Panini Sanskrit Rule: कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में भारतीय छात्र ने किया कमाल, पाणिनी के 2500 साल पुराने संस्कृत नियम को किया हल

Panini Sanskrit Rule: संस्कृत के विद्वान पाणिनी ने लगभग ढाई हजार साल पहले अष्टाध्यायी की रचना की थी। इन नियमों में एक विरोधाभास था, जिसे हल करने की कोशिश होती रही है। अब कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के एक PhD उम्मीदवार ने इसे हल कर दिया है। ये एक बड़ी क्रांति माना जा रहा है।

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लंदन: कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के एक PhD उम्मीदवार ने ढाई हजार साल पुरानी अष्टाध्यायी में व्याकरण की समस्या को हल किया है। इसे छठी या पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास संस्कृत के महान विद्वान पाणिनी ने लिखा था। जिस PhD उम्मीदवार ने इस समस्या को हल किया है उनका नाम डॉ ऋषि राजपोपत (27) है। 4000 सूत्रों वाला अष्टाध्यायी संस्कृत के पीछे के विज्ञान की व्याख्या करता है। अष्टाध्यायी में मूल शब्दों से नया शब्द बनाने के नियम मौजूद हैं। लेकिन इसके नियमों में अक्सर विरोध नजर आता है।
इसका प्रयोग कर आप संस्कृत के किसी भी शब्द के आधार और प्रत्यय को भर सकते हैं और व्याकरण की दृष्टि से सही शब्द और वाक्य बना सकते हैं। हालांकि पाणिनी के दो या दो से अधिक व्याकरण नियम एक ही समय में लागू हो सकते हैं, जो अक्सर भ्रम पैदा करते हैं। इसके कारण पैदा होने वाली कठिनाई को सुलझाने की कोशिश होती रही है। शब्दों को बनाते समय नियम आपस में न टकराएं इसके लिए पाणिनी ने अष्टाध्यायी में ही नियम बताया था, जिसे मेटा रूल भी कहते हैं। अभी तक इसकी व्याख्या ऐसे की जा रही थी कि दो सूत्रों के बीच विरोधाभास पर व्याकरण क्रम के बाद आने वाला फॉर्मूला लागू होगा।
क्या दिया नया नियम
व्याकरण की दृष्टि से मेटा रूल भी गलत परिणाम देता है। अपनी PhD थीसिस में डॉ. राजपोपत ने इस पुरानी व्याख्या को खारिज कर दिया है। वह मेटा रूल की आसान व्याख्या करते हैं। उनके मुताबिक पाणिनी का नियम कहता है कि किसी शब्द के बाएं और दाएं पक्ष पर लगने वाले नियमों में हमें दाईं ओर लगने वाले नियम को चुनना चाहिए। इस तर्क के इस्तेमाल से डॉ. राजपोपत ने पाया कि अष्टध्यायी एक सटीक ‘भाषा मशीन’ के रूप में काम कर सकती है, जो लगभग हर बार व्याकरण की दृष्टि से नए शब्दों और वाक्यों का निर्माण करेगी।

कंप्यूटर को समझाना होगा आसान
विशेषज्ञ डॉ. राजपोपत के इस निष्कर्ष को क्रांतिकारी बता रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इस खोज से पाणिनी के संस्कृत व्याकरण को पहली बार कंप्यूटरों को पढ़ाया जा सकेगा। डॉ. राजपोपत कहते हैं, ‘NLP पर काम कर रहे कंप्यूटर वैज्ञानिकों ने 50 साल पहले नियम-आधारित दृष्टिकोणों को छोड़ दिया था। लेकिन अब कंप्यूटर को पाणिनि के नियम के आधार पर वक्ता के इरादे को समझाना आसान होगा जो इंसानों और मशीनों के बीच संपर्क के इतिहास में एक प्रमुख मील का पत्थर साबित होगा।’