विशुद्ध राजनीति: गुजरात चुनाव को लेकर कांग्रेस क्यों है सुस्त, महाराष्ट्र में आने वाला है नया ‘शिंदे’

महाराष्ट्र में इन दिनों एनसीपी में हो रहे घटनाक्रम पर सभी की नजरें हैं। सियासी गलियारों में दबी जुबान से चर्चा है कि जिस तरह के हालात महाराष्ट्र शिवसेना में बने, जिनके चलते ठाकरे परिवार को बगावत का सामना करना पड़ा, अब ऐसा ही कुछ पवार परिवार के साथ हो सकता है।

असली-नकली एनडीए
पिछले दिनों देवीलाल की जयंती में हिस्सा लेने के लिए नीतीश कुमार हरियाणा पहुंचे। इस दौरान विपक्षी एकता पर उनकी अलग-अलग नेताओं से विस्तार से बात हुई। उनके दौरे में एक दिलचस्प प्रस्ताव यह आया कि 2024 से पहले अब विपक्ष ही असली एनडीए है। नीतीश कुमार, प्रकाश सिंह बादल और उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना एनडीए के सबसे पुराने साथी रहे हैं। इन दिनों यही तीनों विपक्षी एकता के बड़े पक्षधर भी हैं। इन नेताओं की नजर एक बार फिर टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू पर भी है, जो कभी एनडीए के संयोजक तक रह चुके हैं। सूत्र बताते हैं कि नीतीश कुमार अगले कुछ दिनों में नायडू से भी संपर्क कर सकते हैं। दरअसल, पिछले कुछ सालों में बीजेपी के कई पुराने साथी उससे नाता तोड़ चुके हैं। केंद्र की मोदी सरकार के पहले टर्म में उपेंद्र कुशवाहा शामिल थे, मगर अब वह पार्टी समेत जेडीयू में मिल चुके हैं। नीतीश कुमार तमाम क्षेत्रीय दलों को इसी तर्क के साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं कि 2024 में सब मिलकर अगर नरेंद्र मोदी को रोकने में फेल हो गए, तो आगे सभी के अस्तित्व पर सवाल उठ जाएगा। वैसे नीतीश कुमार की नजर ओडिशा के सीएम और बीजेडी नेता नवीन पटनायक पर भी है। मगर मुसीबत यह है कि नवीन पटनायक ने अभी कोई रुचि ही नहीं दिखाई है। लगता है कि हमेशा की तरह पटनायक वेट एंड वॉच मोड में हैं।

हार कर भी जीते
नए कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत का नाम लगभग तय माना जा रहा था। हर ओर उन्हीं का हल्ला था। मगर राजस्थान में उनके समर्थक विधायकों ने जिस तरह से उठापटक की, उसने अंतिम समय में आकर गहलोत की दावेदारी खत्म कर दी। फिर दो लोगों के नाम आगे आए। पहले रहे कमलनाथ। सबसे सीनियर नेता और गांधी परिवार के करीबी होने के चलते वह सबसे उपयुक्त माने जा रहे थे। लेकिन उन्होंने अध्यक्ष बनने से मना कर दिया। कमलनाथ ने कहा कि वह मध्य प्रदेश पर ही फोकस रखना चाहते हैं। दूसरा नाम जो सबसे ज्यादा चर्चा में आया, वह रहा छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल का। चर्चित ओबीसी चेहरा, संगठन-सरकार दोनों चलाने का अनुभव, सबको साथ लेकर चलने की खासियत और उनका सियासी दिमाग उनके पक्ष में गया। लेकिन बघेल ने खुद को जूनियर बताकर इस रेस से अलग कर लिया। हालांकि पार्टी का एक वर्ग उनका नाम आगे कर रहा था। अब राजस्थान के अलावा अकेले छत्तीसगढ़ में ही कांग्रेस की खुद की सरकार है। पार्टी को अगले साल वहां वापसी की भी बेहतर संभावना भी दिख रही है। इसके बाद गांधी परिवार ने भी छत्तीसगढ़ सरकार को फिलहाल किसी भी तरह अस्थिर करने से परहेज करने की मंशा दिखाई। फिर पार्टी के अंदर पिछले कुछ महीनों में बघेल ने अपनी स्थिति भी मजबूत की है। आलाकमान के इस परहेज से यह संदेश भी दे दिया गया कि अगले साल चुनाव में बघेल ही सीएम फेस बने रहेंगे।

