एक दिन, एक हफ़्ते, एक महीने या एक साल में हमें आज़ादी नहीं मिली. असंख्य लोगों ने कई साल संघर्ष किया, अपने प्राणों की आहुति दी और तब कहीं जाकर हमें आज़ाद देश का दर्जा मिला. हमारे उज्जवल ‘कल’ के लिए उन्होंने अपना हंसते-हंसते अपना ‘आज’ कुर्बान कर दिया. दुख की बात है कि हम उन असंख्य बलिदानों का मोल नहीं समझते. ये आज़ादी जो हमें ‘दिलवाई गई है’, इसका उचित सम्मान नहीं करते. हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल जाने वाले उन शूरवीरों को क्या सिर्फ़ साल के दो दिन ही याद किया जाना चाहिए?
हमें आज़ाद हवा में सांस लेने का मौका जिन वीरों की वजह से मिला है, उनमें से कुछ को तो हम नाम से जानते हैं. उनकी जयंती, जन्मतिथि, बलिदान दिवस आदि सब मनाते हैं. लेकिन ऐसे अनेक बलिदानी हैं जो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए. जिन्होंने सर्वोच्च बलिदान दिया लेकिन आज उन्हीं के देशवासी उनका नाम तक नहीं जानते.
भारत के एक ऐसे ही वीर सपूत थे, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी (Rajendra Nath Lahiri). काकोरी ट्रेन एक्शन (Kakori Train Action) को बहुत से लोग काकोरी कांड कहते हैं लेकिन उस घटना को ट्रेन एक्शन कहने पर बल दिया जाता है. काकोरी ट्रेन एक्शन के बारे में बहुत से लोग जानते होंगे, पढ़ा होगा. अंग्रेज़ों की नींद तोड़ देने वाले इस एक्शन की योजना बनाने वाले वीर को कितने लोग जानते हैं? वो शख्स थे राजेंद्रनाथ लाहिड़ी.
कौन थे राजेंद्रनाथ लाहिड़ी?
राजेंद्रनाथ लाहिड़ी का जन्म 1901 में बंगाल प्रेसिडेंसी के पाबना ज़िले के एक गांव में हुआ. उनके पिता ज़मीनदार थे लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे. कहते हैं राजंद्रनाथ के जन्म के समय उनके पिता जेल की सज़ा काट रहे थे. अनुशीलन समिती नामक प्रतिबंधित संगठन की गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए उन्हें जेल भेजा गया था.
पढ़ाई के लिए उन्हें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) भेजा गया जहां वे शचींद्रनाथ सान्याल से मिले और राजेंद्रनाथ लाहिड़ी के अंदर वतन की आज़ादी की लौ जल उठी. शचींद्रनाथ हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोशिएशन के कोफ़ाउंडर थे. लाहिड़ी अर्थशास्त्र और इतिहास में स्नातक थे. वे BHU के हेल्थ यूनियन के सेक्रटरी और बंगाल साहित्य परिषद के ऑनररी सेक्रेट्री भी थे.
HRA के सदस्य थे
शचींद्रनाथ ने शायद राजेंद्र के अंदर छिपे देशभक्त को ढूंढ लिया था. उन्हें शायद ये आभास हो गया था कि राजेंद्रनाथ कुछ ऐसा कर गुज़रेंगे कि इतिहास उन्हें याद रखेगा. काशी से ही प्रकाशित होनी वाली पत्रिका ‘बंग वाणी’ के संपादन का कार्य शचींद्रनाथ ने राजेंद्र को सौंप दिया. बीतते वक्त के साथ राजेंद्र की मुलाकात कई क्रांतिकारियों से होने लगी. राजेंद्र काशी में HRA के ज़िला संस्थापक (District Organizer) और पार्टी के प्रोविंसियल काउंसलर थे. वे चारू, जवाहर, जुगल किशोर आदि जैसे नाम बदलकर पार्टी के काम में लगे रहते.
क्रांतिकारी गतिविधियां
राजेंद्रनाथ की ये कोशिश रहती कि सभी क्रांतिकारी अपने विचार लिखें. राजेंद्र खुद भी अपने विचार बेझिझक लिखते थे. उन्हें बांग्ला साहित्य से बहुत लगाव था और उन्होंने अपनी मां की स्मृति में एक पुस्तकालय भी बनाया था. क्रांतिकारी राजेंद्र को ये आभास था कि शिक्षा से ही देश का उद्धार हो सकता है.
