Unprecedented Covid Wave in China: चीन की सनकभरी जीरो-कोविड पॉलिसी की नाकामी ने दिखाया है कि लोगों की तरफ से चुनी गई सरकार बड़े संकट से किसी एक पार्टी की तानाशाही वाले देश की तुलना में ज्यादा कामयाबी से निपटती है। तानाशाही सरकार बिना जनसमर्थन हासिल किए जनता के लिए काम करने का दावा करती है।
विजय गोखले
जीरो-कोविड रणनीति को लेकर चीन के हालिया यू-टर्न के बाद वहां कोरोना संक्रमण के मामलों और उससे होने वाली मौत में तेज उछाल आया है। वैसे तो चीन ने सोमवार को कई हफ्तों बाद कोरोना से पहली मौत की पुष्टि की थी लेकिन उसके आंकड़े संदेह के घेरे में हैं। पाबंदियों के हटने के बाद कोविड से मौत के आंकड़ों को चीन बहुत कम करके दिखा रहा है। उसे अपनी कोविड स्ट्रैटजी को अपने ही लोगों की तरफ से नवंबर में हुए जबरदस्त विरोध-प्रदर्शन के बाद बदलनी पड़ी। लोग लंबे समय से लागू सख्त लॉकडाउन के खिलाफ सड़कों पर उतर गए। अब चीन का यू-टर्न 2022 की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में हो सकती हैं।
कामयाबी से नाकामी तक
वुहान से शुरू हुए संक्रमण के दौर के बाद 2020 की शुरुआत में चीन थोड़ा सा लड़खड़ाया था लेकिन उसके नेतृत्व ने जल्द ही दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी में सख्त लॉकडाउन लागू कर दी। 23 फरवरी 2020 को राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कोरोना को ‘संकट के साथ-साथ बड़ा इम्तिहान’ बताते हुए ऐलान किया कि सख्त पाबंदियां काफी कारगर हैं। उन्होंने इसे कम्यूनिस्ट पार्टी के नेतृत्व और सोशलिस्ट सिस्टम की कामयाबी बताकर खुद की पीठ भी थपथपाई।
- -जब दुनिया को समझ नहीं आ रहा था कि कोरोना महामारी से कैसे निपटें तब चीन ने खुद को बाकी दुनिया से पूरी तरह काट लिया।
- -कम्यूनिस्ट पार्टी ने सीना ठोककर दावा किया कि महामारी को लेकर उसके फैसले सही हैं और इससे समय रहते, कारगर तरीके से कोविड को नियंत्रित किया गया।
- -उन्होंने वुहान से लॉकडाउन हटा दिया और अमीर देशों के उलट कोरोना से कराह रहे विकासशील देशों को कोरोना से निपटने में मदद करना शुरू कर दिया।
- -मई 2020 वर्ल्ड हेल्थ असेंबली की वर्चुअल ओपनिंग में में शी जिनपिंग को एक ऐसे निर्णायक और विजेता वर्ल्ड लीडर के तौर पर पेश किया गया जो ‘साझा भविष्य के लिए सबको साथ लेकर’ चलने के चीनी विजन की बात करता है।
2021 में पूरे साल बाकी दुनिया कोरोना से जूझ रही थी और वायरस लगातार फैल रहा था, म्यूटेट हो रहा था। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो भारत उन प्रमुख देशों में रहा जिसने दूसरे जरूरतमंद देशों को वैक्सीन भेजा। ज्यादातर देशों ने दूसरों की मदद के बजाय वैक्सीन को अपने लोगों के लिए रखा। एक आंकलन के मुताबिक, 2021 में कोरोना से 35 लाख लोगों की मौत हुई। लेकिन चीन दावा करता रहा कि उसके यहां कोरोना से एक भी मौत नहीं हुई है और उसके लोग बिना मास्क के स्वतंत्र होकर घूम रहे हैं।
भारत और चीन के अलग-अलग रास्ते
