प्रदेश अचल संपत्ति नियामक प्राधिकरण (रेरा) ने बैम्लोई डवेलपमेंट और डीएलएफ कंपनी पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। प्राधिकरण ने 2.48 करोड़ की राशि पर 22 अगस्त 2013 से 10 फीसदी ब्याज देने के आदेश दिए हैं।
हिमाचल प्रदेश अचल संपत्ति नियामक प्राधिकरण (रेरा) ने बैम्लोई डवेलपमेंट और डीएलएफ कंपनी पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। प्राधिकरण ने 2.48 करोड़ की राशि पर 22 अगस्त 2013 से 10 फीसदी ब्याज देने के आदेश दिए हैं। कंपनी को ब्याज की राशि का भुगतान दो महीनों के भीतर शिकायतकर्ता दंपती को करना होगा। डॉ. श्रीकांत बाल्दी की अध्यक्षता वाली पीठ ने दिल्ली की दंपती की शिकायत पर यह आदेश पारित किए। अमित मित्तल और पत्नी सतविंदर मान ने वर्ष 2010 में शिमला में डीएलएफ कंपनी से एक फ्लैट खरीदने की योजना बनाई। इसके लिए दंपती ने हिमाचल प्रदेश काश्तकारी और भूमि सुधार अधिनियम की धारा 118 में राज्य सरकार से जरूरी स्वीकृति ली। अनुबंध की शर्तों के अनुसार कंपनी को इस फ्लैट का स्वामित्व दो वर्ष में शिकायतकर्ता को देना था। कंपनी की ओर से इस फ्लैट की कीमत 2.56 करोड़ रखी गई थी।
शिकायतकर्ता दंपती ने कुल राशि की 95 फीसदी राशि कंपनी के पास जमा करवाई। 2 करोड़ 48 लाख रुपये दिए जाने के बावजूद उन्हें दो महीने के भीतर फ्लैट का स्वामित्व नहीं लिया गया। दंपती के बार-बार आवेदन करने पर कंपनी ने 10 महीने बाद मालिकाना हक दिया। मालिकाना हक देरी से दिए जाने पर दंपती ने पीठ के समक्ष शिकायत दर्ज की। पीठ ने पाया कि कंपनी ने अनुबंध के अनुसार दो वर्षों के भीतर रिहायशी मकान का मालिकाना हक दंपती को नहीं दिया गया। इस देरी के लिए दंपति मूल राशि पर ब्याज का हक रखती है। डीएलएफ कंपनी ने अपने बचाव पक्ष में कहा कि उच्च न्यायालय में याचिका लंबित होने के कारण इस संपत्ति का मालिकाना हक देने में देरी हुई है। पीठ ने पाया कि कंपनी ने जानबूझकर यह तथ्य शिकायतकर्ता दंपति से छिपाया है कि इस संपत्ति से संबंधित मामला प्रदेश हाईकोर्ट में चल रहा है। प्राधिकरण ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद शिकायतकर्ता पति-पत्नी को ब्याज लेने का हकदार ठहराया है।
शुरू से ही विवादों में रही डीएलएफ कंपनी
रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ शुरू से ही विवादों में रही है। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल शासन के दौरान निर्माण फर्म बहुचर्चित रह चुकी है। कंपनी की ओर से बैम्लोई परियोजना के लिए बरती गई अनियमितताओं को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी। अदालत ने कंपनी को पानी और बिजली कनेक्शन के संबंध में एनओसी देने से रोक दिया था। वर्ष 2020 में हिमाचल सरकार ने कंपनी को पूर्णता प्रमाण पत्र जारी किया था। बैम्लोई बिल्डर्स के खिलाफ यहां पर वन कानूनों को ताक पर रखने जैसे आरोप भी लगे। मामला विजिलेेंस जांच के लिए भी पहुंचा था।
बिना अनुमति सड़क बनाने पर प्रधान सचिव वन, लोक निर्माण विभाग को नोटिस
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने बिना अनुमति के आठ किलोमीटर सड़क बनाने पर संज्ञान लिया है। ट्रिब्यूनल ने हिमाचल प्रदेश के प्रधान सचिव वन और लोक निर्माण विभाग को नोटिस जारी कर 29 सितंबर तक जवाब तलब किया है। न्यायिक सदस्य अरुण कुमार त्यागी और सदस्य अफरोज अहमद ने लाहौल-स्पीति निवासी राम सिंह की शिकायत पर यह कार्रवाई की है। स्थानीय निवासी राम सिंह ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को पत्र लिखा था। पत्र में आरोप लगाया गया कि लोक निर्माण विभाग के अधिशाषी अभियंता काजा ने बिना अनुमति के ही आठ किलोमीटर सड़क बनाई है।
पोती मैदान से धनकड़ को जोड़ने वाली इस सड़क को बनाने के लिए वन विभाग से जरूरी अनुमति नहीं ली गई है। सड़क बनाने के लिए वन भूमि का खोदान और पेड़ों को कटान अवैध तरीके से किया गया है। पत्र में लगाए गए आरोपों की जांच के लिए ट्रिब्यूनल ने संयुक्त कमेटी का गठन किया था। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस सड़क को बनाने के लिए वन विभाग की अनुमति नहीं ली गई। कमेटी की इस रिपोर्ट के आधार पर ट्रिब्यूनल ने यह आदेश पारित किए।