Modi Putin Xi Jinping Meeting In SCO: पीएम मोदी शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में शामिल हुए हैं। पीएम मोदी का व्लादिमीर पुतिन से मिलने का कार्यक्रम तय है। भारतीय प्रधानमंत्री और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बैठक होने की भी अटकले हैं। इन दोनों ही बैठकों पर अमेरिका समेत पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं।
- पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच आज मुलाकात होनी है
एससीओ शिखर सम्मेलन के तहत गुरुवार शाम को सभी शीर्ष नेताओं के लिए डिनर का आयोजन किया गया था। इसमें चीनी राष्ट्रपति शामिल नहीं हुए है जबकि पीएम मोदी डिनर संपन्न होने के बाद पहुंचे। कई विश्लेषकों का कहना है कि पीएम मोदी ने समझदारी भरा फैसला किया और पुतिन और बेलारूस के तानाशाह लुकाशेंको जैसे अमेरिका विरोधी नेताओं के साथ फोटो खिंचवाने से परहेज किया। शंघाई सहयोग संगठन को अमेरिका के वैश्विक सिस्टम का जवाब देने के लिए बनाया गया संगठन माना जाता है। पीएम मोदी ने शी जिनपिंग से साल 2019 के बाद से मुलाकात नहीं की है। ऐसे में दुनिया की नजरें समरकंद पर टिकी हुई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यूक्रेन युद्ध जब सातवें महीने में प्रवेश कर गया है, भारत एक ऐसे देश के रूप में उभरा है जो उन सबसे बड़े देशों की लिस्ट शामिल जिनके रुख से एक गुट का पलड़ा दूसरे के खिलाफ भारी हो जाता है। रूस पर भारत की हथियारों और ऊर्जा की निर्भरता को देखते हुए अभी तक अमेरिका और नाटो देशों ने भारत को मास्को के साथ नजदीकी संबंधों को लेकर कई बार धमकी दी लेकिन पीएम मोदी के सख्त रुख के बाद उन्होंने अपने सुर धीमे कर लिए हैं।
रूस और अमेरिका के बीच संतुलन साधने में बड़ी कामयाबी
विशेषज्ञों के मुताबिक पश्चिमी रुख में आई नरमी की एक सबसे बड़ी वजह चीन है। लद्दाख से लेकर ताइवान तक आंखें दिखा रहे चीन के खिलाफ बने हिंद प्रशांत क्षेत्र के देशों के समूह क्वॉड का भारत अभिन्न हिस्सा है। अमेरिका की हिंद प्रशांत रणनीति भारत के बिना अधूरी है। अमेरिका की यही निर्भरता और ड्रैगन से निपटने के लिए भारत की वॉशिंगटन की जरूरत को देखते हुए दोनों को एक-दूसरे के करीब आ चुके हैं। पीएम मोदी ने अभी तक रूस और अमेरिका के बीच संतुलन साधने में बड़ी कामयाबी हासिल की है और भारत के हितों को आगे बढ़ाया है। पीएम मोदी ने रूस से सस्ता तेल लिया और चीन से निपटने के लिए एस-400 जैसे हथियार भी लिए हैं। वहीं अमेरिका और उसके सहयोगी देशों से भारत ने बड़े पैमाने पर निवेश हासिल किया है ताकि चीन के सप्लाइ चेन पर दुनिया की निर्भरता को कम किया जा सके। हालांकि भारत के लिए मुश्किल बढ़ने वाली है।
