कवियों ने राजनीति पर किया करारा प्रहार, बोले- पूरे राज्य में जो दुखी हैं, वे राज्यद्रोही हैं वे सत्ता के शत्रु हैं

मेरे लिए कविता के मायने एवं रचना-पाठ सत्र की अध्यक्षता करते हुए विख्यात कवि अरुण कमल ने कहा कि हिंसा करने वाले के लिए कविता श्राप है। यह आदि कवि बाल्मीकि के कथन हैं। कविता समाज की तस्वीर है। 

कवियों ने राजनीति पर किया करारा प्रहार

अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव ‘उन्मेष’ के तीसरे और आखिरी दिन देश के प्रतिष्ठित कवियों ने अपनी कविताओं के जरिये राजनीतिक व्यवस्था पर करारा प्रहार किया। मेरे लिए कविता के मायने एवं रचना-पाठ सत्र की अध्यक्षता करते हुए विख्यात कवि अरुण कमल ने कहा कि हिंसा करने वाले के लिए कविता श्राप है। यह आदि कवि बाल्मीकि के कथन हैं। कविता समाज की तस्वीर है। उन्होंने ..मैंने गोर से देखा और पाया कि राष्ट्र के प्रधान के जीवन में नींद नहीं, मंत्रिमंडल की बैठक हमेशा देर रात, हर जरूरी फैसला आधी रात के बाद, फौज की तैनाती का हुकुम ढाई बजे रात, विरोधियों की नजरबंदी का आदेश पौने तीन बजे, विदेश यात्रा की उड़ान रात दो बजे, कविता सुनाई। इस पर सभागार तालियाें से गूंज उठा।

इसके अलावा, अपना क्या है इस जीवन में, सब तो लिया उधार, सारा लोहा उन लोगों का, अपनी केवल धार, कविता सुनाई। टीवी धारावाहिक देवों के देव.. महादेव के कथा शोधकर्ता और फिल्मों के लिए कथा संवाद लिखने वाले कवि बोधिसत्तव ने ‘राज्य की ओर से सूचित किया जाता है कि प्रजा हर प्रकार से सुखी है..कविता सुनाई। सुखी प्रजा के पास वह सब है, जितना और जो जो राजा के पास है, मंत्री के पास है, अफसर के पास है। पूरे राज्य में जो दुखी है वे राज्य द्रोही हैं, वे सत्ता के शत्रु हैं, वे विधर्मी हैं वे झूठे हैं। इन कविताओं को लोगों ने खूब सराहा। कवि असद जैदी की ओर से किए गए इस कविता के अंग्रेजी अनुवाद का कविता पाठ जाने माने अंग्रेजी के कवि अश्वनी कुमार ने किया। पूरा सभागार तालियों से गूंज उठा। इस सत्र में ओड़िया कवि अमरेंद्र खटुआ और अंग्रेजी में कविताएं लिखने वाली विनीता अग्रवाल ने भी कविता पाठ किया।

नक्सल प्रभावित क्षेत्र के कवि ने उकेरी आदिवासी जीवन की पीड़ा
पश्चिमी बंगाल के नक्सल प्रभावित मिदनापुर से आए युवा कवि परिमल हांसदा ने अपनी कविता के जरिये आदिवासी लोगों के जीवन की पीड़ा को उकेरा। ‘बदलना अगर चाहते हो मुझे, तो तुम क्यों बदल नहीं जाते। धर्म बदलने को कहते हो, मातृ भाषा में बोलने से रोकते हो, बल पूर्वक कहते हो, अपनी संस्कृति से ही चलना।’ संताली लेखिका यशोदा मुर्मू ने विस्थापन के दर्द पर सच्ची घटना पर आधारित कहानी सुनाई। कहा कि माओवादी का ठप्पा लगा कर आदिवासियों की जमीन हड़पने की कोशिशें की गई हैं।

भारत में काल्पनिक एवं विज्ञान कथा पर हुई परिचर्चा
भारत में काल्पनिक एवं विज्ञान कथा परिचर्चा की अध्यक्षता सुदर्शन वशिष्ठ ने की। देवेंद्र मेवाड़ी, के मुरलीकृष्ण, शिमला की साहित्यकार मीनाक्षी चौधरी और साधना शंकर ने भाग लिया। विश्वस्तरीय कालजयी कृतियां और भारतीय पाठक परिचर्चा की अध्यक्षता चिन्मय गुहा ने की। अश्वनी कुमार, कृष्णा मनवल्ली, सायंतन दासगुप्ता, शफी किदवई ने व्याख्यान दिया। भारतीय भाषाओं में प्रकाशन परिचर्चा सत्र की अध्यक्षता निर्मल कांति भट्टाचार्यी ने की। ईएन नंदकुमार, राकेश रेणू, रमेश मित्तल, बीके कार्तिका और विजय कुमार धुपती ने संवाद में भाग लिया।