शीर्ष दफ्तर से लीक होते थे सुरक्षा बलों के ‘ऑपरेशन’, सदमे में पहुंचे घाटी के इन दलों का कौन बनेगा ‘बूथ मैनेजर’

जम्मू कश्मीर के राजनीतिक एवं सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ कैप्टन अनिल गौर (रिटायर्ड) ने बताया, खुद अपने गुनाह कबूल कर यासीन मलिक, अब ‘मकबूल भट्ट’ और ‘अफजल गुरु’ की तरह कश्मीर का ‘शहीद’ बनना चाहता है। उसका प्रयास है कि इससे घाटी में कम हो रहे आतंकवाद को दोबारा से प्राणवायु मिल सकती है…

यासीन मलिक, जम्मू-कश्मीर से लेकर केंद्र की राजनीति में दखल रखने वाले कई नेताओं की ‘आंखों का तारा’ था। एनआईए के केस में अब उसे आजीवन कारावास की सजा दी गई है। माना जा रहा था कि यासीन की सजा के विरोध में, खासतौर पर घाटी में बड़ा विरोध प्रदर्शन होगा। हालांकि ऐसा कुछ नहीं हुआ। श्रीनगर स्थित यासीन मलिक के घर के सामने खड़े होकर दर्जनभर लड़कों ने पत्थर फेंकने की रस्म पूरी की। पुलिस ने उनमें से दस को पकड़ लिया है।

जम्मू-कश्मीर की राजनीति को करीब से समझने वाले जानकारों का कहना है कि यासीन की सजा से कश्मीर में आतंकियों से जुड़ा एक दौर समाप्त हो गया है। कभी ‘यासीन मलिक’ के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार के शीर्ष कार्यालय से सुरक्षा बलों के ऑपरेशन लीक होते थे। आज पाकिस्तान सदमे में है, तो घाटी में वे दल भी मायूस हैं जो यासीन को अपना ‘बूथ मैनेजर’ बनाकर मत पेटियां भरवा लेते थे। जानकारों के अनुसार, अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद भविष्य में दोबारा से कोई यासीन मलिक बन सकेगा, अब ऐसी संभावना क्षीण हो चली है।

अफजल गुरु के बाद कश्मीर का ‘शहीद’ बनेगा ‘यासीन’!

जम्मू कश्मीर के राजनीतिक एवं सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ कैप्टन अनिल गौर (रिटायर्ड) ने बताया, देखिये अब आतंक का एक अध्याय समाप्त हो गया है। यह बात जरूर है कि यासीन मलिक को मिले आजीवन कारावास से घाटी के कई ‘नेता’ गहरे सदमे में हैं। ये बात तो वैसे जगजाहिर है कि यासीन मलिक की सजा, पाकिस्तान के लिए भी किसी सदमे से कम नहीं है। खुद अपने गुनाह कबूल कर यासीन मलिक, अब ‘मकबूल भट्ट’ और ‘अफजल गुरु’ की तरह कश्मीर का ‘शहीद’ बनना चाहता है। उसका प्रयास है कि इससे घाटी में कम हो रहे आतंकवाद को दोबारा से प्राणवायु मिल सकती है। अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद अब जम्मू कश्मीर में वैसा कुछ नहीं होने वाला। वो दौर चला गया है। लोग अब अमन-चैन को पसंद कर रहे हैं। कश्मीर में मौजूद जो थोड़े बहुत लोग, आतंकियों के समर्थक बनते हैं, उनके भी कुछ ही दिन बचे हैं। सुरक्षा बलों की टीम देर सवेर कभी भी उनके यहां दस्तक दे सकती है।

यासीन को जब मालूम हुआ, ‘स्टेट’ के खिलाफ जंग संभव नहीं

जम्मू-कश्मीर में एक वह समय भी आया, जब यासीन खुद को गांधी साबित करना चाहता था। 90 के दशक में तो उसने सीधे ही बंदूक उठा ली थी। उससे पहले 1984 में जब आतंकी मकबूल भट्ट को फांसी पर चढ़ाया गया, तो मलिक ने उसका जमकर विरोध किया। मकबूल के समर्थन में अपने पोस्टर लगा दिए। वह गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में उसने 1986 में इस्लामिक स्टूडेंट लीग ज्वाइन कर ली। उसका महासचिव बना गया। कश्मीर की आजादी की लड़ाई के लिए उसने इस संगठन में अब्दुल हामीद शेख और जावेद मीर जैसे आतंकियों के साथ काम किया। 1987 के विधानसभा चुनाव में मोहम्मद युसूफ शाह, जिसे आज पाकिस्तान में ‘सैयद सलाहुद्दीन’ कहा जाता है, यासीन ने उसके समर्थन में प्रचार किया। युसूफ शाह हार गया। गैर मुस्लिमों को टारगेट किया जाने लगा।

