‘ऐ मेरे वतन के लोगों..’, कवि प्रदीप कौन? जिनका कालजयी गीत गाकर लता जी को पहली बड़ी ख्याति मिली

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‘ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा याद करो कुर्बानी…’ देश भर में शायद ही ऐसा कोई शख्स हो जिसकी जुबान ने कभी ये गीत गुनगुनाया ना हो या जिसके कानों ने कभी इसे सुना ना हो. भारत और चीन के बीच हुई जंग के दौरान शहिद हुए सैनिकों के सम्मान में लिखा गया ये गीत आज भी हमारी आंखें नम कर जाता है. आपने इस देशभक्ति गीत को तो बहुत बार सुना होगा लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसे लिखा किसने था?

कवि प्रदीप कौन? जिनके गीत ने लता को मशहूर किया 

Kavi Pradeep Facebook

नहीं जानते तो अब जान लीजिए कि इस सदाबहार देशभक्ति गीत को लिखने वाली कलम थी कवि प्रदीप की. इस महान कवि और गीतकार का जन्म 6 फरवरी 1915 को मध्यप्रदेश के उज्जैन के बड़नगर में हुआ था. रामचंद्र नारायण जी द्विवेदी आगे चल कर कवि प्रदीप के नाम से जाने गए. 1940 में रिलीज हुई फ़िल्म बंधन ने कवि प्रदीप को फिल्म जगत में पहचान दिलाई. इसके बाद 1943 में जब फिल्म किस्मत रिलीज हुई तो इसके एक गीत दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है ने लोगों के दिलों में घर कर लिया और लोगों की इसी मोहब्बत ने कवि प्रदीप को देशभक्त रचनाकारों की सूची में प्रथम स्थान पर लाकर खड़ा कर दिया. 

एक गीत ने अंग्रेजी हुकूमत को डरा दिया था 

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वो कवि प्रदीप ही थे जिन्होंने साबित किया कि स्वतंत्रता की लड़ाई में क्रांति का एक जरिया शब्द भी हो सकते हैं. इसी गीत का प्रभाव था कि उस वक़्त अंग्रेजी हुकूमत ने कवि प्रदीप को गिरफ्तार करने के आदेश तक दे दिए थे. बताया जाता है कि उस समय कवि प्रदीप की गिरफ्तारी की मुहीम इतनी तेज थी कि उन्हें कई दिनों तक छिपकर रहना पड़ा था.

एक से बढ़ कर एक देशभक्ति गीत लिखे

Kavi Pradeep Dil se Desi

कवि प्रदीप सिर्फ ए मेरे वतन के लोगों या हिंदुस्तान हमारा है गीतों के लिए नहीं जाने जाते. उनकी कलम ने ऐसी ऐसी रचनाएं दीं जो लोगों के दिल में घर कर गईं. उन्होंने इन दो गीतों के अलावा कितना बदल गया इंसान, इंसान का इंसान से हो भाईचारा, आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की, दे दी हमें आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल जैसे कई देशभक्ति से ओतप्रोत गीत लिखे. 

अपनी कलम को बनाया अपना हथियार 

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कवि प्रदीप ने ये साबित किया कि रचनाओं के माध्यम से इंसान अमर हो सकता है. आज के आधुनिक युग में भी उनके गीतों को सुना और पसंद किया जाता है और यही उदाहरण है उनके अमर हो जाने का. कवि प्रदीप ने उस समय अपनी कलम को अपना हथियार बनाया जब हिंदुस्तान गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था. 

उन्होंने अपने गीतों में देशभक्ति कूट कूट कर भरी और इनके माध्यम से लोगों के दिलों में देशभक्ति की भावना को और मजबूत किया. गुलामी के अंधकार को अपने गीत रूपी किरणों से रोशन करने वाला ये सूर्य 11 दिसंबर 1998 को अस्त हो गया. कवि प्रदीप को इस दुनिया से विदा लिए हुए आज 23 साल पूरे हो चुके हैं लेकिन उनके गीतों ने उन्हें आज भी हमारे दिलों में जिंदा रखा है.