अमेरिका और उसके सहयोगी देश रूसी तेल की कीमतों पर एक अधिकतम सीमा तय करने जा रहे हैं ताकि पुतिन की आमदनी कम हो जाए। उनकी मंशा को रूस को यूक्रेन के मुद्दे पर झुकाने की है। इंडिया पॉलिसी के एक वरिष्ठ सलाहकार रिचर्ड रोस्सोव का कहना है, ‘यूक्रेन पर रूसी हमले को लेकर भारत के तटस्थ रुख ने अमेरिका में हमारे हितों और मूल्यों को लेकर कठिन सवाल पैदा कर दिए हैं। एससीओ जैसे सम्मेलन रूस को मदद देंगे और सहयोग के नए दरवाजे खोलेंगे। इससे अमेरिका में नीति निर्माताओं को भारत को रूस के साथ रिश्ते रखने पर प्रतिबंध नहीं लगाने के फैसले पर दोबारा सोचने को मजबूर कर देगा।’ अमेरिका ने भारत के एस-400 खरीदने पर अभी तक कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है। भारत ने अभी तक अमेरिका की ओर से रूसी तेल की कीमतें तय करने पर अपनी हामी नहीं दी है। इससे दोनों देशों के बीच मतभेद बढ़ा है। उधर, अमेरिका ने भारत के दुश्मन पाकिस्तान को 45 करोड़ डॉलर के एफ-16 पैकेज को मंजूरी दी है जिसका नई दिल्ली ने कड़ा विरोध किया है।
‘रूस-चीन बनाम अमेरिका, भारत के लिए आने वाले मुश्किल घड़ी’
भारत ने पिछले दिनों रूस के वोस्तोक 2022 सैन्य अभ्यास में हिस्सा लिया था लेकिन जापान के पास नौसैनिक अभ्यास से खुद को अलग कर लिया था। इससे भी जापानी खुश नहीं हैं। एक जापानी अधिकारी ने ब्लूमबर्ग से कहा, ‘अगर हमारी सेना पाकिस्तान के साथ युद्धाभ्यास करे और कश्मीर न जाए तो क्या इससे भारत सहज महसूस करेगा। अनंता एस्पेन सेंटर की अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार इंद्राणी बागची कहती हैं, ‘भारत के सामने चुनौती यह है कि रूस के साथ रिश्ता अब गिरावट की ओर है और नई दिल्ली को अब अमेरिका के साथ रिश्तों को मजबूत करना है। साथ ही एक उभरती हुई ताकत के नाते भारत को अपने हितों की रक्षा करनी है। यह कोई मायने नहीं रखता है कि भारत रूस के साथ अपने रिश्तों को किस हद तक बनाए रखना चाहता है, यह समय बीतने के साथ और ज्यादा कठिन होता जाएगा।’
इस बीच अमेरिका ने आशा जताई है कि भारत खुद को रूस के साथ जोड़ेगा। अमेरिका के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा, ‘हमने सर्वोच्च स्तर पर विभिन्न कदमों को लेकर चिंता जताई है जो रूस को यूक्रेन युद्ध खत्म करने के लिए मजबूर करने के प्रयासों को कमजोर कर सकता है।’ माना जा रहा है कि इसी अमेरिकी चिंता को ध्यान में रखते हुए पीएम मोदी एससीओ के डिनर में शामिल नहीं हुए। अब सबकी नजरें पीएम मोदी और पुतिन के बीच मुलाकात के बाद जारी होने वाले बयान पर है। भारत ने साल 2021 के 2 अरब डॉलर की तुलना में इस साल रूस से 11 अरब डॉलर ज्यादा का व्यापार किया है। इससे पश्चिमी देश नाराज हैं।
‘भारत के द्विपक्षीय रिश्ते से अमेरिका को मतलब नहीं होना चाहिए’
वहीं भारत की चिंता रूस और चीन के बीच बढ़ती दोस्ती को लेकर है जिसकी अब ‘कोई सीमा’ नहीं होगी। भारत का चीन के साथ तनाव है। लंदन के किंग्स कॉलेज के प्रफेसर हर्ष पंत कहते हैं कि रूस यूक्रेन युद्ध के बाद अब चीन का पिछलग्गू बन सकता है और यह एक ऐसी समस्या है जिसका समाधान भारत को करना होगा। वहीं ताइवान में रह रही अंतरराष्ट्रीय मामलों की भारतीय विशेषज्ञ सना हाशिमी कहती हैं, ‘भारत के एससीओ में भागीदारी का भारत-अमेरिका रिश्तों या क्वॉड में भारत की भागीदारी पर कोई असर नहीं पड़ेगा। भारत की अपनी सोच है और भारत के द्विपक्षीय रिश्ते या किसी दूसरे क्षेत्रीय गुट में भागीदारी से अमेरिका या किसी दूसरे देश को मतलब नहीं होना चाहिए।