Popular Front Of India Ban: पीएफआई बैन के खिलाफ या समर्थन में हैं मायावती? कहना क्या चाहती हैं समझिए सियासत

Mayawati on PFI Ban: पीएफआई पर बैन के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती का बयान सामने आया है। उन्होंने ये तो साफ नहीं किया है कि वह इस प्रतिबंध के खिलाफ हैं या समर्थन में लेकिन मायावती ने इस मुद्दे पर विपक्ष के रुख को साफ करने की कोशिश की है।

लखनऊ: देश में पीपुल्स फ्रंट ऑफ इंडिया (Popular Front Of India) पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद सियासी बयानबाजियों का दौर जारी है। सत्तारूढ़ बीजेपी से लेकर कई प्रदेशों की सरकारों के मुख्यमंत्री केंद्र के इस निर्णय का स्वागत कर रहे हैं। वहीं विपक्ष केंद्र को घेरने की कोशिश में है। इस बीच राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव के एक बयान पर घमासान मचा हुआ है। दरअसल लालू प्रसाद यादव ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर भी बैन लगाने की मांग कर डाली है। आरजेडी ही नहीं कांग्रेस की तरफ से भी ये मांग उठी है। इस पूरे मसले पर अब बसपा सुप्रीमो मायावती का अहम बयान आया है। मायावती ने अपने ट्वीट में ये तो साफ नहीं किया है कि वह खुद पीएफआई पर बैन के खिलाफ हैं या समर्थन में हैं लेकिन वह यह समझाने की कोशिश कर रही हैं कि पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने का विपक्षी पार्टियां विरोध क्यों कर रही हैं और क्यों आरएसएस पर बैन की मांग हो रही है? लेकिन मायावती के इस ट्वीट में सियासत भी छिपी है, आइए समझते हैं पूरा मामला…

आमतौर पर तमाम मुद्दों पर सधा हुआ बयान देने वाली मायावती ने अपना ये अंदाज पीएफआई के मुद्दे पर भी बरकरार रखा है। मायावती ने ट्वीट किया है, “केन्द्र द्वारा पीपुल्स फ्रण्ट आफ इण्डिया (पीएफआई) पर देश भर में कई प्रकार से टारगेट करके अन्ततः अब विधानसभा चुनावों से पहले उसे उसके आठ सहयोगी संगठनों के साथ प्रतिबन्ध लगा दिया है, उसे राजनीतिक स्वार्थ व संघ तुष्टीकरण की नीति मानकर यहां लोगों में संतोष कम व बेचैनी ज्यादा है। यही कारण है कि विपक्षी पार्टियां सरकार की नीयत में खोट मानकर इस मुद्दे पर भी आक्रोशित व हमलावर हैं और आरएसएस पर भी बैन लगाने की माँग खुलेआम हो रही है कि अगर पीएफआई देश की आन्तरिक सुरक्षा के लिए खतरा है तो उस जैसी अन्य संगठनों पर भी बैन क्यों नहीं लगना चाहिए?”

मायावती के इस बयान का क्या है मतलब?
दरअसल बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही हैं। सपा से गठबंधन कर उन्होंने लोकसभा में तो 10 सीटें हासिल कर ली थीं लेकिन हाल के विधानसभा चुनाव में बसपा एक तरह से यूपी से साफ हो चुकी है। पार्टी यूपी विधानसभा में सिर्फ एक विधायक के साथ खड़ी है। पार्टी के इस हश्र के बाद मायावती ने अपना सोशल इंजीनयिरिंग फार्मूला छोड़ दिया है। पार्टी के बड़े ब्राह्मण नेता सतीश चंद्र मिश्रा किनारे कर दिए गए हैं। यूपी चुनाव परिणाम के बाद खुद मायावती इस बात को स्वीकार कर चुकी हैं, मुस्लिम मतदाताओं का रुझान पूरी तरह समाजवादी पार्टी की तरफ रहा, जिसके कारण बसपा को नुकसान हुआ।

दलित-मुस्लिम गठजोड़ की सियासत बनी मजबूरी
अब बसपा वापस दलित-मुस्लिम गठजोड़ की सियासत पर लौट रही है। मायावती ने इस पर काम भी करना शुरू कर दिया है। पार्टी संगठन में मुस्लिम नेताओं को तरजीह दी जा रही है। यही नहीं प्रत्याशी चयन में ऐसा देखने को मिल रहा है। हाल ही में हुए लोकसभा उपचुनाव में रामपुर की सीट से बसपा प्रत्याशी नहीं उतारना भी इसी रणनीति का हिस्सा माना गया। दरअसल कुछ समय पहले आजम खान की अखिलेश यादव से नाराजगी की तमाम खबरें आ रही थीं। अखिलेश पर आरोप लग रहे थे कि जेल में आजम का हाल तक पूछना उन्होंने मुनासिब नहीं समझा। इन आरोपों के बीच मायावती ने आजम खान के समर्थन में बयान देकर संदेश देने की कोशिश की। फिर रामपुर की लोकसभा सीट जो आजम के इस्तीफे से ही खाली हुई थी उस पर बसपा ने प्रत्याशी नहीं उतारकर सियासत साधने की कोशिश की।

आजमगढ़ से जगी उम्मीद
यही नहीं आजमगढ़ उपचुनाव में तो बसपा ने अपने पुराने नेता गुड्डू जमाली को वापस पार्टी में बुलाया और मैदान में उतार दिया। गुड्‌डू जमाली ने इस चुनाव में तगड़ी चुनौती दी और समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव के लिए राहें मुश्किल हो गईं। नतीजतन ये सीट बीजेपी के दिनेश लाल यादव निरहुआ ने जीत ली। बसपा की हार जरूर हुई लेकिन मायावती ने गुड्‌डू जमाली के प्रदर्शन की प्रशंसा की। साफ है बसपा को मुस्लिम वोट मिलने से पार्टी सुप्रीमो गदगद हैं और इस सुधार के क्रम को आगे जारी रखना चाहती हैं। अब सियासी हलकों में पीएफआई को लेकर मायावती का ताजा बयान इसी कड़ी का हिस्सा माना जा रहा है।