मिट्टी और घास के मिश्रण से तैयार किए गए बर्तनों में नेचुरल प्रिजर्वेटिव होते हैं, जो फलों और सब्जियों को तरोताजा रखने में मदद करते हैं। यही इस तकनीक का वैज्ञानिक पहलू है।
अब फ्रिज के बिना भी फलों और सब्जियों को हफ्ते तक तरोताजा रखा जा सकेगा। सिरमौर के सरकारी स्कूल के बच्चों ने अपने शिक्षक के साथ मिलकर इस तकनीक को विकसित किया है। इस पर न तो किसी तरह का कोई खर्च आएगा और न ही यह विधि जटिल है। मिट्टी और घास पर आधारित इस तकनीक का ट्रायल सफल रहा है। अब मिड-डे मील में इसका इस्तेमाल किया जाएगा।
माजरा शिक्षा खंड के नौरंगाबाद स्कूल के बच्चों ने मुख्याध्यापक संजीव अत्री के मार्गदर्शन में मिट्टी, शैवाल, भूसे और साल के वृक्ष की पत्तियों को मिलाकर देसी प्राकृतिक परिरक्षक तैयार किए हैं। मिट्टी के इन बर्तनों में हफ्तेभर के लिए अधिक जल वाली सब्जियों और फलों को बंद करके रखा गया।
सप्ताह बाद जब इन्हें खोला गया तो सब्जियां पूरी तरह से तरोताजा निकलीं। इनके स्वाद में भी कोई अंतर नहीं आया। एक तरह से यह प्रयोग देसी फ्रिज का काम करेगा। दावा यह भी है ऐसे बर्तनों में रखे गए फलों और सब्जियों को तीन महीने तक भी ताजा रखा जा सकता है। फिलहाल, इस पर और प्रयोग किया जा रहा है।
क्या है तकनीक
दरअसल मिट्टी और घास में प्राकृतिक परिरक्षक विद्यमान होते हैं। मिट्टी वातानुकूलित (एयर कंडिशनर) का कार्य करती है। जबकि, घास नमी को बरकरार रखने में मदद करता है। मिट्टी और घास के मिश्रण से तैयार किए गए बर्तनों में नेचुरल प्रिजर्वेटिव होते हैं, जो फलों और सब्जियों को तरोताजा रखने में मदद करते हैं। यही इस तकनीक का वैज्ञानिक पहलू है।
टमाटर, भिंडी और अंगूर पर किया प्रयोग सफल
मुख्याध्यापक संजीव अत्री ने बताया कि ईको क्लब के साथ मिलकर उन्होंने मिट्टी के गुणों पर आधारित यह नेचुरल प्रिजर्वेटर बनाए हैं। इनके अच्छे परिणाम भी सामने आए हैं। सबसे पहले इन पात्रों में ऐसे फलों व सब्जियों को प्रयोग के लिए चुना गया, जिनमें पानी की अधिकता होती है। हरे टमाटर, भिंडी, अंगूर को पांच से सात दिन तक इन पात्रों में रखा गया और ढक्कन खोलने पर ये सब उसी अवस्था में पाए गए।