संचार क्रांति के लिए जाने जाते थे पंडित सुखराम, जानिए उनका राजनीतिक सफर

हिमाचल विकास कांग्रेस नाम से बनाई अपनी पार्टी

हिमाचल प्रदेश में राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले वाले पंडित सुखराम (Pandit Sukh Ram) (95) का बीती रात करीब डेढ़ बजे दिल्ली के एम्स में निधन हो गया। प्रदेश समेत देश की राजनीति में सुखराम का काफी प्रभाव रहा है। पंडित सुखराम के देशभर में संचार क्रांति के लिए जाना जाता है।

बता दें कि पंडित सुखराम केंद्र सरकार में मंत्री पद पर भी आसीन रहे हैं। हालांकि, केंद्र में दूरसंचार मंत्री रहते हुए उन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे। बात अगर करें हिमाचल की तो पंडित सुखराम मंडी सदर विधानसभा क्षेत्र से 13 बार चुनाव लड़े और हर बार जीत हासिल की। इसके अलावा उन्होंने लोकसभा के चुनाव भी लड़े और वे केंद्र में भी अलग-अलग मंत्री पद पर आसीन हुए।

साल 1984 में पंडित सुखराम ने कांग्रेस के टिकट से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था, जिस पर भारी बहुमत से जीत हासिल कर वे संसद पहुंचे। इसके बाद 1989 के लोकसभा चुनाव में पंडित सुखराम को हार का सामना करना पड़ा और बीजेपी के महेश्वर सिंह जीत कर संसद पहुंचे। फिर, 1991 के लोकसभा चुनाव में सुखराम ने महेश्वर सिंह को हरा कर संसद में फिर कदम रखा और 1996 में पंडित सुखराम फिर से चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे।

1998 में पंडित सुखराम ने कांग्रेस से अलग होकर हिमाचल विकास कांग्रेस (हिविकां) के नाम से अपनी पार्टी बनाई, लेकिन हिमाचल विकास कांग्रेस लोकसभा चुनाव में कुछ खास नहीं कर पाई और उनकी पार्टी से सिर्फ कर्नल धनीराम शांडिल ही जीतकर संसद पहुंच पाए। हालांकि, इस पार्टी ने प्रदेश की राजनीति में खूब चर्चा बटोरी।

1998 के चुनाव में पंडित सुखराम की पार्टी ने 5 सीटें जीती। जबकि, बीजेपी-कांग्रेस के पाले में 31-31 सीटें आई। जिसके बाद सरकार बनाने के लिए हिमाचल विकास कांग्रेस एक अहम हिस्सा बनी। हिविकां ने बीजेपी को समर्थन दिया। वीरभद्र सिंह सीएम बनने से चूक गए और प्रेम कुमार धूमल पहली बार सीएम के पद पर आसीन हुए।

2003 में पंडित सुखराम ने अपना आखिरी विधानसभा का चुनाव लड़ा और फिर 2007 में सक्रिय राजनीति से संन्यास लेकर अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे अनिल शर्मा को सौंप दी। 2017 के विधानसभा चुनाव में पंडित सुखराम परिवार ने बीजेपी का दामन थाम लिया और अनिल शर्मा ने बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ा और जीते और उन्हें जयराम सरकार में मंत्री पद भी मिला।

2019 में लोकसभा चुनाव में पंडित सुखराम के पोते आश्रय को टिकट दिलाने के लिए फिर से कांग्रेस में शामिल हुए। आश्रय के कांग्रेस में जाने के बाद जयराम सरकार से अनिल शर्मा ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और मंत्री पद की सारी सुविधाएं भी उनसे वापस छीन ली। लंबे समय तक प्रदेश की राजनीति की दशा और दिशा तय करने वाला पंडित सुखराम अब हमारे बीच नहीं रहे हैं, लेकिन प्रदेश की राजनीति को दिए उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।