरह की भूमिका चाहते हैं। वह किंग बनना चाहते हैं या किंग मेकर? दोनों में उनके लिए सुविधाजनक रास्ता क्या है? अब तक जो संकेत और संदेश उनकी ओर से मिले हैं, उस हिसाब से वह किंग मेकर ही बनना चाहेंगे। इसके पीछे उनका अपना सियासी गणित है जो व्यावहारिक धरातल पर तैयार किया गया है।
किंग बनने में क्या है दिक्कतें
1- नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू का ज्यादा बड़ा आधार नहीं है। खुद बिहार में उनकी पार्टी अभी तीसरे नंबर पर है। इसके अलावा अगर बिहार में गठबंधन साथ लड़ता है तो उनकी पार्टी के जिम्मे राज्य की 40 लोकसभा सीटों में 15-16 से अधिक नहीं आएंगी। ऐसी स्थिति में उन्हें पता है कि उनका खुद किंग बनने का दावा उतना मजबूत नहीं हो सकता। बाकी दूसरे क्षेत्रीय दलों का दावा उनसे अधिक मजबूत हो सकता है।
2-कांग्रेस शायद चुनाव से पहले किंग का पद देने पर सहमत नहीं हो। पार्टी ने हमेशा स्टैंड लिया है कि पीएम पद की उम्मीदवारी का फैसला बाद में होगा। इसके लिए हमेशा 2004 मॉडल का हवाला दिया जाता रहा है, जब सामूहिक लड़ाई हुई थी।
3-किंग बनने से पहले नीतीश कुमार को बिहार में अपने उत्तराधिकारी का मसला सुलझाना होगा। अब तक के संकेतों के अनुसार नीतीश कुमार 2024 का आम चुनाव लड़ सकते हैं और बिहार की कमान तेजस्वी यादव को सौंप सकते हैं, लेकिन यह सत्ता हस्तांतरण इतना आसान नहीं होगा। उससे पहले नीतीश किंग बनने का दावा करने का जोखिम नहीं ले सकते।
4-इसके अलावा पूर्व का अनुभव देखते हुए इस बार नीतीश कुमार हड़बड़ी में कोई कदम नहीं उठाना चाहेंगे। 2013 में बीजेपी से अलग होने के बाद जब 2015 में बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी तो वह इसकी कोशिश कर चुके हैं। उसमें मिली असफलता से न सिर्फ उनकी स्थिति कमजोर हुई, बल्कि पार्टी को भी नुकसान हुआ।
किंग मेकर का रास्ता आसान और प्रभावी क्यों?
1- किंग मेकर ऐसा पद है, जिसकी विपक्ष को सख्त जरूरत है। नीतीश कुमार ऐसी भूमिका में बिल्कुल फिट बैठते है। उन्होंने बिहार में पाला बदलने के बाद खुद को इसी भूमिका के लिए पेश भी किया है। वह बार-बार 2024 से पहले विपक्ष को एक करने की बात कर रहे हैं।
2- नीतीश कुमार ऐसे नेता हैं, जिनका विपक्ष के लगभग सभी नेताओं से पुराने और बेहतर संबंध रहे हैं। ममता बनर्जी, नवीन पटनायक से लेकर अरविंद केजरीवाल तक से उनके व्यक्तिगत संबंध रहे हैं। इसका उपयोग वह किंग मेकर की भूमिका में कर सकते हैं।
3-किंग मेकर की भूमिका में आने से वह मोदी से सीधा टकराव मोल लेने से बच जाएंगे। उस हालत में चुनाव नीतीश कुमार बनाम नरेंद्र मोदी नहीं होगा। नीतीश खुद और उनकी पार्टी के नेता बार-बार स्पष्ट करते रहे हैं कि वह मोदी के सामने विपक्ष की ओर से पीएम पद का चेहरा नहीं हैं।
4- किंग मेकर बनने की स्थिति में उनकी स्वीकार्यता अधिक बढ़ सकती है। नीतीश कुमार को पता है कि 2024 आम चुनाव से पहले विपक्ष के लिए किसी एक नाम पर सहमत होना आसान नहीं होगा। तीसरे मोर्चे की संभावना वह पहले ही खारिज कर चुके हैं। उन्होंने बार-बार कहा है कि एक ही मोर्चा होगा, जिसमें कांग्रेस भी होगी।
तो क्या भूमिका मिल सकती है?
अब तक संकेतों के अनुसार नीतीश कुमार को यूपीए संयोजक की भूमिका की जिम्मेदारी आम सहमति से दी जा सकती है। दरअसल विपक्षी खेमे की ओर से लंबे समय से यूपीए को नए सिरे से गठित करने और एक संयोजक बनाने की मांग होती रही है। इसके लिए पहले शरद पवार का भी नाम भी सामने आया था, लेकिन स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने इससे इनकार कर दिया। उनकी पसंद भी नीतीश कुमार हो सकते हैं। विपक्षी एकता की कोशिशों के बीच कांग्रेस ने भी संकेत दिया है कि यूपीए का विस्तार कर तमाम विपक्षी दलों की एक कमिटी बनाई जा सकती है।