मानसून की दस्तक से पहले राजस्थान में गहरा सकता है बिजली संकट, जानें वजह

 राजस्थान में अगले एक सप्ताह में कोयले की आपूर्ति सुचारू नहीं होती है तो आने वाले हफ्ते से राजस्थान में बिजली संकट गहरा सकता है. यह हम नहीं बल्कि राजस्थान के बिजली विभाग के अधिकारियों ने राजस्थान को सरकार कहां है. अब राजस्थान की सरकार कोयले की आपूर्ति को सुचारू बनाने के प्रयास के लिए वैकल्पिक इंतजामों में जुट गई है. दरअसल राजस्थान में कोयले का संकट समय से दूर करने के इंतजाम नहीं होंगे. यह बात लंबे समय से जगजाहिर थी. मगर फिर भी सरकार के अफसरों ने बिजली संकट को दूर करने के लिए समय रहते किसी तरह का कोई वैकल्पिक इंतजाम नहीं किया, वो तो विंड एनर्जी ने सूबे की जनता को आंशिक राहत दे रखी है, वरना प्रदेश में बिजली संकट के हालात लगातार बिगड़ सकते है.
अब चिंता की बात यह है कि राजस्थान में कोयले से बिजली उत्पादन करने वाले बिजलीघरों में अभी 4 से 6 दिन का ही कोयला बचा है. राज्य विद्युत उत्पादन निगम को छत्तीसगढ़ में आवंटित खदान (पारसा ईस्ट-कांटा बासन कोल ब्लॉक) में भी केवल 13 से 15 दिन का ही कोयला बचा है. ऐसे में मानसून के दौरान प्रदेश में बिजली संकट की आशंका है.
जानें क्यों होगा राजस्थान में बिजली संकट
संकट इसलिए बढ़ा है क्योंकि छत्तीसगढ़ में स्थानीय ‘राजनीति’ के कारण राजस्थान को अलॉट की गई द्वितीय चरण की खदान (841 हेक्टेयर) से खनन शुरू नहीं हो पाया. इसलिए प्रदेश के 4340 मेगावाट की बिजली उत्पादन यूनिट में कोयला संकट के हालात बन रहे हैं.
राजस्थान के कोल आधारित बिजलीघरों में कोयला स्टॉक का हाल
छबड़ा सुपर क्रिटिकल थर्मल प्लांट में बचा केवल 2.5 दिन का कोयला
छबड़ा सब क्रिटिकल थर्मल प्लांट में केवल 7 दिन का कोयला
कालीसिंध थर्मल प्लांट में शेष रहा केवल 7 दिन का कोयला
सूरतगढ़ सब क्रिटिकल थर्मल प्लांट में बचा केवल 7 दिन का कोयला
सूरतगढ़ सुपर क्रिटिकल थर्मल प्लांट में – 6.5 दिन का बचा कोयला
कोटा थर्मल प्लांट में शेष रहा केवल 7 दिन का कोयला स्टॉक
वैकल्पिक इंतजाम करने में जुटी सरकार
राजस्थान में मानसून की औपचारिक दस्तक से ठीक पहले बिजली का संकट गहरा सकता है. इसे दूर करने के लिए पहले से तो कोई प्लान नहीं बनाया गया. मगर अब प्लान बनाया जा रहा है और बिजली खरीद की वैकल्पिक व्यवस्था के लिए प्रयास किए जा रहे है. राजस्थान सरकार का ऊर्जा विभाग इसके लिए  ऊर्जा विकास निगम के माध्यम से बिजली खरीद की वैकल्पिक व्यवस्था के प्रयास तेज कर दिए हैं. इसके लिए ऊर्जा विभाग एनटीपीसी, सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (सेकी) और अन्य बिजली उत्पादकों से करीब 2500 मेगावाट के अनुबंध करने जा रहा है.
खनन नहीं हुआ शुरु
दरसल छत्तीसगढ़ के सरगूजा में राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम को खदान आवंटित है. यहीं दूसरे चरण में 841 हेक्टेयर जमीन से खनन शुरू किया जाना है, लेकिन कुछ एनजीओ और स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं.. वन भूमि होने और वहां से पेड़ काटने से पर्यावरण को नुकसान होने का हवाला दिया जा रहा है. तीन दिन पहले स्थानीय लोग रेल ट्रैक पर बैठ गए जिससे कोयले की 9 की बजाय 6 रैक ही मिली. जबकि केन्द्र और छत्तीसगढ़ सरकार दोनों निर्धारित शर्तों के साथ अनुमति दे चुकी है.
……फिर भी नहीं हुआ समाधान
इस मामले में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल से मिल चुके हैं, लेकिन फिर भी संकट दूर नहीं हुआ और एक बार फिर से राजस्थान में कोय़ले की कमी के चलते बिजली संकट गहरा सकता है. राजस्थान के ऊर्जा मंत्री भंवर भाटी कोयले की कमी को स्वीकार कर रहे हैं और कह रहे है कि केंद्र सरकार हमारी मदद करें ताकि राजस्थान में बिजली संकट ना हो.
नियम-कायदें ताक पर
राजस्थान लगातार बिजली संकट के दौर में केंद्र से सहयोग मांग रहा है. मगर कोयला स्टॉक से जुड़े नियम कायदे भी बने हुए है जिन्हे राजस्थान पूरी तरह फॉलो नहीं कर रहा है. कोयला स्टॉक का नियम यह है कि कोयला स्टॉक की सीमा बिजलीघरों की कोयला खदान की दूरी के आधार पर तय की गई है. राजस्थान के बिजलीघरों की कोयले की खदान से दूरी ज्यादा है, इसलिए यहां कोयला स्टॉक 22 से 26 दिन तक तय किया हुआ है. मगर ग्राउंड पर स्थिति यह है कि प्रदेश में कोयले से बिजली उत्पादन करने वाले चार बिजलीघरों में 23 यूनिट हैं और अभी महज 4 से 6 दिन का ही कोयला है