Supreme Court On Places Of Worship Act: सुप्रीम कोर्ट ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991’ (Places Of Worship Act) के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर 9 सितंबर को सुनवाई करने के लिए सहमत हो गया। इस कानून में किसी पूजा स्थल की 15 अगस्त, 1947 की स्थिति में बदलाव या किसी पूजा स्थल को फिर से हासिल करने के लिए मुकदमा दर्ज कराने पर रोक है।
एडवोकेट उपाध्याय ने एनबीटी को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह मामले में उक्त तारीख पर सुनवाई करेगा। अभी हाल ही में 29 जुलाई को प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को चुनौती देने वाले 6 याचिकाकर्ताओं से सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह इस मामले में पहले से पेंडिंग मामले में ही हस्तक्षेप याचिका (दखल) दायर करें। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने सभी याचिकाकर्ताओं से कहा था कि वह अपनी अर्जी में कानून को चुनौती देने के लिए जो आधार हैं वह बताएं। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को इस बात की लिबर्टी दी थी कि वह पहले से पेंडिंग दो अर्जी में अपनी दखल याचिका दायर कर सकते हैं। पहले से अश्विनी उपाध्याय की अर्जी पेंडिंग है।
एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने एक्ट के प्रावधानों को चुनौती दी
सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की ओर से पहले इस मामले में याचिका दायर कर एक्ट के प्रावधानों को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की ओर से अर्जी दाखिल कर प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की धारा – 2, 3 और 4 को चुनौती दी गई है और उसे गैर संवैधानिक घोषित करने की गुहार लगाई गई है। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत प्रावधान है कि 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में था और जिस समुदाय का था भविष्य में उसी का रहेगा।
जानिए याचिका में क्या कहा गया
याचिका में कहा गया है कि उक्त प्रावधान संविधान के अनुच्छेद-14, 15, 21, 25, 26 व 29 का उल्लंघन करता है। संविधान के समानता का अधिकार, जीवन का अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 दखल देता है। केंद्र सरकार ने अपने जूरिडिक्शन से बाहर जाकर ये कानून बनाया है। केंद्र ने हिंदुओं, सिख, जैन और बौद्ध के धार्मिक व पूजा स्थल के खिलाफ आक्रमणकारियों के अतिक्रमण के खिलाफ कानूनी उपचार को खत्म किया है। इन पूजा और धार्मिक स्थल पर आक्रमणकारियों ने अवैध व बर्बर तरीके से जो अतिक्रमण किया है उसे हटाने और अपने धार्मिक स्थल वापस पाने का कानूनी उपचार को बंद कर दिया गया है। इस बाबत जो कानून बनाया गया है वह गैर संवैधानिक है। केंद्र को ऐसा अधिकार नहीं है कि वह लोगों को कोर्ट जाने का रास्ता बंद कर दे। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का संवैधानिक अधिकार से किसी को वंचित नहीं किया जा सकता है।
मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा ए हिंद ने मांगी दलील की इजाजत
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के प्रावधानों के संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका में मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा ए हिंद ने दखल याचिका दायर की हुई है और कहा है कि इस मामले में उन्हें दलील देने की इजाजत दी जाए। इस मामले में सबसे पहले याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से अर्जी दाखिल की गई थी और उस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 12 मार्च 2021 को केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर रखा है।