मेहनत की कहानियां हमेशा संघर्ष के पन्नों पर ही लिखी जाती हैं. लोग जब प्रसिद्धि पा जाते हैं तो हर कोई उनकी तारीफ करता है लेकिन कोई नहीं जानता कि सामने वाले ने ये प्रसिद्धि किस तरह से पाई है. सिनेमा जगत में ऐसे कई चेहरे हैं जिन्होंने एक मुकाम पाने के लिए अपनी पूरी ज़िंदगी अभिनय को समर्पित कर दी. ऐसे ही एक जुनूनी अभिनेता हैं पवन मल्होत्रा. हालांकि पवन को आज भी वो प्रशंसा नहीं मिल रही जिसके वे हकदार हैं लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपने अभिनय से सिनेमा प्रेमियों का स्नेह जरूर पाया है.
अपने अभिनय से दिया करारा जवाब
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एक लड़का अपने परिवार के फैसलों के विरुद्ध जा कर मुंबई तक पहुंचा लेकिन उसे ये कहा गया कि उसकी एक्टिंग उस स्तर की नहीं है जिससे वो पैसे कमा सकें. उसने हार नहीं मानी, आगे बढ़ता रहा और अपना जवाब अपने अभिनय से दिया. आज उसकी झोली में ऐसे कई किरदार हैं जिनकी वजह से उस लड़के की पहचान है. वो लड़का और कोइ नहीं बल्कि भाग मिल्खा भाग, जब वी मेट, बैंग-बैंग, रोड टू संगम जैसी कई सुपरहिट फिल्मों में अपने दमदार अभिनय से लोगों के दिलों में एक खास जगह बनाने वाले अभिनेता पवन मल्होत्रा ही थे.
परिवार में सबसे छोटे और सबसे लाडले
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पवन मल्होत्रा का जन्म 2 जुलाई 1958 को एक पंजाबी परिवार में हुआ था. उनका परिवार बंटवारे का दंश झेल कर पाकिस्तान से दिल्ली आ बसा था. यहीं उनके पिता ने मशीनरी टूल्स का बिजनेस शुरू किया. पवन अपने पांच भाई-बहनों के साथ दिल्ली के उसी राजेंद्र नगर में बड़े हुए जहां शाहरुख खान रहते थे. पवन भाई बहनों में सबसे छोटे होने के साथ साथ सभी के लाडले भी थे. शायद यही कारण था कि उनके एक्टिंग करियर को लेकर परिवार में किसी को कोई आपत्ति नहीं हुई.
झाड़ू तक लगाया
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पवन के मन में अभिनय का खयाल तब आया जब स्कूल के दिनों में उनका एक दोस्त उन्हें रुचिका थिएटर ले गया. दोस्त के कहने पर ही पवन ने यहां एक नाटक में हिस्सा लिया. तुगलक नाम के इस नाटक में उन्होंने अलग-अलग तरह के 6 किरदार निभाए. यहीं से अभिनय पवन के लिए एक जुनून बन गया. आपको जानकार हैरानी होगी कि पवन ने झाड़ू तक लगाने काम भी किया है.
हालांकि, ऐसा उन्होंने किसी और के लिए नहीं किया था. दरअसल इनके पिता ने इन्हें ऑफिस में झाड़ू लगाने के काम पर लगा दिया था. वह कहते थे कि यदि उन्होंने यह काम नहीं सीखा, तो जीवन में कुछ नहीं सीख पाएंगे. पिता की ये सीख उनके लिए तब काम आई जब वह मुंबई आए. इसी की वजह से वह मुंबई में गुजारा करते हुए टिक पाए.
एक समय ऐसा आया जब छोड़ना पड़ा थियेटर
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पवन अपने अभिनय से धीरे धीरे नाम कमा रहे थे. अखबारों में भी उनकी काफी तारीफ होने लगी थी लेकिन वह कुछ ज़्यादा ना कर सके क्योंकि इसी बीच उनके पिता ने उन्हें फैमिली बिजनेस में शामिल होने के लिए कहा. इसके बाद तो जैसे उनका थिएटर करियर खत्म हो ही गया.
