कॉलेजियम सिस्टम से लोग खुश नहीं, जजों की नियुक्ति करना सरकार का काम; किरेन रिजिजू की अहम टिप्पणी

नई दिल्ली: केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि देश के लोग कॉलेजियम सिस्टम से खुश नहीं हैं और संविधान की भावना के मुताबिक जजों की नियुक्ति करना सरकार का काम है. आरएसएस द्वारा प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका ‘पांचजन्य’ द्वारा सोमवार को आयोजित ‘साबरमती संवाद’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए किरेन रिजिजू ने कहा कि उन्होंने देखा है कि आधे समय न्यायाधीश नियुक्तियों को तय करने के लिए व्यस्त होते हैं, जिसके कारण उनका जो प्राथमिक काम होता है न्याय प्रदान करना, वह प्रभावित होता है.

किरेन रिजिजू इससे पहले भी कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठा चुके हैं. पिछले महीने उदयपुर में एक सम्मेलन के दौरान उन्होंने कहा था कि उच्च न्यायपालिका में नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है. जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर एक सवाल के जवाब में रिजिजू ने कहा कि 1993 तक भारत में प्रत्येक जजों को भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से कानून मंत्रालय द्वारा नियुक्त किया जाता था. उस समय हमारे पास बहुत प्रतिष्ठित जज थे.

उन्होंने आगे कहा कि संविधान में इसे लेकर पूरी तरह स्पष्टता है. इसमें कहा गया है कि भारत के राष्ट्रपति न्यायाधीशों की नियुक्ति करेंगे, इसका मतलब है कि कानून मंत्रालय भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगा. केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने आगे कहा कि जिस प्रकार मीडिया पर निगरानी के लिए भारतीय प्रेस परिषद है, ठीक उसी प्रकार न्यायपालिका पर निगरानी की एक व्यवस्था होनी चाहिए और इसकी पहल खुद न्यायपालिका ही करे तो देश के लिए अच्छा होगा.

उन्होंने यह भी कहा कि लोकतंत्र में कार्यपालिका और विधायिका पर निगरानी की व्यवस्था मौजूद है, लेकिन न्यायपालिका के भीतर ऐसा कोई तंत्र नहीं है. न्यायिक सक्रियता (ज्यूडिशियल एक्टिविज्म) से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका अगर अपने-अपने दायरे में रहे और अपने काम में ही ध्यान लगाए तो फिर यह समस्या नहीं आएगी. उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि हमारे कार्यपालिका और विधायिका अपने दायरे में बिल्कुल बंधे हुए हैं. अगर वे इधर-उधर भटकते हैं तो न्यायपालिका उन्हें सुधारती है. समस्या यह है कि जब न्यायपालिका भटकती है, उसको सुधारने का व्यवस्था नहीं है.’

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि मैं न्यायपालिका को कोई आदेश नहीं दे सकता हूं, लेकिन उसे ‘सतर्क’ जरूर कर सकता हूं क्योंकि वह भी लोकतंत्र का हिस्सा है और लाइव स्ट्रीमिंग व सोशल मीडिया के जमाने में वह भी जनता की नजर में है. उन्होंने कहा, ‘इसलिए आपका भी व्यवहार अनुकूल हो… जैसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बाकियों का होता है. लोग आपको भी देख रहे हैं… आप अपने लिए सेल्फ रेगुलेटिंग मेकैनिज्म (स्व-विनियमन तंत्र) बनाएं तो यह देश के लिए अच्छा होगा.’

उन्होंने उदाहरण दिया कि संसद का कोई सदस्य अगर आपत्तिजनक शब्दों या भाषा का इस्तेमाल करता है तो उस पर लगाम लगाने के प्रावधान हैं. इसी प्रकार प्रधानमंत्री से लेकर नीचे तक के लोग नियमों से बंधे होते हैं. उन्होंने कहा, ‘लेकिन लोकतंत्र में यह नियम हमारे न्यायपालिका में भी होना चाहिए…कोई इन हाउस मैकेनिज्म बनाया जाए न्यायपालिका के अंदर ही और वे ही इसको विनियमित करे तो यह सबसे अच्छा और उपयोगी होगा. ना कि हम कोई कानून बनाएं.’

रिजिजू ने कहा कि अदालती कार्रवाई के दौरान न्यायाधी टिप्पणियां करते हैं, लेकिन उनके फैसलों में इसका जिक्र नहीं होता है. उन्होंने कहा, ‘टिप्पणी करके न्यायाधीश अपनी सोच उजागर करते हैं और समाज में इसका विरोध भी होता है. न्यायपालिका के साथ फिर न्यायाधीशों के साथ जब भी मेरी वार्ता होती है तो मैं साफ तौर पर उनको कहता हूं कि वह अगर आदेश में टिप्पणी करें तो ज्यादा अच्छा रहेगा.’