तहरीक-ए-तालिबान (TTP) और अल कायदा (Al Qaeda) ने अब एक ऐसी मांग करनी शुरू कर दी है जो पाकिस्तान (Pakistan) के लिए सिरदर्द साबित हो सकती है। ये दोनों आतंकी संगठन पाकिस्तान के सबसे बड़े दुश्मन बन चुके हैं और अब इनकी यह मांग उसकी मुश्किलों को दोगुना कर सकती है। दोनों ही आतंकी संगठन चाहते हैं कि खैबर पख्तूनख्वां (Khyber Pakhtunkhwa) के तहत आने वाले फाटा को एक अलग देश बना दिया जाए।
इस्लामाबाद: पाकिस्तान जो इस समय अमेरिका और जर्मनी की तरफ से मिले ‘प्यार’ से फूला नहीं समा रहा है, उसके लिए अब तहरीक-ए-तालिबान (TTP) और अल कायदा मुश्किलें बढ़ाने वाले हैं। इन दोनों संगठनों की तरफ से मांग की जा रही है कि खैबर पख्तूनख्वां के तहत आने वाले फाटा को एक शरिया देश घोषित कर दिया जाए। टीटीपी बहुत पहले से ही यह मांग कर रहा है। टीटीपी किसी भी तरह से फाटा पर झुकने को राजी नहीं है और उसने हर समझौते से इनकार कर दिया है। FATA यानी सरकारी स्वायत्ता वाले कबीलियाई इलाके। यह क्षेत्र सन् 1947 से उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान में आता है। पहले यह मांग टीटीपी की तरफ से थी और अब इसे अल कायदा का समर्थन भी मिलने लगा है और अब यह देखना होगा कि पाकिस्तान इसकर सामना कैसे करेगा।
टीटीपी के साथ अल कायदा
जुलाई में अफगान तालिबान के एक डेलीगेशन से पाकिस्तान के सुरक्षा अधिकारियों ने मीटिंग की थी। इसी डेलीगेशन को टीटीपी की तरफ से दो पेज का वह चार्टर सौंपा गया था जिसमें फाटा का जिक्र था। इस क्षेत्र को खैबर से अलग करके एक देश बनाने की मांग की जा रही है। टीटीपी ने साफ कर दिया था कि जब तक पाकिस्तान के सुरक्षा संस्थान इन मांगों को पूरा नहीं करते हैं, तब तक किसी भी तरह से शांति का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता है।
अल कायदा ने अपने नवा-ए-गजवा-ए-हिंद में ऐलान कर दिया है कि वह टीटीपी की तरफ से फाटा को लेकर उठाई जा रही मांग का समर्थन करती है। अल कायदा ने इस मसले पर टीटीपी के पूर्व नेतृत्व को भी अपना समर्थन दिया है। अल कायदा की तरफ से आए आर्टिकल की भाषा पर अगर गौर फरमाया जाये तो वह पूरी तरह से राजनीतिक नजर आती है। साथ ही उसने देवबंद की सन् 1800 वाली विचारधारा का और बंटवारे के बाद इसके विभाजन की तीखी आलोचना की है।
शरीफ पर भड़का संगठन
आतंकी संगठन ने अपने एडीटोरियल में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और मुल्ला याकूब के भाषण की आलोचना भी की। पिछले दिनों एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इन्होंने क्षेत्र में ड्रोन के प्रयोग की बात कही थी। लेकिन इस भाषण में कहीं भी सिराजुद्दीन हक्कानी का कोई जिक्र नहीं था। अल कायदा ने इस स्थिति को युद्ध की ही तरह करार दिया है। अल कायदा ने इसके साथ ही क्षेत्र में युद्ध को अर्थव्यवस्था का हेरफेर बताया है जो अमेरिका की तरफ से अंजाम दिया गया है। साथ ही उसने फाटा में व्यापारियों को योगदान करने के लिए कहा है ताकि स्थानीय इकोनॉमी को स्थिर किया जा सके।