काकोरी रेल एक्शन
HRA को हथियार, पर्चे छापने आदि काम के लिए पैसे जुटाने के लिए पैसों की ज़रूरत थी. कुछ लेखों के अनुसार, पार्टी के सदस्य रईस ज़मीनदारों को लूटते थे. धीरे-धीरे उन्हें ये एहसास हुआ कि इससे आर्थिक परेशानियां खत्म हो रही हैं लेकिन अपने ही देशवासियों को लूटना ठीक नहीं है. अंग्रेज़ों से लड़कर नहीं, अंग्रेज़ी हुकूमत को खुली चुनौती भी देना ज़रूरी है. भारत का पैसा विदेश जाने से रोकना होगा, क्रांतिकारियों ने ये तय किया. इस तरह काकोरी रेल एक्शन की योजना बनाई गई.
काकोरी रेल एक्शन में राजेंद्रनाथ ने अहम भूमिका निभाई थी. 09 अगस्त, 1925 को शाहजहांपुर से लखनऊ जा रही 8 नंबर डाउन ट्रेन को काकोरी के पास लूटने की योजना थी. राजेंद्रनाथ लाहिड़ी ने ट्रेन की चेन खिंचकर ट्रेन रोकी थी. अन्य क्रांतिकारियों ने ट्रेन से जा रहा अंग्रेज़ों द्वारा जमा किया टैक्स लूटा. ये भारतीयों की मेहनत की कमाई थी जिसे अंग्रेज़ अपने खज़ाने को भरने वाले थे. क्रांतिकारियों ने गार्ड कैबिन में रखा पैसा लूटा और लखनऊ की तरफ़ भागे. इस एक्शन में क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला खान, चंद्रशेखर आज़ाद, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, मनमथ नाथ गुप्ता और अन्य सदस्य शामिल ते. मनमथ नाथ गुप्ता से अनजाने में चली गोली की वजह से एक ट्रेन के पैसेंजर की मौत हो गई.
दक्षिणेश्वर बम ‘कांड’
राजेंद्रनाथ 3 महीने तक अंग्रेज़ों के चंगुल में नहीं फंसे. रामप्रसाद बिस्मिल ने राजेंद्र को बम बनाने का तरीका सीखने के लिए कलकत्ता भेजा. दक्षिणेश्वर के पास वे इसी की तैयारी में जुटे थे. बम बनाने का सारा मटैरियल जमा हो चुका था. एक सदस्य की लापरवाही की वजह से एक बम फट गया. तेज़ धमाका सुनकर पुलिस वहां पहुंच गई और राजेंद्र समेत सभी क्रांतिकारियों को गिरफ़्तार कर लिया.
तय तिथि से दो दिन पहले हुई फांसी
राजेंद्रनाथ को अंग्रेज़ सरकार 10 साल की सज़ा दी गई, एक अपील की वजह से इसे कम करके 5 साल कर दिया गया. काकोरी रेल एक्शन में शामिल क्रांतिकारियों को अंग्रेज़ ढूंढ रहे थे और राजेंद्रनाथ का भी नाम सामने आया. राजेंद्रनाथ को लखनऊ लाया गया और ब्रितानिया सरकार के खिलाफ़ युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने, यात्री की हत्य का मुकदम चलाया गया.
रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, रोशन सिंह और राजेंद्रनाथ को दोषी करार देते हुए मृत्युदंड दिया गया. गौरतलब है कि तय तारीख से दो दिन पहले ही 17 दिसंबर, 1927 को गोंडा जेल में फांसी दे दी गई. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि अंग्रेज़ों को डर था कि राजेंद्रनाथ के साथी जेल तोड़कर उन्हें छुड़ा ले जाएंगे इसलिए उन्होंने पहले ही उन्हें फांसी दे दी.
राजेंद्रनाथ लाहिड़ी ने देश के लिए हंसते-हंसते कुर्बान हो गए. उन्होंने जेलर से कहा था- ‘जेलर साहब, मैं मर नहीं रहा. एक स्वाधीन भारत में दोबारा जन्म लूंगा.’