जब कोई खतरा सामने दिखता है तो ये जीव जंतु अपना रंग बदल देते हैं
एक मुहावरा तो आप ने सुना ही होगा —गिरगिट की तरह रंग बदलना। इस मुहावरे का प्रयोग आप ने कई बार किया भी होगा। पर क्या आप इस बात को जानते हैं अकेला गिरगिट ही नहीं है जो रंग बदलता है कई और भी जीव- जंतु है जो बाखूबी रंग बदलते हैं। अब सवाल यह है कि ये कब रंग बदलते हैं तो जवाब भी सीधा है कि जब कोई खतरा सामने दिखता है तो ये जीव जंतु अपना रंग बदल देते हैं। चलिए आज आपको उन जीव- जंतुओं के नाम बताते हैं जो रंग बदलते हैं।
सीहॉर्स का नाम तो आप ने सुना होगा। रंग बदलने में ये जीव भी कम नहीं है। ये न केवल डरने पर, बल्कि अपनी भावनाओं के इजहार के दौरान भी रंग बदल पाते हैं। इनमें क्रोमेटेफोर्स नामक तत्व होता है, जो इन्हें तेजी से और कई तरह का रंग बदलने में मदद करता है। शिकारी सामने हो तो सीहॉर्स कुछ सेकंड्स में रंग बदल लेते हैं, वहीं साथी से मिलन के दौरान रंग धीरे-धीरे बदलता है
कई ऐसे समुद्री जीव भी हैं, जो रंग बदलने में माहिर होते हैं, इन्हीं में से एक है मिमिक ऑक्टोपस। इसे बुद्धिमान जलीय जीवों में से एक माना गया है, जो आमतौर पर प्रशांत क्षेत्र में पाए जाते हैं। ये किसी भी परिवेश में खुद को ढालने के लिए अपना रंग बदल लेते हैं। साथ ही साथ ये अपनी लचीली स्किन के कारण आकार भी बदल पाते हैं।
एक छोटा सा कीड़ा गोल्डन टॉरटॉइज बीटल तभी रंग बदलता है, जब कोई इंसान इसे छूने की कोशिश करे। डरकर ये अपना रंग बदल लेता है और आसपास की किसी चीज में घुलमिल जाता है। अपने साथी से मिलते हुए इस बीटल का रंग बदलता है। वैसे ये सुनहरे रंग के होते हैं लेकिन खास हालातों में लाल चमकीले रंग के हो जाते हैं।
उत्तरी अमेरिका में पाया जाने वाला जीव पेसिफिक ट्री फ्रॉग भी रंग बदलता है। इसके पैर काफी चिपचिपे होते हैं, जो इसे एक से दूसरे पेड़ और वातावरण में जाने में मदद करते हैं। जब यह अपने आसपास कोई खतरा महसूस करता है, तो तुरंत अपना रंग ऐसे बदल लेता है कि आसपास के पेड़-पौधों में एकदम मिल जाता है। ये मौसम के मुताबिक भी रंग बदलता रहता है, जैसे गर्मी में जब पेड़ के पत्ते पीले होते हैं, ये पीला पड़ जाता है।
फ्लाउंडर नाम की मछली अपने-आप में काफी अनोखी है क्योंकि इनका रंग बदलना किसी अंदरुनी अंग नहीं, बल्कि आंखों के जरिए होता है। ये मछली भूरे रंग की होती है लेकिन जब ये किसी दूसरे वातावरण में जाती है, जहां भूरे की बजाए किसी दूसरे रंग की बहुतायत हो, तो फ्लाउंडर की आंखें उस रंग को कैप्चर कर लेती हैं। आंखों से रंग कोशिकाओं को पहुंचाया जाता है और फिर कोशिकाएं बाहरी त्वचा को उसी रंग में ढाल लेती हैं। अगर इस मछली की आंखों को कोई नुकसान हो जाए तो ये रंग नहीं बदल पाती हैं।