Old – Gold Cities : The story of Ujjain where many dynasties ruled, one of the 07 holy cities

उज्जैन का महाकाल मंदिर

उज्जैन का महाकाल मंदिर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 नवंबर को उज्जैन में महाकाल मंदिर में कॉरीडोर का उद्घाटन करेंगे. महाकाल मतलब शिव की नगरी. उज्जैन प्राचीन नगरी है पवित्र नगरी है. कालीदास की नगरी है. इस नगर पर हमेशा शिव का आर्शीवाद रहा है. इसलिए सदियों से इसका महत्व रहा है और आगे भी रहेगा. ये ऐसा शहर है, जिसने सदियों से लोगों को आकर्षित किया है. आज भी करती है. ये नगरी ऐसी नगरी है, जो एक नहीं दो दो ज्योर्तिलिंग के महत्व से सज्जित है.

पहले तो इस शहर के इतिहास के बारे में जानते हैं. फिर इससे जुड़ी हुई दूसरी बातें जानेंगे. देश में 07 शहर बहुत पवित्र माने जाते हैं, उसमें ये एक है. यहां कई राजवंशों ने शासन किया. ये भी कह सकते हैं कि ये नगरी कभी किसी एक की नहीं रही.

प्रद्योत और नंद, मौर्य और शुंग, मालवा और शक, वाकाटक, परमार राजकुलों ने समय समय पर इस पर राज किया. उज्जैन का इतिहास करीब 2500 साल पहले बुद्ध के समय शुरू होता है. जिस ग्रीक की कहानी में ट्राई का घोड़ा जैसी कहानी का जिक्र आता है, उसी तरह उज्जैन में एक हाथी का जिक्र आता है, तब जब इस पर प्रद्योत का शासन था.

राजा प्रद्योत से शुरू होती है कहानी 
प्रद्योत ने धीरे धीरे अपना राज्य खूब बढ़ा लिया. दूसरे राजा उसके विस्तार से डरने लगे. लेकिन प्रद्योत की नजर पड़ोस के कौशांबी राज्य पर थी. जिसका राजा उदयन जितना विलासी था उतना ही वीर भी. उसके बारे में कहा जाता था कि वह वीणा बजाने और हाथी के शिकार में बहुत कुशल था. वीणा बजाकर हाथी पकड़ा करता था.

ट्राए के घोड़े जैसी हाथी की कहानी यहां की भी
उसकी इस कमजोरी को प्रद्योत ने अपना हथियार बनाया. अवंती और उदयन के राज्य वत्स की सीमा पर नकली हाथी छोड़ा गया, जिसने उदयन को लुभा लिया. दरअसल इस हाथी के अंदर हथियारबंद सिपाही थे. जैसे ही उदयन ने इस हाथी को पकड़ा, वैसे ही उसके अंदर बैठे सिपाहियों ने बाहर आकर उसे कैद कर लिया. महिनों उदयन उज्जैन की कैद में रहा.

वासवदत्ता और उदयन का प्यार
प्रद्योत की बेटी का नाम वासवदत्ता था, जिसकी खूबसूरती और संगीतकला की चर्चाएं पौराणिक कथाओं में हुई है. प्रद्योत ने कैदी राजा उदयन को अपनी बेटी के वीणा सिखाने का काम दिया. वीणा सीखते और सिखाते दोनों में प्रेम हो गया. एक दिन हाथी पर वासवदत्ता को लेकर उदयन कौशांबी भाग गया. और वत्स राज्य फिर आजाद हो गया.

गुप्त वंश का शासन
फिर उज्जैन पर मगध के नन्दों का राज हुआ. जब चाणक्य और चंद्रगुप्त ने मिलकर नन्दों का संहार किया तो उज्जैन पर भी उसका अधिकार हो गया. चंद्रगुप्त ने उज्जैन को अपनी राजधानी बनाया. सम्राट अशोक उसका पोता था और प्रसिद्ध राजा होने से पहले वह उज्जैन का ही शासक रहा.

एक जमाने में उज्जैन समुद्र से आने वाले माल और उत्तर से समुद्र की ओर जाने वाले माल की सबसे बड़ी मंडी बन गया. पूरे एशिया से लेकर यूरोप तक उज्जैन की ख्याति फैलने लगी.

विक्रमादित्य की मशहूर जीत पर विक्रम संवत शुरू हुआ
जब मौर्य शासन का अंत हुआ तो मालवा ने इस पर कब्जा किया, तब इसका नाम भी बदला, जो अवंति से मालवा हो गया. मालवा दरअसल पंजाब के वीर किसान थे, जिन्होंने मौर्यों के खिलाफ लोहा लिया था. विदेशी भी उज्जैन आए. उमें शक पहले आए. वो सिंध से झुंड के झुंड होकर उज्जैन पहुंचे लेकिन मालवों से नहीं जीत पाए. मालव जब जीते तब उनके मुखिया विक्रमादित्य ने उसी जीत की यादगार में प्रसिद्ध विक्रम संवत चलाया. जो आज भी देश में चलता है, जिसका दूसरा नाम मालव संवत भी है

शक ने यहां संस्कृत को राजभाषा बनाया
लेकिन शक ने ताकत बटोर कर फिर उज्जैन को अपने कब्जे में कर लिया. शक के कुल पांच राजकुल कायम हुए. उन्हीं में एक मालवा और उज्जैन का स्वामी हुआ. शक तो विदेशी थे लेकिन इस देश में बसकर उन्होंने देश के रीतिरिवाज, भाषा आदि अपना ली. शक राजाओं ने संस्कृत को राजभाषा बनाया.

