नई दिल्ली: मिलिट्री हार्डवेयर के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में उठाए गए एक बड़े कदम के तहत, रक्षा मंत्रालय ने रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (Defence Acquisition Procedure) मैनुअल में संशोधन करने का निर्णय लिया है, जिससे प्राइवेट सेक्टर को सार्वजनिक रक्षा उपक्रमों में बहुसंख्यक हिस्सेदारी के साथ आवश्यक हथियार प्रणाली का निर्माण करने की अनुमति मिलेगी.
हिन्दुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट में साउथ ब्लॉक के अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों के साथ प्राइवेट सेक्टर की इस भागीदारी का पहला परीक्षण इंडियन मल्टी-रोल हेलीकॉप्टर (IMRH) के विकास और निर्माण में किया जाएगा.
IMRH से वर्तमान में भारतीय सेना द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे, रूसी निर्मित सभी Mi-17 और Mi-8 हेलीकॉप्टरों को बदला जाएगा. इंडियन मल्टी-रोल हेलीकॉप्टर यानी IMRH 13 टन वजन के साथ उड़ान भर सकेगा. यह स्वदेशी हेलीकॉप्टर भारतीय सशस्त्र बलों के साथ एयर अटैक, एंटी सबमरीन, एंटी शिप, मिलिट्री ट्रांसपोर्ट और VVIP भूमिकाओं में प्रदर्शन करेगा. यह समझा जाता है कि भारतीय निजी क्षेत्र की कंपनियों ने पहले ही इस प्रोजेक्ट में शामिल होने की उत्सुकता दिखाई है और रक्षा मंत्रालय ने उन्हें अगले 7 वर्षों में IMRH की मैन्युफैक्चरिंग शुरू करने के लिए कहा है.
फ्रांसीसी कंपनी सफ्रान ने एएचएल के साथ किया है समझौता
फ्रांसीसी कंपनी सफ्रान (Safran) ने पहले ही 8 जुलाई, 2022 को हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं. इस समझौते का मकसद एक नया जॉइंट वेंचर बनाना है, जो IMRH के लिए इंजन विकसित करेगा और उसका उत्पादन करेगा. इसमें IMRH के नौसेना संस्करण के इंजन का डेवलपमेंट एंड प्रोडक्शन शामिल होगा. अधिकारियों के अनुसार, निजी क्षेत्र की कंपनियों को अपने उत्पादन का 25 प्रतिशत तीसरे देशों को निर्यात करने और देश के लिए विदेशी मुद्रा जुटाने की अनुमति होगी. भारतीय सशस्त्र बलों को विकसित आईएमआरएच खरीदने के लिए कहा गया है, जिसके उत्पादन के लिए अगले 7 वर्षों का समय निर्धारित किया गया है.
निजी क्षेत्र की कंपनियों ने रक्षा मंत्रालय से यह आश्वासन भी मांगा है कि भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा तब भी IMRH हेलीकॉप्टरों की खरीद की जाएगी, यदि उनका उत्पादन अगले 5 वर्षों में ही शुरू हो जाता है. भारतीय सार्वजनिक उपक्रमों में निजी क्षेत्र को 51 प्रतिशत तक हिस्सेदारी हासिल कर एक संयुक्त उद्यम बनाने की अनुमति देने का निर्णय इसलिए लेना पड़ा, क्योंकि भारतीय सार्वजनिक उपक्रम तय समयसीमा में डिलीवरी नहीं दे पाए, जिससे लागत भी बढ़ गई. इस देरी के कारण मोदी सरकार के पास अन्य देशों से टेंडर के जरिए या गवर्नमेंट-टू-गवर्नमेंट डील के माध्यम से बहुत आवश्यक सैन्य उपकरणों को खरीदने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.