Madhya Pradesh News: कभी मजदूरी करने वाली सुनीता आदिवासी अपने बीते दिनों को याद करती हैं और वर्तमान की स्थिति की तुलना करती हैं तो उनकी आंखें नम हो जाती हैं। वे कहती हैं कि कभी उन्हें मजदूरी के लिए परेशान होना पड़ता था, लेकिन आज वे खुद मालिक बन गई हैं। हर महीने 70 हजार से ज्यादा रुपये कमा रही हैं। उनकी साल भर की आमदनी 10 लाख से ज्यादा है।
भोपाल: गरीब, कमजोर वर्ग की जिंदगी में बदलाव लाने के लिए चलाया जा रहा आजीविका मिशन नई इबारत लिख रहा है। मध्यप्रदेश में इस अभियान के तहत बने स्व-सहायता समूह ने कई महिलाओं को मजदूर से मालिक बनने का मौका दे दिया है। इस बदलाव ने उनकी जिंदगी को न केवल खुशियों से भरा है बल्कि वे अपने साथियों को भी नया रास्ता दिखाने का काम कर रही हैं। इन स्व-सहायता समूह से जुड़ी एक हैं श्योपुर की सहरिया आदिवासी सुनीता। यह कभी 30 से 50 रुपये की प्रतिदिन मजदूरी किया करती थी लेकिन आज वे मालिक बन गई हैं। हर महीने 70 हजार से ज्यादा रुपये कमा रही हैं।
सुनीता आदिवासी की कैसे बदली जिंदगी
सुनीता ने बताया कि स्व-सहायता समूह से जुड़कर 70 हजार का कर्ज लिया, जिससे उन्होंने आटा चक्की स्थापित की। आटा चक्की ऐसी चली कि वे हर महीने 30 हजार रुपये से ज्यादा कमाने लगीं। फिर उन्होंने कर्ज ली हुई रकम चुकाई और आगे बढ़ी। आगे उन्होंने 50 हजार का कर्ज लेकर खेती के काम में लगाया और ट्यूबवेल खुदवाया। इतना ही नहीं उन्होंने ढाई बीघा जमीन में अमरूद का बागान लगाया। इसके अलावा एक फोरव्हीलर खरीद चुकी हैं, जिसे आजीविका गाड़ी कहती हैं।
कभी दो जून की रोटी के लिए करती थी मशक्कत अब खुद बनीं मालिक
सुनीता आदिवासी अपने बीते दिनों को याद करती हैं और वर्तमान की स्थिति की तुलना करती हैं तो उनकी आंखें नम हो जाती हैं। वे कहती हैं कि कभी उन्हें मजदूरी के लिए परेशान होना पड़ता था, लेकिन आज वे खुद मालिक बन गई हैं। हर महीने 70 हजार से ज्यादा रुपये कमा रही हैं। उनकी साल भर की आमदनी 10 लाख से ज्यादा है। ऐसी ही कुछ कहानी है शयोपुर जिले के कराहल की। जहां राधास्वामी स्व-सहायता ग्रुप की कलिया बाई कुशवाहा बताती हैं कि जब से वो इस समूह से जुड़ी हैं, उनकी जिंदगी में बदलाव का दौर शुरू हुआ।
मध्य प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से मिल रहा फायदा
कलिया बाई कुशवाहा ने कहा कि कई बार तो पहले ऐसे दिन आ जाते थे जब उन्हें दो वक्त का खाना भी नसीब नहीं होता था। वे और उनके पति मिलकर मुश्किल से डेढ़ सौ रुपये प्रतिदिन कमाते थे। आज स्थितियां बदली हैं। उन्होंने स्व सहायता समूह से कर्ज लिया और फिर एक हाथ ठेला खरीदा। जिसके साथ बर्फ का गोला बनाकर, जिसे आइसक्रीम भी कहते हैं, बेचना शुरू किया और सिलाई मशीन खरीदी। धीरे-धीरे स्थितियां बदली और आज वे खुद मालिक बन गई हैं।