दशहरा महोत्सव में निकलने वाली रथ यात्रा में पीएम मोदी भगवान रघुनाथ जी के दर्शन करने के बाद उनका रथ भी खींचेंगे। इसके बाद पीएम मोदी रथ मैदान के अटल सदन से रथयात्रा के दर्शन करेंगे।
कुल्लू: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा महोत्सव में शामिल होंगे। पीएम इस मेले में शामिल होने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री होंगे। यहां पर पीएम मोदी रघुनाथ जी का दर्शन कर उनका रथ भी खींचेंगे। इस रथ की कहानी बड़ी ही रोचक है। रघुनाथ जी की मूर्ति काफी मशक्कत के बात यहां पहुंची थी। यहां का राजपरिवार रघुनाथ जी का छड़ीबरदार होता है। पीएम मोदी रथ मैदान के अटल सदन से रथयात्रा के दर्शन करेंगे।
कुल्लू जिला प्रशासन ने पीएम मोदी के दौरे और रथयात्रा की पूरी तैयारी कर ली है। करीब 250 बजंतरी कुल्लू जिले के भुंतर एयरपोर्ट पर पीएम मोदी का पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुनों से स्वागत करेंगे। महोत्सव के लिए 332 पंजीकृत देवी-देवताओं को भी नियंत्रण दिया गया है। इस बार अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव 5 से 11 अक्टूबर तक मनाया जाएगा
कुल्लू दशहरे का 372 साल पुराना इतिहास
गौरतलब है कि कुल्लू दशहरा महोत्सव का इतिहास 372 साल पुराना है। 1660 में पहली बार इस ऐतिहासिक उत्सव का आयोजन हुआ था। उस समय कुल्लू रियासत की राजधानी नग्गर हुआ करती थी और जगत सिंह वहां के राजा जिन्होंने वर्ष 1637 से 1662 ईसवीं तक शासन किया। ऐसा कहा जाता है कि उनके शासनकाल में ही मणिकर्ण घाटी के गांव टिप्परी निवासी गरीब ब्राह्मण दुर्गादत्त राजा की किसी गलतफहमी के कारण आत्मदाह कर लिया। इसका दोष राजा जगत सिंह को लगा। इस दोष के कारण राजा को एक असाध्य रोग भी हो गया था।
कैसे कुल्लू लाई गई रघुनाथ की मूर्ति
असाध्य रोग से ग्रसित राजा जगत सिंह को एक पयोहारी बाबा किशन दास ने सलाह दी कि वह अयोध्या के त्रेतानाथ मंदिर से भगवान राम चंद्र, माता सीता और रामभक्त हनुमान की मूर्ति लाएं। इन मूर्तियों को कुल्लू के मंदिर में स्थापित करके अपना राज-पाठ भगवान रघुनाथ को सौंप दें तो उन्हें ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति मिल जाएगी। राजा ने उनकी बात मानकर श्री रघुनाथ जी की प्रतिमा लाने के लिए बाबा किशनदास के शिष्य दामोदर दास को अयोध्या भेजा था। काफी मशक्कत के बाद मूर्ति कुल्लू पहुंची थी।
राज परिवार का सदस्य होता है छड़ीबरदार
रघुनाथ की मूर्ति को कुल्लू में स्थापित किया गया और उनके आगमन में राजा जगत सिंह ने यहां के सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया। राजा ने भी अपना राजपाठ भगवान को अर्पण कर दिया और खुद उनके मुख्य सेवक बन गए। यह परंपरा आज भी चल रही है जिसमें राज परिवार का सदस्य रघुनाथ जी का छड़ीबरदार होता है।
नहीं जलाया जाता रावण का पुतला
कुल्लू में दशहरा उत्सव का आयोजन ढालपुर मैदान में होता है। लकड़ी से बने आकर्षक और फूलों से सजे रथ में रघुनाथ की पावन सवारी को मोटे मोटे रस्सों से खींचकर दशहरे की शुरआत होती है। राज परिवार के सदस्य शाही वेशभूषा में छड़ी लेकर उपस्थित रहते हैं। आसपास कुल्लू के देवी-देवता शोभायमान रहते हैं।
दिलचस्प है कु्ल्लू दशहरे में रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतले नहीं जलाए जाते। हालांकि दशहरा के अंतिम दिन लंका दहन जरूर होता है। इसमें भगवान रघुनाथ मैदान के निचले हिस्से में नदी किनारे बनाई लकड़ी की सांकेतिक लंका को जलाने जाते हैं। शाही परिवार की कुलदेवी होने के नाते देवी हिडिंबा भी यहां विराजमान रहती हैं।