ब्रिटेन की राजनीति आज दुनिया में उपहास का विषय हो सकती है लेकिन शैडो कैबिनेट का उसका आइडिया ऐसा है जिसे दुनिया अपना सकती है। हर शैडो मिनिस्टर रचनात्मक और वैकल्पिक समाधान सुझाता है। यह सरकार पर नजर रखने वाले एक पॉलिसी वॉचडॉग की तरह काम करता है। विपक्ष के लिए शैडो कैबिनेट कैसे फायदेमंद हो सकता है, बता रही हैं सागरिका घोष।
सागरिका घोष
गांधी परिवार के वफादार 80 साल के मल्लिकार्जुन खरगे कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए हैं। ‘अघोषित ऑफिशियल’ कैंडिडेट के सिर पर हाई कमान का हाथ था लिहाजा उनकी जीत से किसी को कोई हैरानी नहीं हुई। ‘बाहरी’ शशि थरूर ने कुल वैध वोटों में 10 प्रतिशत से अधिक हासिल करके अच्छी चुनौती दी। यह संभवतः बदलाव की एक छोटी सी झलक है। हालांकि, चलेगी तो गांधी परिवार की ही। इस बार परिवार की कोई जवाबदेही भी नहीं रहेगी लेकिन पर्दे के पीछ अदृश्य ताकत उनके ही हाथ में होगी।
शशि थरूर को न चुनकर कांग्रेस जनमानस को पढ़ने में बुरी तरह नाकाम हुई है। ‘न्यू इंडिया’ युवा, आकांक्षी और लोगों से संवाद वाले नेता को चाहता है। खरगे वरिष्ठ राजनेता हैं लेकिन वह वयोवृद्ध हैं, जीवन के 8 दशक पूरा कर चुके हैं। उनका सर्वश्रेष्ठ बीत चुका है। ऐसे में खरगे यमुना (या उनके अपने गृहराज्य की गुलबर्गा) में शायद ही कोई लहर ला पाएं।
जहां तक बहुप्रचारित भारत जोड़ो यात्रा की बात है तो यह चुनाव में जीत दिलाएगा, इसमें शक है। यात्रा अच्छी चल रही है और ब्रैंड राहुल गांधी को फिर से स्थापित कर रही है लेकिन कोई राजनीतिक दल तभी पुनर्जीवित हो सकता है जब वह चुनाव जीते। भारत जोड़ो यात्रा तो उन राज्यों को छू तक नहीं रही जहां चुनाव होने हैं यानी हिमाचल प्रदेश और गुजरात। इससे ये संदेश जा रहा है कि भारत जोड़ो यात्रा का लक्ष्य चुनाव जीतना नहीं है।
ऐसे में अब कांग्रेस और विपक्ष के लिए आगे क्या रास्ता है? यह कैसे फिर से ताकत जुटा सकेंगे? भारत में विपक्ष भले ही चुनावी दृष्टि से खत्म हो चुका है लेकिन प्रतिभा के मामले में ऐसा नहीं है। विपक्ष के लिए यह एक न्यू आइडिया है- 2024 के चुनाव से पहले शैडो कैबिनेट बनाइए।
शैडो कैबिनेट क्या होता है? ब्रिटेन में यह होता है जहां विपक्षी दल एक समानांतर शैडो कैबिनेट बनाते हैं जिसमें नेताओं को विभागों की जिम्मेदारी दी जाती है। ब्रिटेन की राजनीति आज दुनिया में उपहास का विषय हो सकती है लेकिन शैडो कैबिनेट का उसका आइडिया ऐसा है जिसे दुनिया अपना सकती है। हर शैडो मिनिस्टर रचनात्मक और वैकल्पिक समाधान सुझाता है। यह सरकार पर नजर रखने वाले एक पॉलिसी वॉचडॉग की तरह काम करता है।
1. शशि थरूर शैडो फॉरेन मिनिस्टर
