प्रांजल पाटिल: देश की पहली नेत्रहीन IAS की कहानी, जो सिखा रही है कि हार के बाद जीतते कैसे हैं

दुनिया के उजाले को भले ही आंखों की रौशनी से देखा जाता हो लेकिन जीवन में फैले अंधकार को मिटाने का काम हमेशा मन की आंखें ही करती हैं. हमारे आसपास बहुत से ऐसे लोग हैं जो अपने ज़िंदगी में आए किसी कठिन मोड़ को नियति का फरमान मान कर उसे पार नहीं कर पाते. ऐसे लोग जीवन को भी अपनी सामान्य आंखों से ही देखते हैं लेकिन वहीं प्रांजल पाटिल जैसी शख्सियतें हर अंधेरे को अपनी मन की आंखों से दूर करती हैं और अंधेरे के उस पार का रास्ता खोज लेती हैं. हमारी आज की कहानी उस लड़की के जीवन को बयां करेगी जिसने अपनी आंखों की रौशनी तो खो दी लेकिन अपनी हिम्मत को टूटने नहीं दिया और रच दिया इतिहास. 

कौन है प्रांजल पाटिल 

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महाराष्ट्र के उल्हासनगर में जन्मी प्रांजल की नन्हीं आंखों में बड़े सपने जागने लगे थे लेकिन उनके इन सपनों के टूटने का सिलसिला तब शुरू हुआ जब मात्र 6 साल की उम्र में इनकी आँखों की रौशनी चली गई. एक अचेत घटना ने नन्हीं प्रांजल की दुनिया में अंधकार भर दिया लेकिन प्रांजल साहसी थीं. उनकी दुनिया भले ही अंधकार से भर गई थी लेकिन उन्होंने फैसला किया कि वह अपने जीवन में इस अंधकार को नहीं घुसने देंगी और अपने आने वाले भविष्य को इस तरह से रौशन करेंगी कि देखने वाला हर शख्स उनकी कमजोरी को नहीं बल्कि उनकी उपलब्धि को देखेगा. बस यही सोच कर वह जी तोड़ मेहनत करने लगीं. उन्होंने अपनी कमजोरी के कारण खुद को कभी हारने नहीं दिया. आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और उन्होंने कुछ ऐसा कर दिखाया जिसे उनसे पहले कोई नहीं कर पाया था. जी हां, प्रांजल अपनी लगन और मेहनत से देश की  पहली नेत्रहीन महिला आईएएस ऑफिसर बन गईं. 

 

आंखों की रौशनी गई मगर पढ़ने की लगन नहीं 

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भले ही प्रांजल के आँखों की रौशनी छिन गई थी लेकिन उनके मन में पढ़ने की लगन हमेशा बनी रही. उन्होंने मुंबई के दादर स्थित श्रीमती कमला मेहता स्कूल से अपनी प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की है. यह स्कूल उन खास बच्चों के लिए था जिन्होंने प्रांजल की तरह भले ही अपनी आंखों की रौशनी खो दी हो लेकिन मन में पढ़ने की लगन बनाए रखी हो. प्रांजल ने यहां ब्रेल लिपि में अपनी पढ़ाई पूरी की थी. यहां से 10वीं कक्षा पास करने के बाद प्रांजल ने चंदाबाई कॉलेज से आर्ट्स में 12वीं की तथा 85% नंबरों से परीक्षा पास की. प्रांजल ने इसके आगे की पढ़ाई मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज से पूरी की. 

 

ऐसे किया यूपीएससी परीक्षा देने का फैसला 

 

उस समय प्रांजल ग्रेजुएशन में पढ़ रही थीं, इन्हीं दिनों उनके एक दोस्त ने यूपीएससी के बारे में एक लेख पढ़ा था. यह पहली बार था जब प्रांजल यूपीएससी के बारे में इतना विस्तार से जान रही थीं. इस लेख ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि इसके बाद वह निजी तौर पर इस परीक्षा के बारे में जानकारी जुटाने लगीं. दरअसल प्रांजल ने पहले ही यह फैसला कर लिया था कि वह यूपीएससी की परीक्षा जरूर देंगी लेकिन वह इस फैसले के बारे में किसी को नहीं बता रही थीं. सेंट जेवियर से ग्रेजुएशन करने के बाद प्रांजल ने दिल्ली के प्रतिष्ठित कॉलेज जेएनयू का रुख किया. अपने जीवन में प्रांजल ने हर परेशानी का हल निकाला. कभी भी उन्होंने इस वजह से हार नहीं मानी क्योंकि वह देख नहीं सकतीं. यूपीएससी की तैयारी के लिए भी इन्होंने एक रास्ता निकाल और आंखों की रौशनी खो चुके लोगों के लिए बने एक खास सॉफ्टवेयर जॉब ऐक्सेस विद स्पीच की मदद ली. प्रांजल की पढ़ाई जारी रही. इन्होंने एमफिल करने के बाद पीएचडी करने का फैसला किया. 

 

आखिरकार पा ली मंजिल  

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प्रांजल पर यूपीएससी क्लियर करने का जुनून सवार हो चुका था. वह इसके लिए दिन रात मेहनत करने लगीं लेकिन बड़ी बात ये थी कि इन्होंने सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के किसी तरह की कोचिंग का सहारा नहीं लिया. वह बस विशेष सॉफ्टवेयर की मदद से ही अपनी परीक्षा की तैयारी में लगी रहीं. ये खास सॉफ्टवेयर उनके लिए किताबें पढ़ सकता था. इसके अलावा प्रांजल ने मॉक टेस्ट पेपर भी हल किये थे और डिस्कशन में भी हिस्सा लिया था.

 

प्रांजल की मेहनत दिख रही थी लेकिन ये किस हद तक सही थी इसका फैसला परिणाम के बाद ही होना था. साल  2016 में प्रांजल यूपीएससी की प्रथम परीक्षा में बैठीं और अपने पहले ही प्रयास में इन्होंने अपनी मेहनत का दम दिखा दिया. इन्होंने ऑल इंडिया 773वां रैंक हासिल कर परीक्षा पास कर ली थी. रैंक अच्छी थी लेकिन दृष्टिबाधित होने के कारण इन्हें भारतीय रेलवे लेखा सेवा में नौकरी नहीं मिली लेकिन कहते हैं ना जो होता है अच्छे के लिए ही होता है. प्रांजल को अगर वह नौकरी मिल जाती तो वह शायद इतिहास ना रच पातीं. इसके बाद इन्होंने अपने अगले प्रयास के लिए जी जान लगा दी. इस बार इनकी मेहनत की चोट से उठने वाले कामयाबी का शोर दूर तक जाने वाला था. इनकी मेहनत ने रंग दिखा दिया था और इन्होंने अपने दूसरे प्रयास में बिना किसी कोचिंग के ऑल इंडिया 124वां रैंक प्राप्त कर लिया. इसके साथ ही प्रांजल भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए चुनी गईं. प्रांजल ने तिरुवनंतपुरम के उप-कलेक्टर के पद पर स्थापित होने से पहले केरल के एर्नाकुलम में एक सहायक कलेक्टर का कार्यभार संभाला था.