विकासशील देशों में चीन और भारत कोरोना वैक्सीन बनाने की रेस में थे। मई 2021 में चीन की वैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से तुरत-फुरत मंजूरी मिल गई। दूसरी तरफ, भारत की वैक्सीन कोवैक्सीन को डब्लूएचओ से नवंबर 2021 में मंजूरी मिलने से पहले कई टेस्ट से गुजरना पड़ा। इसके बाद भी भारत ने अपना खुद का विशाल, अभूतपूर्व और दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू कर दिया। 2021 के आखिर तक भारत ने अपनी 70 प्रतिशत आबादी का वैक्सीनेशन कर दिया। ज्यादा जोखिम वाली श्रेणियों के लोगों का तकरीबन शत प्रतिशत वैक्सीनेशन हो चुका था। यही वजह थी कि नवंबर 2021 में जब ओमीक्रोन वेरिएंट सामने आया तो भारत में मौतें कम हुईं।
दूसरी तरफ चीन ने दावा किया कि उसने खतरनाक महामारी से अपनी आबादी की सुरक्षा कर ली है। वह जीरो केस होने का दावा करते हुए अपनी पीठ थपथपाता रहा और बीजिंग मॉडल का ढिंढोरा पीटता रहा। खुद को पश्चिमी देशों से बेहतर बताने का चीन का ढिंढोरा इस स्तर का था कि भारत की कामयाबियों पर दुनिया की खास नजर ही नहीं गई और उसका अध्ययन ही नहीं हुआ।
- -अपने लोगों के टीकाकरण में कामयाबी से उत्साहित भारत सरकार ने लॉकडाउन से इतर सामान्य जनजीवन की सोची-समझी रणनीति अपनाई। 2022 में भारत में आर्थिक और सामाजिक गतिविधियां कोरोना पाबंदियों से प्रभावित नहीं हुईं।
- -चीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सही साबित हो चुके तर्कों को अनसुना कर जीरो-कोविड पॉलिसी पर अड़ा रहा लेकिन अपनी सबसे ज्यादा जोखिम वाली आबादी को असुरक्षित छोड़ दिया।
- – अप्रैल और मई 2022 में शंघाई में लगा लॉकडाउन भी 2020 में लगीं बेहद सख्त पाबंदियों की तरह थीं। जबकि उस वक्त तक दुनिया महामारी को नियंत्रित करने में लॉकडाउन की सीमाओं से वाकिफ हो चुकी थी।
- -चीन की सरकार अब भी दावा कर रही है कि कोरोना को नियंत्रित करने का उसका सिस्टम सबसे शानदार है। लेकिन यह साफ है जीरो कोविड पॉलिसी को लागू करने की असली वजह यही थी कि कम्यूनिस्ट पार्टी अपने लोगों को कोई विकल्प नहीं समझा पाई जो पाबंदियों को हटाने के बाद भी महामारी को नियंत्रित रख सके।
एक अति से दूसरी अति
16 अक्टूबर को 20वीं पार्टी कांग्रेस में चीन के नेता ने घोषणा की कि उनके लिए लोग और उनकी जिंदगियां सबसे पहले हैं। जिनपिंग ने कहा कि उन्होंने महामारी से निपटने में उत्साहजनक उपलब्धियां हासिल की हैं। उसके एक महीने बाद ही पूरे चीन में लोग लॉकडाउन के खिलाफ सड़कों पर आ गए। यह अभूतपूर्व था। 1989 के बाद पहली बार चीन में इस तरह की सविनय अवज्ञा की पहली लहर थी। इसने लॉकडाउन को लेकर बनाए गए उस भ्रम को भी तोड़ दिया कि सीपीसी की पॉलिसी जनभावनाओं के अनुरूप है। जीरो-कोविड पॉलिसी के चिथड़े उड़ गए लेकिन शी जिनपिंग के पास न तो कोई प्लान बी है और न ही सामान्य जनजीवन बहाली का कोई दूसरा रोडमैप। 30 दिन से भी कम समय में चीन में 10 लाख से ज्यादा केस आ चुके हैं और पूरे देश में महामारी का तांडव जारी है।
तीन चीजें तो साफ हैं-
- -पहली बात ये कि इसने एक पार्टी की तानाशाही वाली सरकार की कमियों को उधेड़कर रख दिया है कि वह अत्याधुनिक निगरानी तकनीकों के इस्तेमाल के बावजूद पब्लिक का मूड समझने में बुरी तरह नाकाम रही।
- -दूसरी बात ये कि अचानक पॉलिसी बदलने से यह संकेत मिलता है कि कम्यूनिस्ट पार्टी को ये डर है कि जनता में नाराजगी कहीं पार्टी-विरोध आंदोलन का रूप न ले ले।
- -तीसरी बात ये कि दुनिया ने पहले जीरी-कोविड पॉलिसी को लेकर चीन के नेतृत्व की सनक देखी जो तर्कों से परे थी। और अब उसे नाकाम होते देख रही है।