नई दिल्ली. तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा लद्दाख का दौरा करने वाले हैं. अगस्त 2019 को जम्मू और कश्मीर को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था, जिसके बाद दलाई लामा पहली बार लद्दाख जा रहे हैं. लद्दाख जाने से पहले दलाई लामा ने गुरुवार को कहा है कि चीन में अधिक से अधिक लोग यह महसूस करने लगे हैं कि वह ‘स्वतंत्रता’ नहीं, बल्कि तिब्बती बौद्ध संस्कृति की सार्थक स्वायत्तता और संरक्षण की मांग कर रहे हैं. बातचीत के माध्यम से सभी विवादों के समाधान की वकालत करते हुए उन्होंने जोर देकर कहा कि सभी इंसान समान हैं और उन्हें ‘मेरा देश, मेरी विचारधारा’ के संकीर्ण दृष्टिकोण से ऊपर उठने की जरूरत है. यही संकीर्ण दृष्टिकोण लोगों के बीच झगड़े का मुख्य कारण है.
पिछले दो वर्षों में हिमाचल प्रदेश के बाहर दलाई लामा का यह पहला दौरा है. भारी बारिश के बावजूद बड़ी संख्या में पहुंचे दलाई लामा के अनुयायियों ने जम्मू में उनका गर्मजोशी से स्वागत किया. जम्मू पहुंचने के तुरंत बाद दलाई लामा ने चीन को यह संदेश देने की कोशिश की कि वह तिब्बत की संपूर्ण स्वतंत्रता की तलाश में नहीं हैं, बल्कि तिब्बती बौद्ध परंपरा के संरक्षण और चीन के भीतर एक महत्वपूर्ण स्वायत्तता चाहते हैं. तिब्बती धर्मगुरु ने कहा कि कुछ चीनी कट्टरपंथी मुझे अलगाववादी और प्रतिक्रियावादी मानते हैं और हमेशा मेरी आलोचना करते हैं. लेकिन अब, ज्यादा संख्या में चीनी महसूस कर रहे हैं कि दलाई लामा स्वतंत्रता की मांग नहीं कर रहे हैं और केवल (तिब्बत को) सार्थक स्वायत्तता और तिब्बती बौद्ध संस्कृति के संरक्षण की कामना कर रहे हैं.
‘तिब्बती बौद्ध धर्म ज्यादा साइंटिफिक’
अपनी यात्रा पर चीन की आपत्ति के बारे में पूछे जाने पर धर्मगुरु दलाई लामा ने कहा कि यह सामान्य बात है, चीनी लोग आपत्ति नहीं कर रहे हैं, बल्कि अधिक से अधिक चीनी, तिब्बती बौद्ध धर्म में रुचि दिखा रहे हैं. कुछ चीनी विद्वान यह महसूस कर रहे हैं कि तिब्बती बौद्ध धर्म ज्यादा साइंटिफिक है. चीजें अब बदल रही हैं.
बता दें कि दलाई लामा का असली नाम तेनजिन ग्यात्सो (Dalai Lama Tenzin Gyatso) है. दलाई लामा को 1989 में नोबेल शांति पुरस्कार मिल चुका है. तिब्बत के लिए स्वतंत्रता की उनकी वकालत के लिए दुनिया भर में उनका सम्मान किया जाता है.