नई दिल्ली. स्वामी आत्मस्थानानन्द की जन्मजयंती पर पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमारे देश में संन्यास की महान परंपरा रही है. वानप्रस्थ आश्रम भी सन्यास की दिशा में एक कदम माना गया है. सन्यास का अर्थ ही है स्वयं से ऊपर ऊठकर समष्टि के लिए कार्य करना और जीना है. सन्यासी के लिए जीव सेवा में प्रभु सेवा को देखना होता है. पीएम मोदी ने इस मौके पर अपने भाषण में जो बातें कहीं, उसके प्रमुख बिंदु ये हैं:
- सैकड़ों साल पहले आदि शंकराचार्य हों या आधुनिक काल में स्वामी विवेकानंद, हमारी संत परंपरा हमेशा ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का उद्घोष करती रही है. रामकृष्ण मिशन की तो स्थापना ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के विचार से जुड़ी हुई है.
- हमारे संतों ने हमें दिखाया है कि जब हमारे विचारों में व्यापकता होती है, तो अपने प्रयासों में हम कभी अकेले नहीं पड़ते.
- आप भारत वर्ष की धरती पर ऐसे कितने ही संतों की जीवन यात्रा देखेंगे, जिन्होंने शून्य संसाधनों के साथ शिखर जैसे संकल्पों को पूरा किया.
- आप देश के किसी भी हिस्से में जाइए, आपको ऐसा शायद ही कोई क्षेत्र मिलेगा जहां विवेकानंद जी गए न हों, या उनका प्रभाव न हो.
- उनकी यात्राओं ने गुलामी के उस दौर में देश को उसकी पुरातन राष्ट्रीय चेतना का अहसास करवाया, उसमें नया आत्मविश्वास फूंका.
- सन्यासी के लिए जीव सेवा में प्रभु सेवा को देखना, जीव में शिव को देखना, यही सर्वोपरि है. इस महान संत परंपरा को, सन्यस्थ परंपरा को स्वामी विवेकानंद जी ने आधुनिक रूप में ढाला. स्वामी जी ने भी सन्यास के इस स्वरूप को जीवन में जिया, और चरितार्थ किया.
- आज का ये आयोजन मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से भी कई भावनाओं और स्मृतियों से भरा हुआ है. स्वामी आत्मस्थानंद जी ने शतायु जीवन के काफी करीब ही अपना शरीर त्यागा था. मुझे सदैव उनका आशीर्वाद मिला है. ये मेरा सौभाग्य है कि आखरी पल तक मेरा उन से संपर्क रहा.
- आखरी पल तक स्वामी जी का मुझ पर आशीर्वाद बना रहा और मैं ये अनुभव करता रहा कि स्वामी जी महाराज चेतन स्वरूप में आज भी हमें आशीर्वाद दे रहे हैं. मुझे खुशी है उनके जीनव और मिशन को जन-जन तक पहुंचाने के लिए आज दो स्मृति संस्करण, चित्र जीवनी और डॉक्युमेंट्री भी रिलीज हो रही है.