अनाथ हो चुके बच्चे का दर्द उसके सिवा और कोई नहीं समझ सकता. जब तक ये बोल और समझ नहीं पाते, तब तक तो जैसे-तैसे पल जाते हैं. लेकिन बोलना सीखते ही ये सबसे पहले अपने माता-पिता को ही खोजते हैं. बढ़ते हुए बच्चे को सबसे ज्यादा जरूरत भी तो माता पिता की ही होती है. ऐसे में अगर किसी अनाथ को नया परिवार मिल जाए तो एक तरह से उसके अंधेरे जीवन में रोशनी छा जाती है.
माता-पिता छोड़ गए थे बेसहारा
कुछ इसी तरह की खुशी यूपी के आगरा के राजकीय शिशु गृह में उस वक्त छा गई जब यहां रहने वाले अनाथ बच्चों को उनका नया परिवार मिल गया. दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस शिशु गृह में रहने वाले साढ़े चार साल के लड़के और साढ़े तीन साल की लड़को को उन्हें जन्म देने वाले माता-पिता संस्था के बाहर पालने में डालकर चले गए थे. जब ये बच्चे बोलना सीखे और बातों को समझने लगे तो इन्होंने अपने माता-पिता के बारे में पूछना शुरू कर दिया.
अक्सर पूछते थे ‘मम्मी पापा कब आएंगे’
जब मासूम बच्ची शिशु गृह में उनकी देखभाल करने वाले स्टाफ से पूछती कि उसके मम्मी-पापा कब आएंगे तो उन्हें जवाब मिलता कि जल्द आएंगे. शायद स्टाफ ये बात उनका मन रखने के लिए कहते हों, लेकिन उनकी कही बात सच साबित हो गई है. इन बच्चों को गोद ले लिया गया है. जब बच्चों के दत्तक माता-पिता उन्हें गोद लेने आए तो वह दौड़ कर उनके गले लग गए. बच्चों का प्यार देख उन्हें गोद लेने वाले दंपतियों की आंख भी नम हो गईंं. बता दें, आगरा के इस शिशु गृह में इस समय 12 बच्चे हैं. जिनमें तीन बालक और दो बालिकाओं को गोद दिया गया है.
अब मिला नया परिवार
बालक को कन्या कुमारी में रहने वाले सेवानिवृत्त सैन्यकर्मी और उनकी पत्नी ने गोद लेने का फैसला किया. जबकि बालिका को नोएडा के एक दंपती ने गोद लेने का फैसला किया. कर्मचारियों ने दोनों बच्चों को बताया कि माता-पिता उन्हें लेने आ रहे हैं. आया की बात को सच मान कर ये दोनों बच्चे अपने माता पिता का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. ऐसे में जब दंपती उन्हें गोद लेने आए तो बच्चे पापा-मम्मी कहकर उनसे लिपट गए.
दंपती की आंखें उस समय नम हो गईं जब उनकी गोद ली हुई बेटी ने उनसे शिकायत करते हुए कहा कि उन्होंने उसे लेने आने में इतनी देर क्यों कर दी. वहीं साढे चार साल के बालक ने अपने नए सैन्यकर्मी पिता से कहा कि उसे घर जाने के बाद स्कूल जाना है. दंपती ने बेटे से वादा किया कि वह घर ले जाते ही वह उसे स्कूल लेकर जाएंगे. पिता ने अपना वादा पूरा किया, बेटे को अपने साथ ले जाने के तीन सप्ताह बाद ही उसका पब्लिक स्कूल में एडमिशन करा दिया.