लेकिन नियति उनके लिए पहले ही अभिनय क्षेत्र को चुन चुकी थी. 1982 में उन्हें फिल्म गांधी के प्रोडक्शन टीम से वार्डरोब असिस्टेंट के रूप में जुड़ने का अवसर मिला. इसके बाद पवन ने 1983 में आई जाने भी दो यारो और 1986 में रिलीज हुई खामोश जैसी फिल्मों में प्रोडक्शन असिस्टेंट के रूप में काम किया.
मुश्किल समय में काम आई पिता की सीख
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इसके बाद तो उन पर फिल्मों में काम करने का ऐसा जुनून सवार हुआ कि उन्होंने बिना किसी की परवाह किये सीधे बॉम्बे का रुख कर लिया. लेकिन समस्या ये थी कि यहां उनका कोई नहीं था. इसी वजह से उन्हें यहां आर्थिक तंगियों का सामना करना पड़ा. उन्हें 1984 में आए टीवी सीरियल, ‘ये जो है जिंदगी में’ एक असिस्टेंट के तौर पर काम मिला.
मगर, इसमें पैसे इतने कम थे कि इनका गुजारा होना मुश्किल था. यहीं उनके पिता द्वारा सिखाई बात उनके काम आई. खुद का गुजारा चलाने के लिए उन्होंने कभी अपने पिता से पैसे नहीं मांगे. इसके बदले उन्होंने ब्रेड फैक्ट्री से बची ब्रेड बेची, गौशाल में गायों को खिलाया. ऐसे संघर्षों से जूझते हुए वह आगे बढ़े.
पहली ही फिल्म में पा लिया राष्ट्रीय पुरस्कार
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इसके बाद इनकी किसमत ने आगे बढ़ने के रास्ते खोले. पवन मल्होत्रा को 1986 में आए टीवी सीरियल नुक्कड़ में काम मिला. इस शो के बाद लोग उन्हें जानने लगे. 1989 में उन्हें सलीम लंगड़े पे मत रो और बाग बहादुर फिल्म में मौका मिला और उन्होंने इस मौके पर चौका मार दिया. दोनों फिल्मों को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
इतना नाम होने के बावजूद पवन को यशराज फिल्म्स और सुभाष घई समेत कई बड़े फिल्म प्रोड्यूसर रिजेक्ट कर चुके थे लेकिन उनकी कोशिश जारी रही. इसके बाद 1997 में पवन को सुभाष घई की फिल्म परदेश में शाहरुख के दोस्त और 2010 में यशराज फिल्म्स की बदमाश कंपनी में शाहिद कपूर के मामा के रूप में काम मिला.
जब फिल्मी डॉन को असली डॉन ने दिया मिलने का न्योता
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पवन 1995 में आई अंग्रेजी फिल्म ब्रदर्स इन ट्रबल में भी अभिनय कर चुके हैं. लेकिन इन सबसे बड़ी कामयाबी उन्हें तब मिली जब उन्हें मशहूर फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप ने ब्लैक फ्राइडे में टाइगर मेनन के किरदार के लिए चुना. ये किरदार पवन के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस फिल्म में पवन ने अपने किरदार में ऐसी जान फूंकी कि हाजी मस्तान और दाऊद इब्राहिम जैसे अंडरवर्ल्ड डॉन भी इसके अभिनय के कायल हो गए.
इन दोनों ने पवन को मिलने का आमंत्रण दिया लेकिन पवन ने इसके लिए नहीं माने. इसके अलावा पवन मल्होत्रा 2015 में भगत पूरन सिंह जी के जीवन पर आधारित पंजाबी फिल्म ए जन्म तुम्हारे लेखे में भी अपनी शानदार अदाकारी दिखा चुके हैं. इस फिल्म के किरदार में उतारने के लिए पवन ने ग्रामीणों के बीच समय भी बिताया.