स्प्रिंगडेल्स स्कूल की नींव रखने वालीं रजनी कुमार का गुरुवार को निधन हो गया। वह 99 साल की थीं। दिल्ली में एक से एक बेहतरीन स्कूल हैं, लेकिन रजनी कुमार के स्प्रिंगडेल्स स्कूल ने श्रेष्ठता की नई इबारत लिखी। बता दें कि उन्होंने स्प्रिंगडेल्स स्कूल की शुरुआत अपने घर के एक हिस्से में नर्सरी से की थी।
नैंसी जॉयस मार्गरेट जोनस सन 1948 में डॉ.य़ुधिष्ठर कुमार से शादी करने के बाद हो गईं थीं रजनी कुमार। उनकी शादी उस दिन हुई थी, जिस दिन महात्मा गांधी की हत्या हुई थी। यानी 30 जनवरी 1948 को। इसलिए शादी किसी तरह हो गई थी। दोनों लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में साथ-साथ पढ़ते थे। शादी के बाद दिल्ली आ गए। ईस्ट पटेल नगर में रहने लगे। वह पटेल नगर के सलवान स्कूल में पढ़ाने लगीं। कुछ वर्षों के बाद उन्होंने अपने पति और ससुर से गुजारिश की कि वह अपना स्कूल खोलना चाहती हैं। पति और ससुर का साथ और सहयोग मिला और उन्होंने ईस्ट पटेल नगर के अपने घर के एक हिस्से में नर्सरी की कक्षाएं शुरू कीं। नाम रखा स्प्रिंगडेल्स स्कूल। उन्हीं रजनी कुमार का गुरुवार को निधन हो गया। वो 99 साल की थीं।
रजनी कुमार ने पटेल नगर, राजेंद्र नगर, पूसा रोड, रामजस रोड वगैरह में घर-घर जाकर लोगों से कहा कि वे अपने बच्चे उनके स्कूल में भेजे। उन्होंने फिर पूसा रोड में स्प्रिंगडेल्स स्कूल खोला और फिर धौला कुआं में भी शुरू किया। राजधानी में ना जाने कितने बेहतरीन स्कूल खुलते रहे हैं, पर रजनी कुमार के स्प्रिंगडेल्स स्कूल ने श्रेष्ठता की नई इबारत लिखी।
रजनी कुमार और उनके पति य़ुधिष्ठर कुमार वामपंथी विचारों से प्रभावित थे। अपने स्कूल में निर्धन परिवारों के बच्चों को बड़े स्तर पर दाखिले देने शुरू किए। ये उन दिनों की बातें हैं, जब गरीब-गुरबा के बारे में कोई सोचता भी नहीं था। रजनी कुमार ने समाज के दबे-कुचले वर्गों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को हमेशा समझा। रजनी कुमार को अपने भावी पति के साथ ब्रिटेन में रहते हुए भारत में अंग्रेजी शासन तथा स्वाधीनता आंदोलन के बारे में विस्तार से समझ आई। दोनों पति-पत्नी दूसरे विश्व युद्ध में एशिया और अफ्रीका में हुए विनाश से बहुत आहत थे। इसलिए वे युद्ध के विरूद्ध हमेशा खड़े रहे।
शरणार्थी परिवारों की बेटियां
यूनाइडेट नेशंस के ताशकंद स्थित दफ्तर में सलाहकार आशिता मित्तल कहती हैं कि रजनी कुमार स्प्रिंगडेल्स स्कूल के हरेक बच्चे की प्रोगेस पर नजर रखा करती थीं। इसलिए बच्चे भी उन्हें अपने टीचर या प्रिंसिपल से अधिक अभिभावक ही मानते थे। स्प्रिंगडेल्स स्कूल की स्टूडेंट रहीं आशिता मित्तल कहती हैं कि रजनी कुमार ने अपने स्कूल को धर्मनिरपेक्षता और विश्वबंधुत्व के आधार पर खड़ा किया। रजनी कुमार ने एक बार बताया था कि उन्होंने 1950 से 1955 तक सलवान एजुकेशन ट्रस्ट स्कूल के लड़कियों के स्कूल को स्थापित किया और आगे बढ़ाया। उस दौर में उनके स्कूल में आसपास रहने वाले परिवारों की लड़कियां आती थीं। ये अधिकतर देश के विभाजन के कारण शरणार्थी हुए परिवारों की बेटियां थीं। उनसे बात करके रजनी कुमार ने शरणार्थी परिवारों के विस्थापन को गहराई से समझा था। उन बेटियों को शिक्षा के साथ-साथ सुरक्षा का भाव, प्रेम तथा पीठ थपथपाने वाला कोई चाहिए था। रजनी कुमार ने इस काम को बखूबी निभाया था।
रंगभेद के विरुद्ध
रजनी कुमार के दिल के बहुत करीब था अफ्रीका। उन्होंने 1971 में अपने स्कूल में अफ्रीकी क्लब की स्थापना की थी। वो अफ्रीका, खासतौर पर दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की अमानवीय नीति का कसकर विरोध करती थीं। दिल्ली यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर डॉ. अनिरुद्ध देशपांडे को याद है, जब उनके स्कूल में अफ्रीका क्लब से जुड़े कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे। रजनी कुमार ने स्कूल में कुछ अफ्रीकी शिक्षक भी नियुक्त किये थे। उनकी विश्व दृष्टि थी। उसके चलते उनके स्कूल के स्टूडेंट्स और टीचर भी दुनिया को बेहतर तरीके से जानने लगे। उन्हें रंगभेद के कोढ़ के बारे में जानकारी मिली। रजनी कुमार के अफ्रीका प्रेम के चलते उन्हें 2005 में दक्षिण अफ्रीका सरकार ने सम्मानित भी किया था। रजनी कुमार 1976 में पति की कैंसर से मृत्यु से निराश तो हुईं थीं, पर उन्होंने अपने को संभालते हुए अपना सारा समय बच्चों को बेहतर नागरिक बनाने में लगा दिया।