ये तो हम सब जानते हैं कि ज़िंदगी इम्तिहान लेती है, लेकिन कई लोगों को तो ये ज़िंदगी ऐसा बना देती है कि वे इस इम्तिहान में बैठने लायक भी नहीं रहते. इंसान किसी रेस में तभी हिस्सा लेगा ना, जब उसकी टांगे सलामत होंगी. हम अपने आसपास देखते हैं और पाते हैं कि यहां ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें ज़िंदगी ने इस लायक बनाया ही नहीं कि वे कुछ कर सकें. सही मायने में देखा जाए तो असली इम्तिहान तो इन्हीं का है.
सोच कर देखिए कि आप उसेन बोल्ट को किस लिए जानते हैं? क्योंकि वे दुनिया के सबसे तेज धावक माने जाते हैं. लेकिन अगर यही उसेन ट्रैक को अपने पैरों पर दौड़ते हुए पार करने की बजाए किसी बाइक से वो दूरी तय करें तो हम उन्हें क्यों जानेंगे? ज़िंदगी सबको उसेन बोल्ट बनने का मौका नहीं देती जनाब, इसके लिए चुनौतियां चाहिए और उन्हें पार करने का जज़्बा.
हमारी आज की कहानी एक ऐसे ही रियल लाइफ हीरो की है, जिन्होंने अपने जज्बे से साबित कर दिया कि नामुम्किन कुछ भी नहीं. हम बात करे रहे हैं रमेश घोलप की, जिसका बचपन मजदूरी की आग में तपते हुए बीता. जन्म के साल डेढ़ साल बीते तो पोलिओ उनकी एक टांग निगल गयी. बावजूद इसके वह IAS अफसर बना.