मैकू चट्टियों और स्लीपरों की माला गरदन में लटकाए खड़ा था. इन दोनों सेठों की बातें सुनकर हँसा.
जुलूस स्वाधीनता के नशे में चूर चौरास्ते पर पहुंचा तो देखा, आगे सवारों और सिपाहियों का एक दस्ता रास्ता रोके खड़ा है.
बीरबल- मुझे यह हुक्म है कि जुलूस यहां से आगे न जाने पाए.
बीरबल ग्रेजुएट था. उसका बाप सुपरिंटेंडेंट पुलिस था. उसकी नस-नस में रोब भरा हुआ था. अफसरों की दृष्टि में उसका बड़ा सम्मान था. खासा गोरा चिट्टा, नीली आंखों और भूरे बालों वाला तेजस्वी पुरुष था. शायद जिस वक्त वह कोट पहन कर ऊपर से हैट लगा लेता तो वह भूल जाता था कि मैं भी यहां का रहनेवाला हूं. शायद वह अपने को राज्य करनेवाली जाति का अंग समझने लगता था; मगर इब्राहिम के शब्दों में जो तिरस्कार भरा हुआ था, उसने जरा देर के लिए उसे लज्जित कर दिया. पर मुआमला नाजुक था. जुलूस को रास्ता दे देता है, तो जवाब तलब हो जाएगा; वहीं खड़ा रहने देता है, तो यह सब न जाने कब तक खड़े रहें. इस संकट में पड़ा हुआ था कि उसने डी. एस. पी. को घोड़े पर आते देखा. अब सोच-विचार का समय न था. यही मौका था कारगुजारी दिखाने का. उसने कमर से बेटन निकाल लिया और घोड़े को एड़ लगा कर जुलूस पर चढ़ाने लगा. उसे देखते ही और सवारों ने भी घोड़ों को जुलूस पर चढ़ाना शुरू कर दिया. इब्राहिम दारोगा के घोड़े के सामने खड़ा था. उसके सिर पर एक बेटन ऐसे जोर से पड़ा कि उसकी आंखें तिलमिला गईं. खड़ा न रह सका. सिर पकड़ कर बैठ गया. उसी वक्त दारोगा जी के घोड़े ने दोनों पांव उठाए और जमीन पर बैठा हुआ इब्राहिम उसकी टापों के नीचे आ गया. जुलूस अभी तक शांत खड़ा था. इब्राहिम को गिरते देख कर कई आदमी उसे उठाने के लिए लपके; मगर कोई आगे न बढ़ सका. उधर सवारों के डंडे बड़ी निर्दयता से पड़ रहे थे. लोग हाथों पर डंडों को रोकते थे और अविचलित रूप से खड़े थे. हिंसा के भावों में प्रभावित न हो जाना उसके लिए प्रतिक्षण कठिन होता जाता था. जब आघात और अपमान ही सहना है, तो फिर हम भी इस दीवार को पार करने की क्यों न चेष्टा करें? लोगों को खयाल आया शहर के लाखों आदमियों की निगाहें हमारी तरफ लगी हुई हैं. यहां से यह झंडा लेकर हम लौट जाएं, तो फिर किस मुंह से आजादी का नाम लेंगे; मगर प्राण-रक्षा के लिए भागने का किसी को ध्यान भी न आता था. यह पेट के भक्तों, किराए के टट्टुओं का दल न था. यह स्वाधीनता के सच्चे स्वयंसेवकों का, आजादी के दीवानों का संगठित दल था- अपनी जिम्मेदारियों को खूब समझता था. कितने ही के सिरों से खून जारी था, कितने ही के हाथ जख्मी हो गए थे. एक हल्ले में यह लोग सवारों की सफों को चीर सकते थे, मगर पैरों में बेड़ियां पड़ी हुई थीं- सिद्धान्त की, धर्म की, आदर्श की.
इस मार-धाड़ की खबर एक क्षण में बाजार में जा पहुंची. इब्राहिम घोड़े से कुचल गए कई आदमी जख्मी हो गए, कई के हाथ टूट गए; मगर न वे लोग पीछे फिरते हैं और न पुलिस उन्हें आगे जाने देती है.
कैलाश ने उस बढ़ती हुई घटा की ओर देख कर कहा- जी हां, हजारों आदमी हैं.
मिट्ठन बाई ने सिर हिला कर कहा- तुम कम से कम इतना तो कर ही सकते थे कि उन पर डंडे न चलाने देते. तुम्हारा काम आदमियों पर डंडे चलाना है? तुम ज्यादा से ज्यादा उन्हें रोक सकते थे. कल को तुम्हें अपराधियों को बेंत लगाने का काम दिया जाय, तो शायद तुम्हें बड़ा आनंद आयेगा, क्यों?
सहसा एक युवती ने दारोगा जी की तरफ देख कर कहा- कोतवाल साहब, कहीं हम लोगों पर डंडे न चला दीजिएगा. आपको देखकर भय हो रहा है!
बीरबल ने मिट्ठन बाई की ओर आंखों का भाला चलाया; पर मुंह से कुछ न बोले. एक तीसरी महिला ने फिर कहा- हम एक जलसा करके आपको जयमाल पहनाएंगे और आपका यशोगान करेंगे.
एक कांस्टेबल ने आकर प्रशंसा की- हुजूर का हाथ गहरा पड़ा था. अभी तक खोपड़ी खुली हुई है. सबकी आंखें खुल गईं.
उसने क्रोधमय आश्चर्य से पूछा- तुम यहां कैसे आए?
2022-10-08