5 सितम्बर 1976 को बिहार में लड़का पैदा हुआ, जिसकी कुंडली देखने के बाद पंडित जी ने कहा कि उसके भाग्य में विदेश जाने की रेखाएं नहीं हैं. इसी लड़के ने बाद में इतनी मेहनत की कि उसने अपने हाथ की रेखाएं बदल डाली और हिंदी सिनेमा का पॉपुलर चेहरा बन गया. बॉलीवुड के सबसे वर्सटाइल एक्टर बनने से पहले पंकज की ज़िन्दगी किसी फ़िल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं है. इस स्क्रिप्ट में ड्रामा है, रिजेक्शन है और आशाए
पंकज की ज़िन्दगी किसी फ़िल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं!
गैस ऑफ़ वासेपुर से लोगों के दिलों में उतरने वाले इस बेहतरीन एक्टर की शुरुआत हुई एक किसान के बेटे के रूप में. फ़िल्मों में आने से पहले वो पिता के साथ खेतों में काम करते थे. वासेपुर के बाद जिस तरह उन्होंने ‘मिर्ज़ापुर, ‘सेक्रेड गेम्स’ जैसे शोज़ के ज़रिये ख़ुद को स्थापित किया, वो कोई नहीं भूल सकता. उनकी एक्टिंग की तरह ये बात भी उतनी ही खरी है कि वो फ़िल्मों में आने से पहले किसानी किया करते थे.
पटना पहुंचने के बाद ज़िन्दगी ने फ़िल्मी मोड़ लिया
पंकज त्रिपाठी बिहार के गोपालगंज के बेलसन्द गांव के रहने वाले हैं. वो गांव में भी पैदा हुए और यहीं पले-बढ़े. गांव में भी वो रंग-मंच और छोटे-मोटे नाटकों के ज़रिये लोगों को अपनी प्रतिभा दिखाते रहे. इन नाटकों में उन्होंने ज़्यादातर महिलाओं के किरदार निभाए. इसके बाद वो पढ़ाई के लिए पटना पहुंच गए और यहीं से उनकी ज़िन्दगी ने एक फ़िल्मी मोड़ लिया. यहीं से उनकी ज़िन्दगी में नाटक आया.
वो नाटक देखने के लिए साइकिल से जाया करते थे. 12 क्लास में उन्होंने अंधा कानून नाटक देखा. इस नाटक में एक्टर प्रणिता जायसवाल के काम ने उन्हें रुला दिया. इसके बाद तो उन्हें थिएटर इतना भाया कि पटना में जहां कोई नाटक होता, पंकज त्रिपाठी वहां पहुंच. 1996 में वो ख़ुद एक कलाकार बन गए.
14 साल संघर्ष किया, होटल के किचन तक में काम किया
न्यूज़ एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए पंकज ने कहा था, “मैं रात में एक होटल के किचन में काम करता और सुबह थिएटर. ऐसा दो साल तक चला. मैं निगह शिफ़्ट से वापस आता था और फिर 5 घंटे सो कर दोपहर 2 बजे से 7 बजे तक थिएटर करता था. फिर रात को होटल में 11 से सुबह 7 की शिफ्ट.”
उसी समय उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में एडमिशन लेने की सोची. लेकिन यहां कम से कम ग्रेजुएशन की योगयता चाहिए थी. त्रिपाठी ने ये मुश्किल भी पार कर ली. उन्होंने हिंदी लिट्रेचर में ग्रेजुएशन किया. इसी दौरान वो होटल में काम भी कर रहे थे और दोपहर में नाटक भी. ये उनका जूनून ही था जिसने उन्हें वो इन मुश्किलों को पार करने की हिम्मत दी.
जेल तक गए हैं पंकज त्रिपाठी
कॉलेज में वो ABVP के साथ जुड़े और छात्र आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए जेल भी गए. जेल की इस दुनिया ने उनके लिए नयी तरह के दरवाज़े खोल दिए. 16 अक्टूबर 2004 का वो दिन था जब पंकज एनएसडी से पास आउट हो कर मुंबई पहुंचे. उनकी जेब में 46,000 रुपये थे. दिसंबर तक इन पैसों में सिर्फ़ 10 रुपये बचे.
आज फिल्म जगत का एक जाना-माना नाम हैं पंकज त्रिपाठी
उस वक़्त उनकी पत्नी का जन्मदिन था और उनके पास केक या गिफ़्ट के लिए एक रूपये नहीं था. पंकज ने ख़ुद कहा है कि उनके कोई बड़े सपने नहीं थे. वो बस छोटे रोल्स कर रेंट चुकाना चाहते थे. लेकिन उनकी मेहनत से उन्हें वासेपुर मिली और वो आज वो जहां हैं, वो अपने आप में किसी सपने से कम नहीं.