भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में आठवें राष्ट्रपति का चुनाव कई मायने में उल्लेखनीय था. खासकर जैल सिंह के एक कमेंट के लिए, जिसे मीडिया ने ही नहीं प्रमुखता दी बल्कि विपक्ष ने इस कमेंट के लिए उन्हें खूब आड़े हाथों लिया. लेकिन ये सच्चाई है कि जब वह राष्ट्रपति बन गए तो कई मौकों पर उन्होंने इस पद की गरिमा और जिम्मेदारियों का ना केवल बखूबी वहन किया बल्कि वो अड़ने वाले राष्ट्रपति भी साबित हुए.
इंदिरा गांधी 1980 में जब वापस सत्ता में लौटीं तो वो कहीं ज्यादा ताकतवर हो चुकीं थीं. जब 1982 में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले थे तो इंदिरा गांधी के इर्द गिर्द कई ऐसे नेताओं के नाम थे, जो उनके बहुत भऱोसेमंद थे. राजीव गांधी को वो राजनीति में लेकर आईं थीं. वो कांग्रेस में महासचिव के पद पर आसीन कर दिए गए थे.
राजीव उस समय राजनीति को समझ ही रहे थे. एक दिन उन्होंने राजीव गांधी से कहा कि वो पार्टी के नेताओं और अपने खास नेताओं के जरिए एक पैनल की लिस्ट तैयार करें कि किसे अगला राष्ट्रपति बनाया जाए. जब लिस्ट तैयार हुई तो उसमें कई नाम थे. लेकिन एक नाम जिस पर इंदिरा और राजीव दोनों सहमत थे, वो थे तत्कालीन गृह मंत्री जैल सिंह. जो इंदिरा गांधी के बहुत भरोसेमंद थे. लोकसभा की कार्यवाहियों में शेरो शायरी के जरिए चुटकियां लेने में पारंगत.
जैल सिंह का वो झाड़ू वाला कमेंट
जब इंदिरा गांधी ने उन्हें राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाया, जो उनका एक कमेंट कई सालों तक चर्चित रहा, इस पर विपक्षी नेताओं ने उनकी काफी खिल्ली भी उड़ाई . दरअसल उन्होंने अपना नाम घोषित होने के बाद कहा, अगर मैडम मुझे झाडू देकर सफाई करने के लिए कहें तो मैं इससे भी पीछे नहीं हटूंगा. बस उनका ये कमेंट चर्चित होने लगा.
विपक्ष ने आड़े हाथों लिया
विपक्ष ने इस कमेंट पर उन्हें आड़े हाथों लिया. जैल सिंह की काफी आलोचना हुई. लेकिन जैल सिंह ने भी कभी अपने इस कमेंट पर ना तो सफाई दी और ना ही अफसोस जाहिर किया. बल्कि उन्होंने हमेशा इंदिरा गांधी के लिए अपनी निष्ठा बरकरार रखी.
जस्टिस हंसराज खन्ना बने विपक्ष के उम्मीदवार
जब इंदिरा गांधी ने कांग्रेस की ओर से जैल सिंह को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाया तो विपक्ष ने संयुक्त तौर पर सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व जस्टिस हंसराज खन्ना को उम्मीदवार बनाया. खन्ना वो शख्स थे, जिन्होंने आपातकाल के दौरान इंदिरा से टकराने की हिम्मत की थी.
राष्ट्रपति रहने के दौरान ज्ञानी जैल सिंह पैंथर्स पार्टी के नेता भीम सिंह के साथ (विकी कामंस)
इंदिरा से आपातकाल में टकराने की हिम्मत की थी
दरअसल आपातकाल के दौरान एक विवादास्पद कानून इंदिरा गांधी ने लागू किया था जिसमें कोई भी ऐसा व्यक्ति कोर्ट में न्याय के लिए अपील नहीं कर सकता था, जिसके साथ बुरा बर्ताव हुआ हो या फिर जिसके परिवार के सदस्यों को बिना किसी कानूनी अधिकार के ही हिरासत में ले लिया गया हो.
इस कानून की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक पैनल गठित किया. इसमें 5 जज शामिल थे. मुख्य न्यायाधीश अजित नाथ राय, जस्टिस बेग, जस्टिस भगवती, जस्टिस हंसराज खन्ना और जस्टिस चंद्रचूड़. हालांकि इनमें से किसी ने ये हिम्मत नहीं दिखाई कि वो इंदिरा के खिलाफ जा सकें. बस एक ही शख्स इसके खिलाफ खड़ा हुआ और अंत तक डटा रहा, वो थे हंसराज खन्ना, जिन्होंने न्याय का साथ नहीं छोड़ा.
अंत तक अपनी बात पर डटे रहे
उन्होंने महाधिवक्ता से पूछा कि भारतीय संविधान में नागरिकों को प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है. आपातकाल में यदि कोई पुलिस अधिकारी केवल व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण किसी व्यक्ति की हत्या कर देता है, तो क्या आपके अनुसार मृतक के संबंधियों को न्याय पाने के लिए कोई रास्ता नहीं है?
