”मुझे HIV पॉजिटिव किन्नर होने पर गर्व है”

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भले ही आज देश और दुनिया खुद को आधुनिक बता रहे हों, लेकिन कई मामलों में लोगों की सोच आज भी वैसी ही है जैसी सालों पहले थी. उदाहरण के लिए ट्रांसजेंडर को लेकर समाज के नजरिया को ही देख लीजिए. लोग आज भी इन्हें हीन दृष्टि से देखते हैं. ट्रांसजेंडर की समस्याओं को समझने के लिए इंडिया टाइम्स हिन्दी ने महाराष्ट्र के सोलापुर में पैदा हुई ट्रांसजेंडर अमृता सोनी से बात की. जिसमें उन्होंने अब तक पूरा सफर शेयर किया.

Amruta Alpesh SoniPic Credit: Amruta Alpesh Soni

”महाराष्ट्र के सोलापुर में मेरा बचपन बहुत कष्टप्रद रहा. मेरी मां मुझे बहुत प्यार करती थी, लेकिन पापा पसंद नहीं करते थे. वो अक्सर मां को ताने मारते थे कि तूने एक ‘छक्के’ को जन्म दिया है. जैसे-तैसे मैं स्कूल गई. मैं, दसवीं में थी जब मेरे चाचा मुझे अपने साथ दिल्ली लेकर गए थे. ताकि वो मेरा जीवन सुधार सकें.” 

”किन्तु, इसके विपरीत उन्होंने मेरा यौन शोषण किया और मुझे कई दर्दनाक यादें दीं. जैसे-तैसे हिम्मत करके मैंने अपना दर्द मां-पापा के साथ शेयर किया था. लेकिन पापा ने भरोसा नहीं किया कि उनके छोटे भाई ने मेरे साथ ऐसा कुछ किया है. अंतत: थक-हार कर मैंने उसी दिन अपना घर-परिवार छोड़ दिया और एक नई राह पर निकल पड़ी.”

”पढ़ाई को बनाया अपना मुख्य हथियार”

 

”घर छोड़ने के बाद मैं पुणे आ गई और किन्नर समाज से जुड़ गई ताकि जिंदा रह सकूं. इस दौरान मेरी मुलाक़ात कई समलैंगिक लोगों से हुई, जिन्होंने मुझे मजबूत किया. आगे मुझे ज़िंदगी को आगे बढ़ाने के लिए सेक्स वर्कर के तौर पर काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इस सबके बीच मैंने पढ़ाई का दामन नहीं छोड़ा.”

”दिल्ली ‘स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया’ यूनिवर्सिटी का टेस्ट पास करने के बाद जब मैं ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए कॉलेज गई तो मैंने कई मुश्किलों का सामना किया. सबसे पहले पहनावा बदलना पड़ा. इसके बाद पढ़ाई जारी रखने और पैसे कमाने के लिए ना चाहते हुए भी ताली बजाने से लेकर ‘बार डांसर जैसे काम करने पड़े”

”HIV पॉजिटिव ट्रांसजेंडर होने पर गर्व है”

 

”मैंने अपनी ज़िंदगी की हर मुसीबत का मजबूती से सामना किया. लेकिन पुणे के ‘सिम्बॉयसिस’ से एमबीए पूरी करने के बाद जब मुझे पता चला कि मैं एचआईवी पॉजिटिव हूं तो मैं पूरी तरह से टूट गई. जैसे-तैसे मैंने खुद को संभाला और फिर से खड़ी हुई. मुझे खुशी है कि आज मैं तीन राज्यों के लिए ‘रीजनल प्रोग्राम मैनेजर’ हूं और ‘ट्रांसजेंडर्स’ के अधिकारों के लिए अपनी आवाज बुलंद कर पा रही हूं.” 

”2014 में छत्तीसगढ़ सरकार ने मुझे एचआईवी और एड्स पीड़ितों के लिए नोडल अधिकारी बनाया था. वर्तमान में मैं यूपी में सक्रिय हूं और राज्य भर के जेलों में जाकर लोगों को अपनी सेवाएं दे रही हूं”. कहने के लिए आप कह सकते हैं कि मैं अब एक जाना-माना नाम हूं. लेकिन सच यह है कि लड़ाई अभी बहुत लंबी है. दुख तो तब होता है जब कई बार अपनी ही कम्युनिटी के लोग विरोध में खड़े हो जाते हैं”  

”हर इंसान की ज़िंदगी में बदलाव संभव है”

 

”यह हमारी कम्युनिटी का वो काला सच है जिसके बारे में कम लोग बात करते हैं. एक आदर्श समाज के रूप में हमें एक लंबा रास्ता तय करना है. कम लोग जानते हैं कि मैंने भी किसी से प्यार किया था. शादी भी की लेकिन कुछ महीने बाद ही रिश्ता टूट गया. यह सिर्फ मेरी कहानी नहीं है. हम जैसे कई ट्रांस इस दर्द से गुजर चुके हैं.

यही कारण है कि मैं कहती हूं कि हर स्तर पर सुधार की जरूरत है. स्वास्थ्य, शिक्षा, राजनीति, हर क्षेत्र में ट्रांसजेडर्स का प्रतिनिधित्व जरूरी है. इसके लिए हम सबको एक साथ आगे बढ़ने और आर्थिक रूप से मजबूत होने की जरूरत है. मैं युवाओं से कहना चाहती हूं कि अगर मैं अपनी ज़िंदगी में बदलाव ला सकती हूं तो फिर आप क्यों नहीं?”