आपके आस-पास कई सारे ऐसे लोग होंगे, जो अक्सर अपनी किस्मत को कोसते होंगे. जबकि, सच तो यह है कि दृढ़ इच्छा शक्ति और मेहनत के दम पर अपनी किस्मत खुद लिखी जा सकती है. छोटे शहरों और गांव से निकली कई होनहार बेटियों ने इसे समय-समय पर साबित किया है. (Rural India has excellent talent). आज हम आपके लिए ऐसे ही कुछ लड़कियों की कहानी लेकर आए हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत से छोटी उम्र में कमाल किया और पढ़ने के जूनून के आगे ग़रीबी को पीछे छोड़कर अपने परिवार का नाम रौशन किया.
1. पिता ऑटो चलाते हैं, बेटी 10वीं में 96% नंबर लेकर आई
जयपुर की रहने वाली 15 वर्षीय सुहानी शक्रवाल ने 10वीं की परीक्षा में 96 प्रतिशत नंबर लाकर अपने परिवार का नाम रौशन कर दिया है. सुहानी की यह उपलब्धि इसलिए भी खास है क्योंकि उनकी माता पिंकी और पिता राजेश दोनों पढ़े-लिखे नहीं हैं. पेशे से ऑटो ड्राइवर पिता ने आर्थिक परेशानियां झेलते हुए सुहानी को स्कूल भेजा.
कोरोना काल में सुहानी के परिवार ने वो दौर भी देखा जब उनके परिवार को दूसरों के कपड़े धोकर अपना घर चलाना पड़ा. परिवार के संघर्ष ने सुहानी को प्रेरित किया और उन्होंने खुद को पूरी तरह से पढ़ाई के लिए समर्पित कर दिया. एक तरफ वो दिन-रात पढ़ाई में जुटी रही. वहीं जरूरत पड़ने पर घर के कामकाज में अपनी मां का हाथ भी बंटाया.
2. मां आंगनबाड़ी कार्यकत्री, बेटी ने 90.33% अंक हासिल किए
सुहानी की तरह जयपुर के दूदू में मौजमाबाद तहसील के झाग गांव की रहने वाली आकांक्षा खारोल ने भी गरीबी को पीछे छोड़ दिया. आकांक्षा ने अपनी कड़ी मेहनत से 10वीं में 90.33 प्रतिशत अंक हासिल किए हैं. आकांक्षा एक आम परिवार से आती हैं. उनके पिता प्रेमराज खरोल मार्बल कटिंग का काम करते थे. लेकिन अब इस दुनिया में नहीं हैं.
मां दिव्यांग आंगनबाड़ी कार्यकत्री हैं. उन्होंने ही आकांक्षा को बड़ा किया और स्कूल भेजा. आकांक्षा अपनी कामयाबी का श्रेय अपनी मां और उन शिक्षकों को देती हैं. जिन्होंने कोरोना काल में उनकी पढ़ाई को जारी रखने में मदद की. भविष्य में आकांक्षा आईएएस बनने का सपना रखती हैं.
3. पिता सैलून चलाते हैं, बेटी 12वीं में 450 में से 448 नंबर लाई
2020 में पंजाब शिक्षा बोर्ड ने 12वीं का जो रिजल्ट घोषित किया था, उसमें मानसा जिले की रहने वाली जसप्रीत कौर ने 99.5 फीसदी अंक अर्जित कर अपने परिवार और जिले दोनों का नाम रौशन कर दिया था. जसप्रीत ऐसे परिवार से आती हैं, जिसका खर्च जैसे-तैसे चलता है. उनके पिता एक नाई हैं. लोगों के बाल काटकर पूरे दिन में वो अधिकतम 200 रुपए ही कमा पाते हैं.
ऐसे में जसप्रीत का स्कूल जाना आसान नहीं था. मगर माता-पिता ने अपना पेट काट काट कर उन्हें पढ़ाया. जसप्रीत ने भी अपने अभिभावकों को निराश नहीं किया और खूब मन लगाकर पढ़ाई की. अंतत: वो अपनी मेहनत से वो मुकाम हासिल करने में कामयाब रहीं, जिसका उन्होंने सपना देखा था. जसप्रीत कौर न सिर्फ वो 450 नंबर में से 448 नंबर लेकर आईं, बल्कि, अपने राज्य के टॉपर्स की फेहरिस्त में शुमार भी हुई हैं.
4. पिता जूते बेचते हैं, बेटी 500 में से 485 नंबर लेकर आई
मध्यप्रदेश बोर्ड की कक्षा 12वीं के रिज़ल्ट घोषित हुए तो MP के श्योपुर की रहने वाली मधु के घरवाले खुशी से झूम उठे थे. दरअसल, मधु ने 500 में से 485 नंबर लाकर अपने परिवार और ज़िले दोनों का नाम रौशन कर दिया था. मधु का नाम ज़िले के टॉपर्स में शामिल हुआ. मधु एक बेहद ग़रीब परिवार से आती हैं. उनके पिता कन्हैया लाल सड़क पर जूते बेचने का काम करते हैं.
उनके परिवार में 5 भाई बहन समेत कुल आठ लोग हैं. पूरा परिवार दलित बस्ती के दो कमरे के घर में रहता है और जैसे-तैसे जीवनयापन कर रहा है. ऐसे में मधु का स्कूल जाना आसान नहीं था. मगर माता-पिता ने बड़ी मेहनत से उन्हें पढ़ाया. मधु ने भी अपने अभिभावकों को निराश नहीं किया और खूब मन लगाकर पढ़ाई की. अंतत: वो अपनी मेहनत से वो मुकाम हासिल करने में कामयाब रहीं, जिसका उन्होंने सपना देखा था.
5. शादियों में ढोल बजाने वाले की होनहार बेटी दिव्या बनेले
मध्य प्रदेश बोर्ड ऑफ़ सेकेंडरी एजुकेशन ने 27 जुलाई 2020 को 12वीं के परिणाम घोषित किए, जिसमें प्रदेश के कुल 68.81 प्रतिशत बच्चे सफल रहे. पास होने वाले इन बच्चों में एक नाम मध्य प्रदेश के इंदौर में स्थित सेठी नगर बस्ती में रहने वाली दिव्या बनेले का भी है. दिव्या 12वीं में 500 में से 367 अंक लेकर आईं. कहने के लिए वो प्रदेश की टॉपर नहीं थीं.
मगर जिन परिस्थितियों में दिव्या ने पढ़ाई जारी रखी और 74 प्रतिशत नंबर लेकर आई, वह अपने आप में बड़ी बात है. दरअसल, दिव्या एक बेहद गरीब परिवार से हैं. उसके पिता तिलोक बनेले एक ढोल वादक है. शादी-ब्याह जैसे मौकों पर वो अपनी इस कला के दम पर कुछ पैसे कमा लेते हैं. दिव्या की मां भी घर चलाने के लिए दूसरों के घरों में झाड़ू-पोछे का काम करती हैं. आर्थिक रूप से कमज़ोर होने के कारण दिव्या के लिए अपनी पढ़ाई जारी रखना आसान नहीं था. मगर परिवार की मदद से वो स्कूल गईं और मां-बाप का नाम रौशन किया.