गुजरात में इतना सामाजिक और राजनैतिक बदलाव हो चुका है कि पांच साल पहले बीजेपी जैसी पार्टी को पानी पिला देने वाले इन तीनों मित्रों को अपने राजनीतिक वजूद के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
गुजरात में कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष पाटीदार नेता हार्दिक पटेल चुनाव से ठीक पहले बीजेपी में शामिल हो गए। बीजेपी ने उन्हें कांग्रेस के गढ़ विरमगाम से अपना उम्मीदवार बनाया है। सीमांकन के बाद 2012 में विरामगम सीट पर कांग्रेस की तेजश्री पटेल ने बीजेपी के प्रागजी भाई पटेल को 16,983 वोटों से हराया था। 2017 में तेजश्री पटेल बीजेपी की उम्मीदवार थीं। कांग्रेस के लाखा भरवाड़ ने तेजश्री को 21,839 वोटों से पराजित किया था। अब बीजेपी ने हार्दिक पटेल को अपना उम्मीदवार बनाया है।
बदली हार्दिक की वाणी
बीजेपी में हार्दिक को लाइन में लगकर टिकट लेना पड़ा। जब हार्दिक अपना नामांकन दाखिल करने गए तो पार्टी का कोई बड़ा नेता उनके साथ नहीं था। लोकल बीजेपी नेता और कार्यकर्ता हार्दिक के चुनाव में सहयोग नहीं कर रहे हैं। 22 वर्ष की आयु में हार्दिक पटेल ने मोदी और शाह जैसे बड़े नेताओं को चुनौती देकर राष्ट्रीय राजनीति में जगह बनाई। अब हार्दिक पटेल को विधान सभा का चुनाव जीतने के लिए मोदी की लोकप्रियता पर भरोसा है। हार्दिक की वाणी अब बदली हुई है। वह अब जाति बिरादरी और आरक्षण पर बात न कर कहते हैं कि ‘मैं हिंदू युवा हूं। इसलिए लव जिहाद के खिलाफ बोलूंगा।’
हार्दिक का भरोसा
विरमगाम की सीट पर जातिगत समीकरण भी हार्दिक पटेल का साथ नहीं दे रहे हैं। यहां पटेल मतदाता 50 हजार हैं। ठाकोर सबसे अधिक 65 हजार हैं। मुस्लिम लगभग 20 हजार, भरवाड़ और रबारी 20 हजार और अनुसूचित जाति के मतदाता 30 हजार हैं। हार्दिक की छवि आरक्षण विरोधी रही है। इसीलिए चुनाव में पिछड़े और दलित वर्ग में हार्दिक का विरोध भी देखा जा सकता है। इस नुकसान की भरपाई वह मुस्लिम मतदाताओं से करना चाहते हैं। हार्दिक कुछ महीने पहले कांग्रेस में थे इसलिए उनकी पकड़ मुस्लिमों में ठीक-ठाक है। कांग्रेस के वर्तमान विधायक और उम्मीदवार लाखा भरवाड़ पिछड़े वर्ग से आते हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ठाकोर समाज से हैं। कांग्रेस की ठाकोर वोटों पर ठीक-ठाक पकड़ है। जिस कारण हार्दिक पटेल एक बड़ा राजनैतिक चेहरा होते हुए भी चुनाव में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
अल्पेश का विरोध
राज्य में पिछड़े वर्ग की आबादी लगभग 54% है, जिनमें सबसे अधिक 24% कोली-ठाकोर हैं। अल्पेश ठाकोर पिछड़े वर्ग के बड़े नेता हैं। अल्पेश 2017 में कांग्रेस के चुनाव चिह्न पर राधनपुर सीट से विधायक बने लेकिन 2019 आते-आते कांग्रेस से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए। लेकिन 2019 में बनासकांठा की राधनपुर सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस के रघु देसाई से लगभग 3,800 वोटों से हार गए। राधनपुर सीट अल्पेश के लिए सेफ नहीं थी। इसलिए बीजेपी ने अल्पेश ठाकोर को गांधीनगर दक्षिण से उम्मीदवार बनाया है। बीजेपी के शंभू जी ठाकोर इस सीट से 2012 में 8,011 और 2017 में 11,530 वोट से जीते थे। यहां भी बीजेपी के लोकल कार्यकर्ता अल्पेश ठाकोर का विरोध कर रहे हैं।
जिग्नेश की चुनौतियां
जिग्नेश मेवाणी 2017 में कांग्रेस समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार थे। मेवाणी ने बीजेपी के विजयकुमार चक्रवर्ती को 19,696 वोटों से पराजित किया था। पत्रकार और वकील रहे जिग्नेश मेवाणी सामाजिक कार्यकर्ता से आंदोलकारी बने और ऊना आंदोलन से राष्ट्रीय चर्चा में आए। उन्होंने भूमिहीन दलितों को भूमि दिलाने के अलावा 2002 के बाद मुस्लिम दंगा पीड़ितों और फर्जी मुठभेड़ में मारे गए मुस्लिमों के लिए भी काम किया है। इसलिए उनकी मुस्लिमों में अच्छी पकड़ रही है। लेकिन CAA NRC आंदोलन के समय वडगाम के छापे से हुई मुस्लिमों की गिरफ्तारी के बाद मुस्लिमों के एक हिस्से को लगता है कि मेवाणी ने आंदोलन के बाद मुस्लिमों को छुड़ाने के लिए कुछ खास नहीं किया। इसी का लाभ लेते हुए असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने अपना उम्मीदवार उतारा है। जिग्नेश मेवाणी के सामने चुनौती मुस्लिम वोटों को बचाने की है। पिछले चुनाव में दलित, मुस्लिम और ठाकोर समाज के वोट एकमुश्त मेवाणी को मिले थे। अपने पाले में उन मतदाताओं को बनाए रखना मेवाणी के लिए एक चुनौती है।
पांच वर्षों में सामाजिक और राजनैतिक बदलाव इतना हो चुका है कि अलग-अलग जातियों की गोलबंदी कर बीजेपी जैसे राजनैतिक संगठन को पानी पिला देने वाले ये तीनों मित्र अपने ही राजनैतिक वजूद की लड़ाई लड़ रहे हैं।