Political Gossip: नरेंद्र मोदी सरकार 2024 आम चुनाव से पहले सबसे बड़ा मंत्रिमंडल फेरबदल करने जा रही है। बीजेपी में ऐसी चर्चा तेज है। एक राज्य के मुख्यमंत्री को बदलने की भी अटकलें हैं।
बीजेपी हलकों में माना जा रहा है कि आखिरकार वह घड़ी आ ही गई। मतलब 2024 आम चुनाव से पहले का सबसे बड़ा मंत्रिमंडल फेरबदल अब बस किसी भी समय होने को है। कहा जा रहा है कि अगर यह फेरबदल 15 से 21 जनवरी के बीच हो जाएगा, नहीं तो फिर आगे की राह कठिन है। वजह यह है कि इसके तुरंत बाद बजट सत्र शुरू हो जाएगा और उसके बाद चुनावी मौसम की शुरुआत हो जाएगी। विधानसभा चुनावों का मौसम निपटा तो फिर आम चुनाव को भी साल भर से कम रह जाएगा। ऐसे में अब उन लोगों का एक-एक दिन कटना कठिन हो रहा है, जिनका नाम इस बार मंत्रिमंडल से जुड़ने या इससे हटने वालों की सूची में माना जा रहा है। संदेश दिया जा रहा है कि इस बार सरकार में फेरबदल न सिर्फ 2024 आम चुनाव को ध्यान में रखकर बल्कि भविष्य की टीम बनाने के उद्देश्य से भी किया जा सकता है।
अब तक की चर्चाओं के अनुसार तीन दर्जन से अधिक नए मंत्रियों को जगह दी जा सकती है और इतने ही पुराने मंत्रियों की छुट्टी भी हो सकती है। लेकिन इस बार तमाम दावेदार किसी भी तरह अपने नाम की चर्चा शपथ लेने से पहले नहीं करना चाहते हैं। वे प्रधानमंत्री मोदी का मिजाज समझ चुके हैं कि जिसका नाम मीडिया या फिर सोशल मीडिया में जितना उछला, उसकी दावेदारी उतनी ही कमजोर होगी।
सीएम भी बदलेगा!
एक ओर केंद्र में सबसे बड़े कैबिनेट फेरबदल की चर्चा हो रही है, तो दूसरी ओर बीजेपी शासित एक राज्य के मुख्यमंत्री के भविष्य पर अटकलें लगनी शुरू हो गई हैं। माना जा रहा है कि बीजेपी के इस कद्दावर सीएम को मंत्रिमंडल फेरबदल के बाद दिल्ली बुलाया जा सकता है। हालांकि पिछले कई महीनों से उनके बारे में ऐसी चर्चा उठती रही है लेकिन हर बार फेरबदल में वह बच जाते हैं। माना जा रहा है कि उस मुख्यमंत्री के नेतृत्व परिवर्तन के पक्ष में शीर्ष नेतृत्व तो है लेकिन उनके बदले कुर्सी किसे सौंपी जाए, इस बारे में अभी तक पार्टी कोई राय नहीं बना सकी है।
दरअसल पार्टी बहुत अधिक विकल्प की समस्या से परेशान हो गई है। उधर इन अटकलों से बेफिक्र सीएम महोदय अगले टर्म के लिए भी दावेदारी ठोकने में अभी से व्यस्त हो गए हैं। वह अपनी इमेज में सुधार के लिए एक बड़ा कैंपेन भी शुरू करने वाले हैं जिसमें दावा है कि जो भी एंटी इनकंबेंसी है, वह काउंटर कर दी जाएगी। बीजेपी के लिए यह राज्य न सिर्फ विधानसभा बल्कि आम चुनाव के लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण है। ऐसे में पार्टी हर समीकरण को सेट करने के बाद ही किसी तरह का फैसला लेगी।
केसीआर-अखिलेश की दुविधा
इन दिनों विपक्षी एकता की कोशिश में तेलंगाना के सीएम केसीआर और उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम अखिलेश यादव के बीच अच्छी केमिस्ट्री देखी जा रही है। दोनों एक-दूसरे की खूब तारीफ करते दिखते हैं। दिलचस्प बात है कि दोनों दलों के हाल में कांग्रेस से संबंध कुछ बिगड़े रहे हैं। हालांकि इसकी वजहें एकदम विपरीत हैं। केसीआर तेलंगाना में कांग्रेस से गठबंधन चाहते हैं लेकिन कांग्रेस वहां टीआरएस से गठबंधन नहीं चाहती है। वहीं उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अखिलेश यादव को विपक्षी एकता का हिस्सा देखना चाहती है लेकिन अखिलेश यादव कांग्रेस का साथ नहीं चाहते। यही दुविधा विपक्षी एकता के लिए दक्षिण से उत्तर तक सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है। माना जा रहा है कि इस दुविधा के बीच नीतीश कुमार ही मध्यस्थता कर सकते हैं। उन्होंने संकेत भी दिया है कि बिहार में समाधान यात्रा के बाद वह विपक्षी एकता की यात्रा पर निकलेंगे।
संघ का फीडबैक
आम चुनाव से पहले संघ के कुछ शीर्ष पदाधिकारियों ने बीजेपी से कुछ मुद्दों पर सचेत रहने का आग्रह किया है। देश के तमाम हिस्सों से मिल रहे फीडबैक के आधार पर संघ की ओर से मिडिल क्लास में सामने आ रही नाराजगी के बारे में पार्टी को बता दिया गया है। इसमें मिडिल क्लास को पिछले कुछ सालों में हर मौके पर हो रही दिक्कतों के बारे में बताया गया है। कहा गया है कि नोटबंदी से लेकर कोरोना काल तक मिडिल क्लास ने हर मौके पर सरकार के फैसलों का साथ दिया। संघ का मानना है कि अब उसी के अनुरूप मिडिल क्लास को भी सरकार से अपेक्षा है और उसकी यह अपेक्षा गलत भी नहीं है। ऐसे में क्या बजट में इस फीडबैक का ध्यान रखा जाएगा? साथ ही पुरानी पेंशन योजना के प्रति बढ़ते समर्थन के बारे में भी फीडबैक दिया गया है। कहा गया कि सरकार को अपने स्तर पर इसके तमाम पहलुओं के बारे में सोचना चाहिए।