1988 में वह जेकेएलएफ से जुड़ गया। कश्मीर की आजादी के नाम पर युवाओं को गुमराह करने लगा। एयरफोर्स के चार सदस्यों को मारने और रुबिया सईद के अपहरण में उसका नाम आ गया। कैप्टन अनिल गौर (रिटायर्ड) कहते हैं, इसके बाद उसे बचाए रखा गया। उसी का नतीजा है कि 30 साल बाद भी टाडा के दो मामलों में अदालत का फैसला अभी तक नहीं आ सका। अब यासीन को पता लग चुका था कि ‘स्टेट’ के खिलाफ जंग संभव नहीं है। गांधी बनने की मुहिम में जम्मू-कश्मीर सहित राष्ट्रीय दलों ने कथित तौर से इसमें यासीन की मदद की थी।  

‘घाटी’ में अब ‘बूथ मैनेजर’ बनकर कौन दिलाएगा वोट

जानकारों का कहना है कि राजनीतिक दलों ने यासीन मलिक का भरपूर इस्तेमाल किया था। मलिक, कई राजनीतिक दलों को वोट दिलवाता था, तो बदले में उसे पैसा, सहूलियत और पुलिस से दूरी, मिलती रही। उसकी सजा पर पीडीपी अध्यक्ष एवं जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा, भाजपा जोर-जबरदस्ती की नीति अपनाए हुए है। इससे तो मसले और उलझ रहे हैं। फांसी देने से जम्मू-कश्मीर के हालात नहीं बदलेंगे। यहां के कई लोगों को फांसी हुई है, उम्रकैद मिली है, लेकिन मसले तो अभी तक वैसे ही हैं। भाजपा सरकार मस्कुलर पॉलिसी अपनाए हुए है। इसके नतीजे अच्छे नहीं होंगे। स्थानीय राजनीतिक दलों ने उसे बचाने का भरसक प्रयास किया था। सरकार की तरफ उसे बताया जाता था कि सुरक्षा बलों का ‘ऑपरेशन’ कहां और कब शुरू होगा। इस काम के लिए पुलिस व प्रशासन में लोगों की ड्यूटी लगी थी। इसके चलते साल 2000 के आसपास सुरक्षा बलों ने ‘एसओपी’ को बदल दिया। घुसपैठ करता हुआ कोई आतंकी पकड़ा जाता तो वह सूचना चुनींदा लोगों को मिलती थी। आर्मी के अलावा जो टीम ‘ऑपरेशन’ में शामिल रहती, केवल उन्हें ही जानकारी रहती थी।

अब कोई नहीं भड़का सकेगा घाटी के युवाओं को

स्थानीय सरकार और आतंकियों का गठजोड़ कैसा था, इसका एक उदाहरण मिलता है। उनके बीच करोड़ों रुपये का लेनदेन होता था। एक बार गिलानी के पास तीन करोड़ रुपये भेजे गए, लेकिन वहां एक करोड़ रुपये ही पहुंचे थे। दो करोड़ रुपये बीच में ही डकार गए। ये सब सरकार को मालूम था कि किसने कहां पर टांका लगाया है। आतंकी सलाउदीन, पाकिस्तान कैसे पहुंचा था, सब जानते हैं। कैप्टन गौर के अनुसार, यासीन की सजा के बाद अब घाटी में लोगों को भड़काने वालों पर रोक लग जाएगी। सरकार, अब सख्त है। किसी को छोड़ती नहीं। वह समय अब चला गया, जब बुरहान वानी की मौत पर जो बवाल मचा था, उसे एक राजनीतिक का पूरा समर्थन मिला था। जांच एजेंसियों ने आतंकियों के मददगारों को ढूंढ निकाला है। घाटी के युवा भी समझ रहे हैं। यासीन की सजा, तोड़ फोड़ की मंशा रखने वाले लोगों के लिए चेतावनी है। पाकिस्तान को इसलिए तकलीफ हो रही है, क्योंकि मलिक उनका आदमी था। जम्मू कश्मीर में उनका एजेंडा चला रहा था। अब पाकिस्तान और आईएसआई के लिए दूसरा यासीन मलिक खड़ा करना आसान नहीं होगा।