पराठा पहली बार पेशावर में बना और चाय चीन से आई… World Food Day पर आपकी फेवरेट डिश के किस्से

पराठा पहली बार पेशावर में बना और चाय चीन से आई, World Food Day पर आज यही बात..

कहते हैं दिल का रास्‍ता पेट से होकर जाता है. कितना सच है कह नहीं सकते क्‍योंकि ये व्‍यक्तिगत मामला है. कुछ लोग खाने के खास शौकीन नहीं होते उन पर ये कथन लागू नहीं होगा. लेकिन फूड लवर्स की कैटेगरी में आने वाले लोगों के लिए यह उक्ति सटीक बैठती है. बहरहाल, ‘वर्ल्‍ड फूड डे’ पर खाने पर बात तो हो ही सकती है, ‘चाय’ पर चर्चा तो की ही जा सकती है.

बहुत साल पहले देश में एक संगठन द्वारा पूरे भारत में एक यात्रा निकाली गई थी – विज्ञान यात्रा. इसमें एक गीत बहुत गाया जाता था – ‘कौन कहां से आए जी, आलू मिर्ची चाय जी.’ यह गाना कवि राजेश उत्‍साही ने लिखा है. राजेश मेरे मित्र रहे हैं, इन दिनों शायद बेंगलुरू में है. फूड की बात निकली तो ये गाना याद आ गया. सोचा इस बात की तलाश की जाए कि कौन सा खाना कहां से आया. खोज दिलचस्‍पी से भरी साबित हुई.

शुरुआत पेटू लोगों की सबसे पसंदीदा डिश ‘पराठे’ से. ‘पराठा’ दो रोज पहले तब अखबारों की सुर्खियां बना जब गुजरात सरकार के एक विभाग ने पराठे पर जीएसटी लगाने के फैसले को सही ठहराया. उनका कहना था ‘पराठा’ रोटी या चपाती से अलग है. एक रिसर्च की मानें तो पराठे की उत्‍पत्ति पेशावर से हुई थी जहां से वो पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैल गया. पेशावर में हेल्‍दी नाश्‍ते के रूप में इसकी शुरूआत हुई. आज भी पूरे भारतीय उप महाद्वीप में ये लोगों का पसंदीदा नाश्‍ता बना हुआ है. काम पर निकलने वालों के लिए ये इसलिए मुफीद है क्‍योंकि यह खाली पेट को दोपहर तक के लिए फुल कर देता है.

‘जब तक रहेगा समोसे में आलू, तेरा रहूंगा ओ मेरी शालू’ अक्षय-जूही और कादर खान की कामेडी मूवी ‘मि. एण्‍ड मि. खिलाड़ी’ का ये गीत तो आपको याद ही होगा. गीत हो सकता है सबको पसंद न हो, लेकिन ‘आलू’ और ‘समोसा’ हर किसी को पसंद है. .लेकिन बता दें, न आलू, न समोसा – ये दौनों ही भारत के नहीं हैं.

आलू देश में सबसे ज्‍यादा खाई जाने वाली सब्‍जी है. इसके बिना किचन अधूरा है. अधिकांश सब्‍जी के साथ यह खप जाती है. गोभी, बैंगन, मटर यहां तक की चावल के साथ भी पक जाता है, आटे के साथ तो बहुत शौक से खाई जाती है, वही आलू पराठे के रूप में. आलू का इतिहास बहुत पुराना है. इसकी पैदाइश दक्षिण अमेरिका की एंडीज़ पर्वत श्रंखला में स्थित टिटिकाका झील के आसपास हुई थी. आलू को बढ़ावा देने का श्रेय भारत के गवर्नर जनरल रहे (1772 से 1785 तक) वारेन हेस्टिंग्‍स को जाता है. आलू भारत में स्‍पेन से आया. एक समय रूस में ‘शैतान का सेब’ के नाम से पुकारा जाने वाला आलू पैदावार के मामले में दुनिया में चौथे नंबर पर आने वाली फसल है