अब एनसीपी पर नजर
महाराष्ट्र में इन दिनों एनसीपी में हो रहे घटनाक्रम पर सभी की नजरें हैं। सियासी गलियारों में दबी जुबान से चर्चा है कि जिस तरह के हालात महाराष्ट्र शिवसेना में बने, जिनके चलते ठाकरे परिवार को बगावत का सामना करना पड़ा, अब ऐसा ही कुछ पवार परिवार के साथ हो सकता है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि यहां का ‘एकनाथ शिंदे’ कौन बनेगा? ऐसा नहीं है कि पवार इससे अनजान हैं। वह राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं और वक्त रहते चीजों को ठीक करने में भी लगे हैं। पिछले दिनों उन्होंने दिल्ली में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मीटिंग बुलाई। लेकिन उसमें भी तरह-तरह की खबरें सामने आईं। यह भी सुनने को मिला कि शरद पवार अब 80 साल की उम्र पार कर चुके हैं तो अब उनकी जगह कौन? इसको लेकर भी अलग-अलग राय है। शरद पवार की पसंद सुप्रिया सुले बताई जाती हैं। पार्टी के सीनियर नेता एकनाथ खडसे भी बीजेपी में जाने की कोशिश कर रहे हैं। शरद पवार राजनीति के चाणक्य माने जो हैं। देखने वाली बात है कि 2024 में वह कैसे विपक्षी दलों को एक करेंगे और कैसे अपनी पार्टी को?

कहानी अभी बाकी है
कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा को 2024 से पहले की बड़ी तैयारी का हिस्सा माना जा रहा है। जिस तरह से यात्रा को शुरू से रेस्पॉन्स मिल रहा है, उससे भी पार्टी को नई ऊर्जा मिल रही है। अब पार्टी अगले साल दक्षिण से उत्तर की तर्ज पर पश्चिम से पूरब तक पदयात्रा करने की भी योजना बना रही है। दूसरी ओर बीजेपी आश्वस्त है कि इन पदयात्राओं का कोई खास असर नहीं होगा। 2014 और 2019 की तरह 2024 में वह हैट्रिक लगाएगी। बीजेपी का तर्क है कि अभी उसके तरकश के तीर निकले ही नहीं हैं। बीजेपी को जिन दो तय इवेंट से माहौल बदलने का विश्वास है, उनमें पहला है अगले साल होने वाला जी-20 सम्मेलन, जिसमें दुनिया के 20 सबसे ताकतवर देशों के प्रमुख आएंगे। उसके बाद आम चुनाव से ठीक पहले अयोध्या में राम मंदिर को आम लोगों के लिए खोला जाना है। चर्चा यह भी है कि मोदी सरकार आम चुनाव से पहले गरीब लोगों के लिए कोई और ऐसी योजना ला सकती है, जो गेम चेंजर साबित हो। वहीं विपक्ष का दावा है कि तीर सिर्फ बीजेपी के पास ही नहीं हैं। विपक्ष का तरकश भी भरा पड़ा है।

रहस्यमयी सुस्ती

गुजरात में विधानसभा चुनाव करीब आ चुका है, मगर कई लोग हैरान हैं कि कांग्रेस इतनी सुस्त क्यों पड़ी है? वहीं दूसरी ओर अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आप अपनी पूरी ताकत लगा रही है। पिछले दिनों एक ओपिनियन पोल में आम आदमी पार्टी को 15 से 20 फीसदी वोट तक मिलने का अनुमान लगाया गया। ये सारे वोट उन्हें कांग्रेस की ही कीमत पर मिल रहे हैं क्योंकि गांधी परिवार की पार्टी का ध्यान गुजरात पर बिल्कुल भी नहीं है। वहां पार्टी ने अशोक गहलोत को जिम्मेदारी दी थी, मगर गहलोत तो इस समय केंद्रीय नेतृत्व के साथ जूझ रहे हैं। 2017 में गुजरात में सत्ता के बेहद करीब पहुंचने वाली कांग्रेस की यह रहस्यमयी सुस्ती खुद पार्टी के अंदर कई नेताओं को हैरान कर रही है। हालांकि कांग्रेस के एक सीनियर नेता इस आरोप को खारिज करते हैं। उनका तर्क है कि पार्टी एक रणनीति के तहत इसे राष्ट्रीय या नरेंद्र मोदी का चुनाव बनाने से परहेज कर रही है। उनका दावा है कि पार्टी राज्य के हर गांव तक अपने वचन के साथ पहुंच रही है। इस बार अंत में बहुत नजदीकी चुनाव होगा और आम आदमी पार्टी का वहां कोई खास असर नहीं होगा।