शशि थरूर भले ही कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव नहीं जीत पाए लेकिन वह अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं। शशि थरूर और एस. जयशंकर के बीच पब्लिक डिबेट से राष्ट्रीय हितों को सुनिश्चित करने वाली विदेश नीति को आकार दिया जा सकेगा।
2. पी. चिदंबरम शैडो फाइनेंस मिनिस्टर
पी चिदंबरम को किसी राज्य के चुनाव की जिम्मेदारी निभाने से बेहतर निर्मला सीतारमण की दलीलों को काउंटर करते देखना अच्छा लगेगा।
3 गुलाम नबी आजाद शैडो गृह मंत्री
कांग्रेस से बगावत कर अलग राह पकड़ने वाले इस दिग्गज नेता के तमाम पार्टियों में अच्छे संपर्क हैं। वह न सिर्फ अशांत कश्मीर बल्कि पूरे भारत में शांति लाने वाला असली समाधान पेश कर सकते हैं। ध्रुवीकरण के इस दौर में एक कश्मीरी मुस्लिम गृह मंत्री हीलिंग टच प्रदान कर सकता है जिसकी अभी बहुत जरूरत है।
4. मनीष तिवारी शैडो डिफेंस मिनिस्टर
पंजाब के यह सांसद न सिर्फ डिफेंस पर बहुत ही जोरदार लिखते हैं बल्कि एक सरहदी राज्य से भी आते हैं। वह लद्दाख और अरुणाचल में चीन की विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं जैसे मुद्दों पर अलंकारिक हवाई बातों के बजाय सरकार को तथ्यपरक दलीलों से घेर सकते हैं।
5. कपिल सिब्बल शैडो लॉ मिनिस्टर
ऐसे समय में जब कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठाए जा रहे हैं और न्याय में देरी हो रही है, सिब्बल न्याय व्यवस्था से जुड़ी समस्याओं का हल निकाल सकते हैं।
6. शरद पवार शैडो कृषि मंत्री
शरद पवार महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी को देख रहे हैं लेकिन उनके पास कृषि क्षेत्र की गहरी समझ है। वह इससे जुड़े मुद्दों पर सरकार को काउंटर करने के साथ रचनात्मक सुझाव दे सकते हैं.
7. महुआ मोइत्रा शैडो महिला एवं बाल कल्याण मंत्री
संसद में काफी मुखर रहने वाली मोइत्रा स्मृति इरानी को इस अहम मंत्रालय में काउंटर सकती हैं और हर स्तर पर मॉडर्न जेंडर जस्टिस का अपना आइडिया दे सकती हैं।
8. राहुल गांधी शैडो एजुकेशन मिनिस्टर
राहुल गांधी ने यूपीए सरकार के दौर में मंत्रालयों की जिम्मेदारी से बचने के लिए प्रतिबद्ध थे। खुद को अस्पष्ट वैचारिक लड़ाई तक सीमित करने के बजाय राहुल गांधी 21वीं सदी के भारत के लिए एक बेहतर एजुकेशन पॉलिसी बनाने की चुनौती क्यों नहीं ले रहे?
शैडो कैबिनेट का आइडिया खयाली पुलाव वाला लग सकता है। लेकिन ऐसे समय में जब विपक्ष चुनावी तौर पर कमजोर है, यह उसके योग्य नेताओं को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित कर सकता है और 2024 में विपक्ष एक टीम के तौर पर उतर सकती है। हो सकता है कि सरकार शैडो कैबिनेट पर कोई ध्यान न दे, कोई तवज्जो न दे लेकिन जनता को इस प्रतिस्पर्धात्मक प्रॉब्लम-सॉस्विंग से फायदा जरूर होगा। शैडो कैबिनेट विपक्ष को एक स्पष्ट दिशा दे सकता है। यह सरकार के एकतरफा फैसलों पर भी लगाम लगाएगा।