बात समोसे की. एक अनुमान के अनुसार भारत में प्रतिदिन 6 से 7 करोड़ समोसे खाए जाते हैं. इसकी उत्‍पत्ति ईरान की मानी जाती है. पुराने ज़माने में समोसा अफगानिस्‍तान से होते हुए भारत पहुंचा. समोसे का जि़क्र करते ही मुंह में पानी आ जाता है और इसी के साथ याद आती है ‘जलेबी’. पूरे भारत में पोहा, जलेबी और समोसा सुबह के समय होटलों की शोभा बढ़ाने के उपक्रम में सबसे आगे रहते हैं. चाशनी में डूबी नारंगी और लाल रंग की ‘जलेबी’ की बात करते ही, फिर से मुंह में पानी आ जाता है. तुर्क के आक्रमणकारियों के साथ यह देश में पहुंची.

मध्‍यकालीन पुस्‍तक ‘किताब-अल-तबीक’ में जलाबिया नामक मिठाई का उल्‍लेख मिलता है. जिसका उद्भव पश्चिम एशिया में हुआ था. ईरान में यह ‘जुलाबिया’ या ‘जु‍लुबिया’ के नाम से मिलती है. जलेबी की बात पोहे के बिना अधूरी है. खुशी की बात है कि पोहा शुद्ध भारतीय व्‍यंजन है. इसके दूसरे देश से आने की जानकारी नहीं मिलती. इंदौरी पोहा तो देश भर में मशहूर है ही. देश में पोहा लोगों को इतना भाता है कि 7 जून को देश में पोहा दिवस भी मनाया जाता है.

जलेबी की बात होती है तो ‘फेंटम’ मूवी का एक गाना याद आ जाता है – ‘अफग़ान जलेबी, माशूक फरेबी, घायल है तेरा दीवाना, भई वा, भई वा…’

चाशनी में डूबी जलेबियों की बात हो रही है तो चाशनी में डूबे लाल-काले ‘जाम’ का जि़क्र कैसे छूट सकता है. जी हां पूरे भारत में चाव से खाया जाने वाला ‘गुलाब जामुन’ भी सुदूर ईरान की डिश है. ये तेरहवीं सदी की बात है जब ईरानी मैदे की बनी गोलियों को घी में डीप फ्राय कर लेते थे, फिर इन्‍हें शहद या शकर की चाशनी में डुबोकर खाते थे. उस समय इसे ‘लुक्‍मत अल-कादी’ के नाम से पुकारा गया. यही जब भारत आया तो इसका नया नामकरण हुआ – ‘गुलाब जामुन’ ये गुलाब जामुन क्‍यों कहलाया ये एक अलग कहानी है, फिर कभी.

लोग कहते हैं ‘हरी मिर्च, लाल मिर्च, मिर्च बड़ी तेज है, लंबे से शरीर में गुस्‍सा बड़ा तेज है.’ हम नहीं जानते कि क्‍या मिर्च का गुस्‍से से वैसा ही नाता है जैसा इस लाइन में बताया गया है, लेकिन हम इतना जरूर जानते हैं कि इस मिर्च का भारतीयों से परिचय दुनिया के पहले घुमक्‍कड़ माने जाने वाले वास्‍को डि गामा ने कराया था. 1498 में वे इसे अमेरिका से गोवा लेकर आए. बाद में इसके तीखे स्‍वाद के लोग इतना दीवाना हुए कि ये पूरे देश में फैल गई. मिर्ची की शुरूआत छ: हजार बरस पहले मैक्सिको में हुई थी. इसकी चार सौ से ज्‍यादा वैरायटियां प्रचलित हैं

हमने एक जगह ‘चाय’ शब्‍द का इस्‍तेमाल किया है, सो बताते चलें कि इसकी उत्‍पत्ति चीन से मानी जाती है. एक कथा के मुताबिक 2700 साल पहले की बात है. चीनी शासक बाग़ में बैठकर गर्म पानी का सेवन कर रहे थे. एक पेड़ की पत्‍ती अचानक पानी में गिर गई. पानी का रंग बदल गया और एक महक सी फिज़ा में तैर गई. राजा ने चखा, स्‍वाद बहुत पसंद आया और चाय दुनिया में अवतरित हो गई. कहा जाता है कि भारत में इसे ईस्‍ट इंडिया कंपनी लेकर आई.

