साथ ही बीज की कीमत 8000 रुपये प्रति किलो तय की है।
बेहद आसान है इसकी खेती, लागत और मेहनत भी कम विभाग की तरफ से एक पौधे की कीमत 50 रुपये तय की गई है। इस पौधे को बरसात के समय में एक एक फीट के गड्ढे खोदकर आसानी से लगाया जा सकता है। आठ से दस माह की उम्र के पौधे के रोपण के समय गड्ढे में गोबर की खाद इसके पोषण के लिए पर्याप्त है। इसके बाद प्राकृतिक तरीके से यह अपना पोषण जमीन से प्राप्त करेगा। उप उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों की जलवायु इसके पोषण के लिए अपने आप में अनुकूल है।
बेहद ही कम लागत में किसान दो मीटर की दूरी पर पहाड़ीनुमा और समतल खेतों में इसे लगा सकते है। मसलन खेतों में यदि फसल उगानी है तो पहाड़ीनुमा मेढ़ों पर इसे उगाया जा सकता है। यह सर्व प्लांट है, जिसे झाड़ीनुमा पौध भी कहा जाता है। चौड़ाई में इस पौधे का दायरा एक मीटर तक होता हे।
मांग भरने और साज सज्जा में ही नहीं, बल्कि दवाईयों के निर्माण में भी प्रयोग सिंदूर के पौधे को इसके औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। सुहागिन महिलाओं को इसका खास महत्व है। मांग भरने से लेकर विभिन्न सौंदर्य प्रसाधनों लिपस्टिक बनाने, बाल रंगने और नेल पॉलिश आदि में भी सिंदूर का इस्तेमाल होता है। सिंदूर का पौधा औषधीय गुणों का भंडार है। इन औषधीय गुणों के चलते कई दवाइयों के निर्माण में इसका इस्तेमाल भी होता है। यह एंटीपायरेटिक, एंटीडायरल, एंटी डायबिटिक औषधि का कार्य भी करता है। इसका रस महत्वपूर्ण दवाइयां बनाने के लिए प्रयोग किया जाता हैै।
इतना ही नहीं फीवर, डायरिया, मलेरिया और जख्म के इलाज तथा यह खून की गति बढ़ाने के लिए और रक्त शोधन, हृदय की शक्ति बढ़ाने में रामबाण औषधि के रूप में काम करता है। औषधियों के साथ फूड इंडस्ट्री में इसका इस्तेमाल इन दिनों खूब हो रहा है। चीज बटर अथवा राइस की कलरिंग के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।
दो से आठ मीटर तक होती है पौधे की ऊंचाई
सिंदूर की खेती उन किसानों के लिए बेहतर विकल्प है जो जंगली और बेसहारा पशुओं की उजाड़ से तंग होकर खेत खलियानों को उजाड़ रखने को मजबूर है। सिंदूर की खेती को उजाड़ का भी कोई खतरा नहीं है। पशु और पक्षी इसे नहीं उजाड़ते हैं, ऐसे में किसानों के लिए आमदनी का यह बेहतर जरिया है।
प्रदेश से बाहर रहने वाले वह लोग जो नौकरी की वजह से मौसमी खेती नहीं कर पाते है उनके लिए भी खेती का आसान जरिया है। एक दफा पौधे रोपित करने के बाद इसकी खेती में अधिक मेहनत नहीं है ऐसे में लोग बेहद कम मेहनत से उजाड़ हो चुके खेतों में फिर कमाई का जरिया खोज सकते हैं। इस पौधे की ऊंचाई लगभग दो से आठ मीटर तक होती है।
बीज की अंकुरण क्षमता कम, सरबाईवल रेट बेहतर हिमाचल प्रदेश के आयुष विभाग की उप उष्णकटिबंधीय जोन हमीरपुर में स्थित हर्बल गार्डन नेरी के इंचार्ज डॉ कमल भारद्वाज का कहना है कि बीजों के अंकुरण की क्षमता फिलहाल कम है। बीज के अंकुरण की प्रतिशतता 17 से 22 फीसदी के बीच है, जिसे बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। हर्बल गार्डन में लगे सिंदूर पौधे से इस साल बीज अप्रैल 2022 में एकत्रित किए गए थे, जिससे 34 पौधे अंकुरित हुए है।
बेशक इन पौधों का अंकुरण प्रतिशत कम है लेकिन जलवायु अनुकूल होने के चलते आठ से दस माह बाद जब किसानों को जब यह वितरित होगा तो इसके सरवाईबल रेट बेहतर होगा। 60 दिन में इसका बीज पौधे के रूप में अंकुरित होता है और फिर इसे पौली बैग डाल दिया जाता है। सात से आठ माह के बाद किसान को यह पौधा वितरित किया जा सकता है। फिलहाल गार्डन में वितरण के लिए पर्याप्त पौधे नहीं है लेकिन दो अथवा तीन साल में किसानों को यह पौधे उपलब्ध होने की संभावना है।