Delhi Air Pollution: सफदरजंग अस्पताल के प्रोफेसर, निदेशक कम्यूनिटी मेडिसिन डॉ. जुगल किशोर कहते हैं कि जब वायु प्रदूषण होता है, तो हमारी सांस की नली में बहुत ज्यादा इरिटेशन होता है। पीएम 2.5 माइक्रो या पीएम 2.10 इसमें जो छोटे कण या गैसें होती हैं वह सांस की नलियों को नुकसान पहुंचाती हैं…
Delhi Air Pollution
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण को काबू रखने के सारे जतन फेल हो गए हैं। राजधानी सहित आसपास के क्षेत्रों में हालात बेकाबू हो चले हैं। जैसे-जैसे हवा जहरीली होती जा रही है, लोगों को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। धुंध और धुएं की घनी चादर में मध्यम और गंभीर कोविड-19 से उबरे लोगों को इस प्रदूषण से बचने की सख्त हिदायत है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का साफ कहना है कि जो लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं, ऐसे लोग घर से बाहर न निकलें। सुबह 4 से 9 बजे के बीच निकलने से परहेज करें। अगर संभव हो तो कुछ दिनों के लिए लोगों को दिल्ली-एनसीआर से दूर जाना बेहतर विकल्प है।
रेस्पिरेटरी फेलियर का खतरा
दरअसल, वायु प्रदूषण होने से लोगों को फ्लकचुएटिंग ऑक्सीजन सैचुरेशन, फेफड़ों में दिक्कत, अत्यधिक खांसी, अस्थमा अटैक, सांस लेने में दिक्कत, आंखों में जलन, घबराहट और लंग फेलियर समेत कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में जो लोग कोरोना वायरस की चपेट में आ चुके हैं, उन्हें इस प्रदूषण से ज्यादा खतरा है। यह जहरीली हवा और प्रदूषण फेफड़ों की इम्युनिटी को कमजोर करते हैं। ऐसे में अगर कोरोना संक्रमित हो चुके व्यक्ति को कोई इंफेक्शन हो जाता है, तो उसकी हालत गंभीर हो सकती है। क्योंकि कोविड के उभरने के बाद फेफड़ों में रिजर्व कम हो जाता है। इसकी वजह से लोगों को रेस्पिरेटरी फेलियर हो सकता है।
अमर उजाला से चर्चा में सफदरजंग अस्पताल के प्रोफेसर, निदेशक कम्यूनिटी मेडिसिन डॉ. जुगल किशोर कहते हैं कि जब वायु प्रदूषण होता है, तो हमारी सांस की नली में बहुत ज्यादा इरिटेशन होता है। पीएम 2.5 माइक्रो या पीएम 2.10 इसमें जो छोटे कण या गैसें होती हैं वह सांस की नलियों को नुकसान पहुंचाती हैं। इससे खांसी, सांस में तकलीफ या अस्थमा जैसी दिक्कतें होती हैं। जो लोग पहले से फेफड़े संबंधी बीमारी से परेशान हैं या जिनके फेफड़े कमजोर हैं या फिर जो कोविड संक्रमित हो चुके हैं या क्रॉनिक ऑब्सट्रैक्टिव पल्मोनरी डिसीज से पीड़ित हैं, उन्हें इस दौरान बेहद सतर्क रहने की जरूरत है। इन बीमारी से ग्रसित व्यक्तियों को इन दिनों में ज्यादा से ज्यादा समय घर में रहना चाहिए। अगर कोई जरूरी काम नहीं है, तो बाहर निकलना बंद कर देना चाहिए।
अस्थमा अटैक का बढ़ रहा है खतरा
डॉ. किशोर कहते हैं कि कोविड संक्रमण ने लोगों में अस्थमा को अनमास्क कर दिया है। अगर ऐसे लोग प्रदूषण के संपर्क में आते हैं तो उन्हें अस्थमा का अटैक आ सकता है। कोरोना के बाद कुछ मरीजों में अस्थमा का खांसी वाला वैरिएंट देखा गया है। इसमें रोगियों को घरघराहट की आवाज नहीं आती, लेकिन खांसी बहुत आती है। वायु प्रदूषण से बचने के लिए लोग अच्छी क्वॉलिटी के मास्क का प्रयोग करें। संभव हो तो सुबह 4 बजे से 9 बजे तक घर से निकलने से बचें। सुबह-सुबह की सैर और व्यायाम से बचें। क्योंकि इस दौरान प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा होता है। इसके अलावा भीड़ वाले इलाकों में जाने से बचें। जो लोग धूम्रपान करते हैं, उन्हें वायु प्रदूषण के दौरान इसे बंद कर देना चाहिए। यह सेहत के लिए ज्यादा नुकसानदेह साबित हो सकता है।
लोगों को लेना पड़ रही स्ट्रांग मेडिसिन
स्वास्थ्य विशेषज्ञ का कहना है कि वायु प्रदूषण की वजह से ऐसे लोगों को सांस लेने में परेशानी, फेफड़ों में दिक्कत, खांसी और गले में दिक्कत हो रही है, जो पहले कोविड-19 का शिकार हो चुके हैं। ऐसे मरीजों में नॉर्मल मेडिसिन का तुरंत असर देखने को नहीं मिल रहा और इसमें काफी वक्त लग रहा है। ऐसी स्थिति में डॉक्टर स्ट्रांग मेडिसिन दे रहे हैं। पहले ऐसे मरीज दवाइयों से 4 से 5 दिनों में ठीक हो जाते थे, लेकिन अब 1 सप्ताह से ज्यादा का वक्त लग रहा है।