आप शायद इस पर मुश्किल से यकीन करेंगे कि हम हर रोज जो सब्जियां खाते हैं उनमें से अनेक भारत की नहीं हैं. आलू की बात हो चुकी. टमाटर की बात भी करते चलें. कहा जाता है कि टमाटर का इतिहास पुराना है. सोलहवीं सदी में दक्षिण अमेरिका से विकसित होकर यह भारत पहुंचा. एक और पक्ष है जो कहता है यह मैक्सिको से भारत आया. टमाटर को सब्‍जी में डाला जाता है, इसका सलाद भी बनाया जाता है और यह सेहत के लिए भी फायदेमंद है. लेकिन ये सब्‍जी है या फल ? इसे लेकर अमेरिका में विवाद भी हुआ और मामला कोर्ट तक जा पहुंचा. न्‍यूयार्क के पोर्ट में कलेक्‍टर एडवर्ड हेडन के खिलाफ निक्‍स परिवार के सदस्‍यों ने मुकदमा दायर किया. टेरिफ को लेकर किए गए 1893 के इस चर्चित मुकदमे में उच्‍च कोर्ट ने फैसला दिया कि ‘टमाटर एक सब्‍जी है, फल नहीं.’

मुग़ल काल में हिंदुस्‍तान पहुंचा ‘फूल गोभी’ साइप्रस या इटली के भूगर्भीय क्षेत्र की उपज है. ‘शिमला मिर्च’ दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप की पैदावार है. ‘मकई’ यानि ‘भुट्टा’ मैक्सिको से हमारे यहां आया. ‘लौकी’ दक्षिण अफ्रीका से चलकर हम तक पहुंची. ‘चुकंदर’ पहले-पहल रोम और ग्रीस में पैदा किया गया.

चलते-चलते भोजन पर कुछ शेरो शायरी हो जाए, कुछ काम की बातें कर लें. एक शायर ने अच्‍छी बात कही है –

‘ए खुदा यूँ रात में कोई रोया न करे,

करिश्‍मा कर दे कोई भूखा न सोया करे’

एक और शायर कहते हैं –

‘आज मेहरबॉं हुआ रब तो यह जाना,

कितना हसीन होता है पेट भर खाना’

नए ज़माने के आशिक को आप क्‍या कहेंग पता नहीं, लेकिन ये शायर यूं फरमाते हैं –

‘दोस्‍तों इक दिन इश्‍क में ऐसा इतिहास बनाउंगा,

भले मेरी बाबू-सोना भूखी सो जाऍं मगर

मैं तो भरपेट खाउंगा’

किसी ने इस बारे में ज्ञान की बात की है. जरूरत से ज्‍यादा खाना और ज़रूरत से ज्‍यादा सोचना. दोनों ही जीवन के सबसे बड़े शत्रु होते हैं’ इसलिए उतना ही खाएं जितना शरीर के लिए जरूरी है. एक और बेहद लोकप्रिय फूड की बात तो छूट ही गई, मुंबई के वड़ा-पाव की बात. दिलचस्‍प होगा ये जानना कि देश के लोगों द्वारा खूब चाव से खाए जाने वाले इस भारतीय व्‍यंजन में कुछ भी (प्रमुख इन्‍ग्रीडियंट्स) भारत का नहीं है. डॉ. राम पुनियानी के अनुसार ‘वड़ा-पाव में पाव अफग़ानिस्‍तान से आया, चने की दाल (बेसन) मेक्सिको से, आलू स्‍पेन से आया और स्‍वाद के लिए डाला जाने वाला अदरक चीन से.’ लेकिन ये किस्‍से अपनी जगह हैं और पेट अपनी जगह. सो खूब खाएं, खूब तो नहीं थोड़ा सा कम खाएं और मस्‍त रहें, स्‍वस्‍थ रहें. शुभ-स्‍वाद.