जवाब में महाधिवक्ता नें कहा कि जब तक आपातकाल जारी है तब तक ऐसे व्यक्तियों को न्याय पाने का कोई रास्ता नहीं है. तब भी हंसराज पैनल में अपनी राय में अडिग रहे. उन्हें हमेशा उनके इस साहस के लिए याद किया गया. वर्ष 2008 में उनका निधन हुआ.
ज्ञानी जैल सिंह एक सम्मान समारोह में. वह ऐसे राष्ट्रपति थे जिन्होंने संविधान के दायरे में बखूबी अपने अधिकारों का इस्तेमाल किया. समय समय पर सरकार के साथ असहमति भी जाहिर की.जैल सिंह को कितने वोट मिले
12 जुलाई 1982 को राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग हुई. इसमें जैल सिंह को 754,113 वोट वैल्यू मिले. जबकि हंसराज खन्ना को 282,685 वोट वैल्यू. इस जीत के बाद जैल सिंह पहले सिख राष्ट्रपति बने.
कैसे बने जरनैल से जैल सिंह
जैल सिंह का बचपन का नाम जरनैल सिंह था. पिता खेती करते थे. वह एक किसान के बेटे थे जिसने हल चलाया, फसल काटी, पशु चराए और खेती के तमाम काम किए. उनकी स्कूली शिक्षा भी पूरी नहीं हो पाई कि उन्होंने उर्दू सीखने की शुरूआत की. फिर हारमोनियम बजाना सीखकर गुरवाणी भी करने लगे. वह गुरुग्रंथ साहब के ‘व्यावसायिक वाचक’ भी बने. इसी से उन्हें ‘ज्ञानी’ की उपाधि मिली. अंग्रेजों द्वारा कृपाण पर रोक लगाने के विरोध में उन्हें जेल जाना पड़ा. वहीं से उन्होंने अपना नाम बदलकर जैल सिंह लिखवा दिया.
राजीव को प्रधानमंत्री बनाना सुनिश्चित किया
जब 1984 में इंदिरा गांधी के अंगरक्षकों ने गोलियां चलाकर उनकी हत्या कर दी तो जैल सिंह ने कई दिग्गज कांग्रेसी नेताओं के होने के बावजूद ये सुनिश्चित किया कि राजीव गांधी ही प्रधानमंत्री बनें. उन्होंने उन्हें शपथ के लिए बुलाया.
बाद में राजीव से संबंधों में आ गईं तल्खियां
हालांकि बाद में उनके और प्रधानमंत्री राजीव गांधी के रिश्ते इतने बिगड़ गए कि वो उनकी सरकार को बर्खास्त करने के बारे में भी सोचने लगे.उस दौरान राष्ट्रपति ने कई बार सरकार द्वारा भेजी गई फाइलों पर सवाल खड़े किए. उन्हें बगैर साइन किए लौटा दिया. कई फाइलों को ठंडे बस्ते में डाल दिया. इस मामले में जैल सिंह अकेले ऐसे राष्ट्रपति थे, जिन्होंने संविधान के दायरे में रहकर ये दिखाया कि राष्ट्रपति के क्या अधिकार होते हैं.
तब जैल सिंह ने पॉकेट वीटो का इस्तेमाल किया
1986 में जब राजीव गांधी की सरकार प्रेस को कंट्रोल करने के लिए इंडियन पोस्ट ऑफिस (संशोधन) बिल लेकर आई तो राष्ट्रपति के तौर पर जैल सिंह ने इस बिल पर अपने अधिकार पॉकेट वीटो का इस्तेमाल किया, जिसके लिए उन्होंने इस बिल पर कोई कार्यवाही नहीं की. इससे ये संदेश गया कि राष्ट्रपति इस बिल पर विरोध जता रहे हैं. बाद में ये बिल वापस ले लिया गया. इस बिल की जबरदस्त तरीके से आलोचना भी हुई थी.
बाद के दिनों में उनके और प्रधानमंत्री राजीव गांधी के रिश्ते इतने तनावपूर्ण हो गए थे कि दोनों में संवाद भी खत्म हो गए थे. जैल सिंह अपने कार्यकाल के खत्म होने के बाद पंजाब में अपने गांव में जाकर रहने लगे. 78 साल की उम्र में रोपर में उनकी कार से एक ट्रक से टकराई. इसमें उन्हें बुरी तरह चोटें आईं. उन्हें चंडीगढ़ पीजीआई में भर्ती कराया गया. एक महीने के आसपास वो वहां भर्ती रहे लेकिन उनकी हालत बिगड़ती गई. उन्हें बचाया नहीं जा सका. 25 दिसंबर 1994 के दिन उन्होंने आखिरी सासें लीं.