वैभव और व्यापार की नगरी
कुछ समय बाद गुप्त सम्राट जब देश में ताकतवर हुए तो उन्होंने मालवा और उज्जैन को जीत लिया. उन्होने भी उज्जैन को राजधानी बनाया. समुद्री व्यापार बढ़ने लगा. उज्जैन बड़ा बाजार बना. कहा जाता है कि उस समय उज्जैन सारे व्यापार वैभव का स्वामी बन गया.

कालीदास लंबे समय तक यहां रहे
चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने शकों का मालवा में अंत किया. विक्रमादित्य के नवरत्नों में एक महाकवि कालीदास लंबे समय तक उज्जैन में रहे. उनकी रचनाओं में बार बार उज्जैन का बखान हुआ है. प्राचीन काल से काशी की तरह उज्जैन के महाकाल शिव की महिमा थी. कालीदास ने इसका सुंदर वर्णन मेघदूत में किया है.

परमार राजाओं ने भी उन्नति दी
उज्जैन को तो फिर किसी और के पास जाना था लिहाजा जब चीन से आई भयानक हूण जाति ने गुप्त के साम्राज्य को तहस नहस कर दिया तो कुछ समय के लिए उज्जैन उनके पास भी गया. लेकिन इसके बाद भी उथल पुथल होती रही. हालांकि उज्जैन की ख्याति को चार चांद लगाया परमार राजाओं ने. ये राजा मुंज थे, जो राजा भोज के चाचा थे. उज्जैन फिर उन्नति करने लगा. हालांकि फिर हालात डांवाडोल हुई और होती रही. उज्जैन को शत्रुओं ने कई बार बुरी तरह लूटा भी.

उज्जैन पर अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक काफूर का कब्जा भी हुआ. फिर अफगान सुल्तान इसके स्वामी हुए. कुछ समय ये इलाका मेवाड़ के राणाओं के अधिकार में आया. अकबर ने इसके अपने राज में मिलाया.

उज्जैन के संदीपनी आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण ने कई कलाएं सीखी थीं.

कुल मिलाकर उज्जैन ने वैभव और पतन दोनों देखे लेकिन महाकाल ने इस नगरी को हमेशा सुरक्षित भी रखा. इसका ज्ञान और वैभव भी आता जाता रहा लेकिन कभी खत्म नहीं हुआ. ये शहर सदियों का गौरव लिया हुआ है.

उपजाऊ भूमि 
यहां की भूमि उपजाऊ है. उज्जैन नगर और अंचल की प्रमुख बोली मीठी मालवी है. साथ में हिंदी भी बोली जाती है. पुराणों व महाभारत में भी इस शहर का उल्लेख आता है.

12 साल में लगता है महाकुंभ
उज्जैन में हर 12 साल पर सिंहस्थ महाकुंभ मेला लगता है. भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल इस शहर में है. उज्जैन के प्राचीन समय में कई नाम थे-अवन्तिका, उज्जयनी, कनकश्रन्गा आदि. वैसे ये मध्य प्रदेश का पांचवां बड़ा शहर है. अब यहां प्रशासन का पूरा अमला रहता है. देशभर से रेल, सड़क और हवाई यातायात साधनों से ये शहर अच्छी तरह जुड़ा हुआ है.

मराठों ने लौटाया शहर का वैभव
सन 1737 में उज्जैन सिंधिया वंश के अधिकार में आया उन्होंने इस शहर का खोया वैभव लौटाया. उसी दौरान महाकालेश्वर मंदिर का फिर से निर्माण हुआ.

उज्जैन में बहुत से मंदिर
उज्जैन में आज भी कई धार्मिक पौराणिक एवं ऐतिहासिक स्थान हैं, जिनमें भगवान महाकालेश्वर मंदिर, गोपाल मंदिर, चौबीस खंभा देवी, चौसठ योगिनियां, नगर कोट की रानी, हरसिध्दि मां, गढ़कालिका, काल भैरव, विक्रांत भैरव, मंगलनाथ, सिध्दवट, मजार-ए-नज़मी, बिना नींव की मस्जिद, गज लक्ष्मी मंदिर, बृहस्पति मंदिर, नवगृह मंदिर, भूखी माता, भर्तृहरि गुफा, पीरमछन्दर नाथ समाधि, कालिया देह महल, कोठी महल, घंटाघर, जन्तर मंतर , चिंतामन गणेश आदि प्रमुख हैं. आमतौर पर इस शहर की इकोनॉमी पर्यटन पर ज्यादा टिकी रहती है.