चंबल लिटरेरी फेस्टिवल के तीसरे साल का आयोजन चंबल-यमुना के दोआबा में राष्ट्रकवि शिशुपाल सिंह भदौरिया ‘शिशु’ के जन्मस्थली पर आगामी 3-4 दिसंबर को आयोजित किया जाएगा। दो दिवसीय साहित्य और संस्कृति का समागम कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया महाविद्यालय, कामेत, उदी परिसर में होगा।

चंबल लिटरेरी फेस्टिवल में इतिहास, साहित्य और कलाओं को समेटे यहां के सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बदलावों पर हुए लेखन पर विमर्श और उनका मूल्याकंन होगा। इस साहित्य महाकुंभ से चंबल अंचल में पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा। बगावत का उद्गम स्थल चंबल ने जहां सदियों से अपनी छाप छोड़ी है, वहीं वैश्विक साहित्य और विचार को प्रेरित किया है। चंबल की समृद्ध साहित्यिक विरासतों पर विभिन्न विषयों पर चर्चा सत्र का आयोजन होना लाजिमी है। इसमें लेखन, संगीत, पेंटिंग, फिल्म, वास्तुकला पर व्याख्यानों, सेमिनारों, कार्यशालाओं, चर्चा सत्रों के जरिये चंबल साहित्य को बढ़ावा देने के लिए लेखक, दार्शनिक, विचारक और कलाकार मंथन करेंगे।
सीएलएफ के संस्थापक क्रांतिकारी लेखक डॉ. शाहआलम राना ने कहा, चंबल घाटी के साकारात्मक पहलुओं पर कम और नाकारात्मक पहलुओं पर ज्यादा लिखा पढ़ा गया है, जिससे चंबल की छवि को गहरा धक्का लगा है। विश्व धरोहर चंबल घाटी का दाग मिटाने के लिए ‘चंबल लिटरेरी फेस्टिवल’ की नींव साल 2020 में रखी गई। उत्तर भारत के मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान तक विस्तृत चंबल के बीहड़ों का संघर्षमय अतीत बरसों से सृजनधर्मियों को आंदोलित करता रहा है। यह अंचल और यहां की नदियां, तट और उनका रजत-मृदुल कैनवस पर उकेरी जाने वाली कल्पनाओं की तरह चित्रमय और भावमय बनाने को सहज ही उकसाती है। यह चंबल की धरती जो हमेशा मानवता के पक्ष में खड़े होने और विद्रोह की प्रेरक बनती आई है।
चंबल लिटरेरी फेस्टिवल के तीसरे साल आयोजन का पोस्टर शासकीय एमजे एस महाविद्याल, भिंड में रिलीज किया गया। सीएलएफ आयोजन समिति ने बताया, सीएलएफ के दो दिवसीय आयोजन को चार सत्रों में बांटा गया है। पहला सत्र-चंबल: इतिहास और संस्कृति, दूसरा सत्र: कविताओं में चंबल, तीसरा सत्र: फिल्में और लोक कलाएं, चौथा सत्र: चंबल के सरोकारी रचनाकार रखा गया है।
