यूं ही नहीं कहते वडोदरा को टैलेंट की खान… पंड्या ब्रदर्स ही नहीं, इन भाइयों ने भी क्रिकेट में मचाया है कोहराम

Brothers In Cricket In India: एक वक्त था जब पठान बंधुओं की जोड़ी इंटरनेशनल क्रिकेट में कोहराम मचा रही थी। टी-20 वर्ल्ड कप 2007 फाइनल में भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई थी। अब दौर है पंड्या ब्रदर्स का। यह जोड़ी कमाल कर रही है, लेकिन क्या आपको पता है पठान और पंड्या बंधुओं में एक खास कनेक्शन भी है। नहीं पता है, तो आइए समझते हैं…

नई दिल्ली: जब हार्दिक पंड्या ने एशिया कप में पाकिस्तान के खिलाफ छक्का मारकर भारत को जीत दिलाई, तो उनके भाई क्रुणाल का सीना गर्व से भर गया। हार्दिक के इस शॉट से पहले दिखाए गए कॉन्फिडेंस से हर कोई सरप्राइज था, लेकिन क्रुणाल नहीं। वह लंबे समय से एक छोर पर खड़े होकर दूसरे छोर पर हार्दिक को ऐसे विध्वंसक शॉट लगाते देख रहे हैं। हार्दिक और क्रुणाल एक साथ बड़ौदा की घरेलू टीम में खेलते हैं और लंबे समय तक मुंबई इंडियंस का भी हिस्सा रहे। यही नहीं, उन्होंने टीम इंडिया में भी एक साथ कई मैच खेले हैं।

यूं ही नहीं कहते बड़ौदा को टैलेंट की खान
यह जानकर हालांकि आश्चर्य होगा कि जिस शहर से वे आते हैं, वहां से कई धाकड़ भाइयों को जोड़ी हुई, जिन्होंने न केवल घरेलू टूर्नामेंट में साथ खेला, बल्कि कइयों ने तो लंबे समय तक इंटरनेशनल लेवल पर टीम इंडिया का लोहा भी मनवाया। भारत के महान क्रिकेटर विजय हजारे और उनके भाई विवेक ने 1940 के दशक में बड़ौदा के लिए रणजी खेला था। लेस्ली फर्नांडीस और उनके भाई एंथनी फर्नांडिस भी 1970 के दशक में बड़ौदा के लिए खेले। विक्रम हजारे और उनके बड़े भाई रंजीत 1972 से 1983 तक रणजी टीम का हिस्सा थे।

इरफान-युसूफ ने तो वर्ल्ड कप साथ खेला
हाल के वर्षों में सबसे पहले पठान भाइयों का नाम आता है। जहां इरफान पठान ने 2000 में प्रथम श्रेणी में पदार्पण किया, वहीं यूसुफ 2001 में रणजी टीम में शामिल हो गए। वे अंतरराष्ट्रीय ख्याति अर्जित करने वाले क्रिकेट भाइयों की दुर्लभ जोड़ी में से थे। दोनों ने मेहेंदी शेख के क्लब में प्रशिक्षण लिया और फिर बड़ौदा रणजी टीम में भी शामिल हो गए। पठान बंधुओं ने 2007 और 2009 में टी20 विश्व कप में भी भारत के लिए खेला था। उनका कहना है कि वे हमेशा एक साथ खेलने में सहज थे क्योंकि वे एक-दूसरे के खेल को जानते थे।

हार्दिक-क्रुणाल की तरह ही केदार-मृणाल की जोड़ी
हार्दिक 2013 में बड़ौदा रणजी टीम में शामिल हुए और फिर 2016 में भारत के लिए खेले। कुणाल ने 2018 में भारतीय टीम में के लिए डेब्यू किया। वे आईपीएल का भी हिस्सा हैं। पिछले सीजन कुछ मैचों में एक-दूसरे के खिलाफ खेले हैं। एक और ऐसी ही शानदार जोड़ी है, केदार और मृणाल देवधर की, जो बड़ौदा टीम के लिए एक साथ खेले हैं। बड़ौदा रणजी टीम में एंट्री पाने वाले केदार का कहना है कि मृणाल और वह क्लब स्तर पर भी एक साथ खेले। उन्होंने कहा- हम मैदान और मैदान के बाहर भी एक बहुत अच्छी बॉन्डिंग शेयर करते हैं। हम एक साथ बड़े हुए हैं।

सौरिन और स्मित से विरोधी खा जाते हैं धोखा
2017 में वडोदरा जुड़वां सौरिन और स्मित ठक्कर ने अंडर -19 कूच बिहार ट्रॉफी में ध्यान आकर्षित किया। वे इतने समान दिखते हैं कि विरोधी टीमें अक्सर धोखा खा जाती है। अब 23 साल के सौरिन बड़ौदा अंडर-25 टीम में खेलते हैं जबकि स्मित अंडर-23 टीम में हैं। सोरिन कहते हैं- विरोधियों को धोखा खाते देखने कई बार मजेदार होता है। लेकिन हम मैदान पर एक साथ अपने आउटिंग का आनंद लेते हैं।

किरण मोरे कहते हैं- यहां के पानी में ही कुछ ऐसा है
भारत के क्रिकेटर दीपक हुड्डा और उनके भाई आशीष ने भी लगभग पांच साल पहले आशीष के खेल छोड़ने से पहले वडोदरा में क्रिकेट खेला था। राजस्थान टीम में जाने से पहले दीपक बड़ौदा रणजी टीम के लिए खेलते रहे। भारत के पूर्व क्रिकेटर किरण मोरे स्टार क्रिकेट भाइयों को एक अनोखी घटना के रूप में देखते हैं। वह कहते हैं- मुझे लगता है कि यह इस शहर की खेल संस्कृति ही कुछ ऐसा है। जब एक भाई ने क्रिकेट खेलना शुरू करता है तो दूसरा से फॉलो करता है। साथ ही क्लब कल्चर की वजह से उन्हें ज्यादा मौके मिलते हैं।

अंशुमान गायकवाड़ के बेटों ने भी साथ खेला
भारत के पूर्व क्रिकेटर और राष्ट्रीय टीम के पूर्व कोच अंशुमान गायकवाड़ अपने साथी किरण मोरे से सहमत हैं और कहते हैं, ‘यहां अवसर बेहतर हैं और भाई-बहनों के लिए इस छोटे से शहर में एक साथ यात्रा करना और एक साथ क्रिकेट खेलना भी आसान है।’ उनके बेटे शत्रुंजय और अनिरुद्ध गायकवाड़ ने 1990 के दशक में वडोदरा में एक साथ क्लब क्रिकेट खेलना शुरू किया था। वे एम एस यूनिवर्सिटी टीम में भी एक साथ खेले, लेकिन अनिरुद्ध ने बाद में क्रिकेट से अलग कर लिया।
दूसरी ओर, शत्रुंजय ने क्रिकेट को आगे बढ़ाया और बड़ौदा रणजी टीम के लिए खेले। वह कहते हैं- इस शहर में क्रिकेट से लगाव जबरदस्त है। मैं अपने पिता दत्ताजीराव गायकवाड़ से क्रिकेट के बारे में सुनकर और सीखता हुआ बड़ा हुआ हूं, जो एक टेस्ट खिलाड़ी थे। मेरे बेटे भी उसी माहौल में बड़े हुए और खेल से प्यार हो गया क्योंकि हम हर समय क्रिकेट पर चर्चा करते थे।