PFI Ban: PFI के दरिंदों ने काटा था जिस प्रफेसर का हाथ, अब वो बैन पर बोले- जो निष्पक्ष हैं…

Professor T J Joseph And PFI : पीएफआई पर आज भले ही बैन लग गया हो, लेकिन उसने पिछले 16 वर्षों में कई खौफनाक वाकयों को अंजाम दे चुका है। पीएफआई बड़ी तेजी से तालिबानी राज कायम करने की तरफ कदम बढ़ाना चाहता था। खौफ के कारोबार में उसे बड़ी तेजी से सफलता भी मिल रही थी।

नई दिल्ली: मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) पर बैन लगने का ऐलान हुआ तो लोगों के जेहन में उसकी हैवानियत भरी करतूतें तैरने लगीं। 2007 में तीन अलग-अलग संगठनों के विलय से बने पीएफआई ने खासकर केरल में ऐसा कोहराम मचा रखा है जिसकी इस 21वीं सदी में कल्पना करना भी आसान नहीं है। मिजाज और अंदाज में बिल्कुल तालिबानी, पीएफआई ने बर्रबता के ऐसे-ऐसे वाकये पेश किए जिनकी याद मात्र से रोम-रोम कांप उठता है। प्रफेसर टीजे जोसफ की भी कहानी कुछ ऐसी ही है।

प्रश्न पत्र के एक पैसेज पर आपत्ति और काट दिया हाथ

वो साल 2010 था, जब पीएफआई के कार्यकर्ताओं ने प्रफेसर साहब के हाथ काट दिए। जानते हैं क्यों? क्योंकि प्रफेसर साहब ने परीक्षा पत्र तैयार किया था जिसका एक सवाल इन कट्टपंथियों को नागवार गुजरा। प्रफेसर जोसफ थोडुपूझाके न्यूमैन कॉलेज में मलयालम डिपार्टमेंट के हेड थे। पीएफआई ने प्रश्न पत्र के एक पैसेज में पैगंबर मुहम्मद का अपमान करने का आरोप लगाया। इसके बाद कई इस्लामी संगठन सामने आ गए और विरोध-प्रदर्शनों से तलहका मचा दिया। विवाद के बीच प्रफेसर जोसफ ने कहा कि उस पैसेज की गलत व्याख्या की जा रही है, उनका पैगंबर के अपमान का कोई मकसद नही था और न है। हालांकि, कट्टपंथियों के उग्र आंदोलनों के दबाव में आकर कॉलेज ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया और फिर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।


सर कलम करने की ली ट्रेनिंग और फिर दिया हैवानियत को अंजाम

जब वो जेल से बाहर आए तो एक दिन वो अपने परिवार के साथ चर्च जा रहे थे। वो 4 जुलाई 2010 का दिन था। चर्च के रास्ते में ही कट्टरपंथियों के एक झुंड ने प्रफेसर साहब और उनके परिवार पर हमला बोल दिया। परिवार वालों के सामने ही उन ‘तालिबानियों’ ने प्रफेसर जोसफ के बाएं हाथ काट डाले। इस खौफनाक वारदात से पूरे इलाका थर्रा गया। घटना के बाद केरल पुलिस ने 30 पीएफआई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया। उनके पास से सर कलम करते अल-कायदा के आतंकियों के वीडियो की सीडी पाई गई। इसका मतलब था कि प्रफेसर पर हमले से पहले उन ‘आतंकियों’ ने ट्रेनिंग ली थी। प्रफेसर जोसफ पर हमले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने की थी। और मई 2015 में एनआईए की स्पेशल कोर्ट ने 13 पीएफआई सदस्यों को दोषी पाया। प्रफेसर को यह खुशी मिलती, उससे पहले 2014 में प्रफेसर साहब को जिंदगी का दूसरा सबसे बड़ा सदमा लगा जब उनकी पत्नी शलोमी जोसफ ने आत्महत्या कर ली।

अब चुप ही रहना चाहते हैं प्रफेसर

अब जब पीएफआई पर बैन लग गया है तो प्रफेसर जोसफ का कहना है कि उनका मौन रहना ही बेहतर है। वो कहते हैं कि पीएफआई ने तो कई लोगों की बर्बर हत्या की है। इस संगठन ने जिसकी तरफ नजरें टेढ़ीं की, उनमें कई इस दुनिया में नहीं रहे। उनकी चुप्पी ही उन मृत आत्माओं का सम्मान है। प्रफेसर जोसफ ने कहा, ‘बेहतर होगा कि अभी कुछ प्रतिक्रिया नहीं दूं। कभी-कभी चुप्पी साधना ही सही होता है।’
आत्मकथा में लिखा वो खौफनाक अनुभव

प्रफेसर साहब ने उस खौफनाक वाकये के बाद अपनी आत्मकथा लिखी. अत्तुपोकथा ओर्माकल (अविस्मरणीय यादें) में उन्होंने धार्मिक कट्टरता और उसके भयावह परिणामों पर विस्तृत चर्चा की है। इस पुस्तक को केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। इसे ए थाउजेंड कट्स: एन इनोसेंट क्वेश्चन एंड डेडली आंसर्स नाम से अंग्रेजी में भी प्रकाशित किया गया है।

प्रफेस जोसफ ने अपनी इस आत्मकथा में कहा कि वो ऐसी मानसिक अवस्था को प्राप्त हो गए हैं कि अब वो अपने दुश्मनों को भी माफ कर देते हैं। उस किताब के बारे में वो कहते हैं, ‘यह बिल्कुल अलग बात है। यह राजनीतिक विचार और फैसलों को लेकर है। मैंने किताब में व्यक्तिगत मुद्दों पर बात की है। व्यक्तिगत विकास दरअसल राजनीतिक मुद्दे होते हैं जो देश को प्रभावित करते हैं। इसलिए, मेरा विनम्र सुझाव है कि नेता, नेतृत्वकर्ता, प्रशास अपने-अपने विचार रखें।’ उन्होंने कहा कि वो तो एक पीड़ित हैं, इसलिए उनका कुछ भी कहा निष्पक्ष नहीं माना जाएगा। इसलिए जरूरी है कि जो निष्पक्ष लोग हैं, वो कुछ कहें।